कहानी: नंबर वन

-गीता दुबे- मैं अपनी जिंदगी से बिल्कुल संतुष्ट थी, कोई शिकायत नहीं थी मुझे जिंदगी से. विवाह के आठ वर्ष बाद ईश्वर ने हमें एक बेटा दिया था, हम दोनों ने उसे नाजों से पाल- पोसकर बड़ा किया, अच्छे स्कूल में पढ़ाया, पढ़ लिखकर वह ऑफिसर बन गया, हमने…
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तीसरा बटन

-सुशील यादव-आज कालेज कैंपस में सन्नाटा पसरा है। 3 छात्रों की पिकनिक के दौरान नदी में डूब जाने से अकस्मात मौत हो गई। सभी होनहार विद्यार्थी थे। हमेशा खुश रहना व दूसरों की मदद करना उन की दिनचर्या थी।वे हमारे सीनियर्स थे। कालेज का…
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पुस्तक समीक्षा: खो गया गांव

समीक्षक: सुरेश कुमार पाण्डेय  पुस्तक: खो गया गांव (कहानी संग्रह), लेखक: डॉ. (श्रीमती) अपर्णा शर्मा, प्रकाशक: माउण्ट बुक्स, दिल्ली, संस्करण-2011, पृष्ठ: 112, मूल्य: रुपया 220  खो गया गांव की कहानियां मानवीय सम्बन्धों से अपने को जोड़ कर…
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एक कंजूस की प्रेम कहानी

-अर्चना चतुर्वेदी-  सयाने जानते हैं कि आशिकी बड़ा खर्चीला काम है। इस काम में बंदे की जेब को पेचिश हो जाती है और टाइम की फर्म का दिवाला निकल जाता है। पर फिर भी लोग हैं कि आशिकी करते हैं कारण सिर्फ ये कि खतरों से खेलने का शौक भी तो एक शौक…
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एक चिनगारी घर को जला देती है

तोल्सतोय अनुवाद -प्रेमचंद एक समय एक गांव में रहीम खां नामक एक मालदार किसान रहता था। उसके तीन पुत्र थे, सब युवक और काम करने में चतुर थे। सबसे बड़ा ब्याहा हुआ था, मंझला ब्याहने को था, छोटा क्वांरा था। रहीम की स्त्री और बहू चतुर और सुशील थीं।…
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बंद गली

-जसविंदर शर्मा- मैं मानती हूं कि मेरी इस उम्र में शरीर कई बीमारियों का घर बन जाता है परन्तु मेरी ज्ञानेन्द्रियों के साथ इन दिनों एक विशेष प्रकार की समस्या होती जा रही है। मैं लोगों को बताती हूं मगर वे यकीन नहीं करते। वे कहते हैं कि ऐसा भी…
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दो बूढ़ी औरतें

-स्व. घनश्याम रंजन-एक समय की बात है। दो बूढ़ी औरतें एक नदी के दोनों आमने−सामने के किनारों पर रहती थीं। वे दोनों अपनी बदमिजाजी के लिए बदनाम थीं। सूरज निकलने से पहले ही वे अपने−अपने किनारे पर आकर जम जाती थीं। और सूरज छिपने तक झगड़ती रहती…
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एक टोकरी-भर मिट्टी

किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढा़ने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता…
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इंसाफ

-प्रमिला उपाध्याय- मालती रोज की तरह जब काम पर से लौटी तो घर के पास उसे मूंछें ऐंठते हुए रूपचंद मिल गया. उस ने पूछा, कैसी हो, मालती? ठीक हूं. कब तक इस तरह हाड़तोड़ मेहनत करती रहोगी? अब तो तुम्हारी उम्र भी हो गई है, क्यों नहीं अपनी बेटी…
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प्रेरणा

-अशोक मिश्र-प्रतीक कम्पयुटर साइंस में बी ई करने के उपरांत छः महीने से नौकरी के लिए भटक रहा था। रोज सुबह-सुबह दफ्तरों में इन्टरव्यू के लिए निकल जाता था। कदाचित् कुछ स्टेज क्लीयर भी कर लेता था पर फाइनली सेलेक्ट नहीं हो पाता था।…
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