कहानी: नंबर वन

-गीता दुबे-

मैं अपनी जिंदगी से बिल्कुल संतुष्ट थी, कोई शिकायत नहीं थी मुझे जिंदगी से. विवाह के आठ वर्ष बाद ईश्वर ने हमें एक बेटा दिया था, हम दोनों ने उसे नाजों से पाल- पोसकर बड़ा किया, अच्छे स्कूल में पढ़ाया, पढ़ लिखकर वह ऑफिसर बन गया, हमने एक अच्छी लड़की देख उसका विवाह भी कर दिया, वह जल्दी ही दो बच्चों का पिता बन गया और मैं दादी माँ बन गई. हमारा भरा पूरा परिवार था, बेटे और बहू अपनी अपनी नौकरी में व्यस्त थे… वे जिंदगी की दौड़ में बहुत आगे निकल जाना चाहते थे… इसके लिए परिश्रम भी किया करते. इस बीच मेरे पति ने मेरा साथ छोड़ दिया… मैं तो टूट ही गई… मैंने तो अपनी सबसे बड़ी ताकत को खो दिया था…लेकिन मैंने देखा बेटे- बहू में कोई खास परिवर्तन नहीं आया.. वे पहले की ही तरह व्यस्त रहते थे… हों भी क्यों न! उन्हें समय से पहले बहुत कुछ हासिल करना था. पति के चले जाने के बाद से मैं अक्सर बीमार रहने लगी, शुगर, ब्लड प्रेशर की शिकार तो पहले से ही थी अब कुछ ब्रीदिंग प्रॉब्लम भी रहने लगी, जोड़ो में दर्द जैसे सारी बीमारियों ने मुझे जकड़ लिया और मैं बिस्तर पर पड़ गई. मैं जानती थी कि बहू बेटे पर मैं एक बोझ बन गई हूँ लेकिन क्या करूँ… मैं लाचार थी… बहू- बेटे ने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा… मेरी देख-भाल के लिए उन्होंने एक फुल- टाइम मेड रख दी… मैं भी अपनी कोई परेशानी उनसे नहीं कहती… मैं जानती थी… क्या मिलेगा कहकर…जो भी परेशानी है उसे सह लेना ही बेहतर है…. वैसे भी मैं उनके आगे बढ़ने में, समय से पहले सबकुछ हासिल करने में बाधा बनना नहीं चाहती थी… मुझे आभास हो गया था कि इसी बिस्तर पर मैं अपनी अंतिम साँसें लूँगी. एक दिन एक घटना मेरे साथ हो गई… घर पर अकेला पाकर यमराज जी मेरे सामने प्रकट हो गए…कहने लगे… तुम्हारे दिन अब पूरे हो चुके हैं… किसी से कुछ गिला-शिकवा है तो दूर कर लो… मैंने कहाकृनहीं यमराज जी, मुझे किसी से कुछ भी गिला-शिकवा नहीं है… पूरे डेढ़ महीने से इस बिस्तर पर पड़ी हूँ… अब उठा लीजिए… बस आपसे एक ही विनती है… यमराज जी ने पूछा-

क्या?…

विनती यह है यमराज जी कि इस घर में सभी काफी व्यस्त रहते हैं… रविवार को सभी देर से सोकर उठते हैं… सुबह के 10-11 बजे तक नाश्ता करते हैं… और फिर उसके बाद तीन चार घंटे फ्री रहते हैं…. उसी समय आप मुझे उठा लीजिएगा… ताकि अपने फ्री टाइम में ही वे मुझे निपटा लें… माँ हूँ न! बच्चों का ख्याल हमेशा सर्वोपरि रहता है … और एक बार फिर कहती हूँ कि उनकी व्यस्त दिनचर्या में मैं बाधा बनना नहीं चाहती…

यमराज ने मुस्कुराकर कहा-

कोई और विनती होती तो मैं जरुर मान लेता, लेकिन मेरी मजबूरी है मैं आपकी यह विनती नहीं मान सकता…यह पूर्णतः मेरी इच्छा पर निर्भर करता है कि मैं किसे, कब, कहाँ और कैसे अपने पास बुला लूँ…. मैं आपकी यह विनती नहीं मान सकता.

दूसरे दिन ऑफिस में अधिक काम होने की वजह से बेटे को घर आते आते रात के ग्यारह बज गए… काफी थका दिख रहा था…उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह खड़े-खड़े ही निंद्रा देवी की गोद में समा जाए… मैं चाहती थी कि वह जल्द से जल्द खा-पीकर बिस्तर पर चला जाए लेकिन मेरे लाख मना करने पर भी यमराज जी नहीं माने, मुझसे उन्होंने उसी समय कहा कि अब तुम्हारा समय पूरा हो गया… अभी इसी वक्त तुम्हे मेरे पास आना होगा…फिर अचानक मेरे सीने में ऐसी दर्द हुई कि मैं छटपटाने लगी… बेटा- बहू दौड़कर मेरे पास आए… मुझे अस्पताल ले जाने लगे…लेकिन अस्पताल पहुँचने के पहले ही रास्ते में मैं यमराज जी के पास चली आई थी… मैं यमराज जी के पास आकर संतुष्ट थी…. मेरी आत्मा कोई भटकने वाली नहीं थी…मेरी सभी इच्छाएँ पूरी हो चुकीं थीं… मैंने देखा मेरे बेटे बहू कुछ रिलैक्स्ड लग रहे थे…. रात भर के लिए उन्होंने मुझे अस्पताल के शव गृह में छोड़ दिया और वे दोनों वापस घर चले आए…दूसरे दिन मैं सुबह सुबह घर पर लाई गई…. घर के पास कुछ लोगों की भीड़ लगी हुई थी…मेरी पूजा की गई… मुझे फूलों से सजाया गया…एक ट्रक पर रखकर मुझे शमशान लाया गया… वहाँ पहले से ही पाँच शव इन्तजार कर रहे थे… मैंने सुना बेटा एक सफेद कमीज वाले व्यक्ति से कह रहा था-

अरे जाकर बात कर नंबर वन पे ले चलिए… कुछ ले देकर बात बन जाती है तो ठीक है…कहिए कि हम पाँच मिनट में पूजा खत्म करवा देंगे और फर्नेस में ही जलाएंगे… पर्यावरण के हिसाब से भी ठीक है और समय की बचत भी है…

चार-पाँच लोगों के साथ बेटा खड़ा था …कह रहा था… डेढ़ महीने से खटिया पकड़ ली थी… कल 11 बजे ऑफिस से लौटने के बाद… फिर हमलोग अस्पताल ले गए…. ऑफिस में काम बहुत बढ़ गया है…परसों नए प्रोजेक्ट का प्रेजेंटेशन है….कैंसिल नहीं कर सकते… बाहर से क्लाइंट आ रहा है…

मैं इन्तजार में थी कि मेरा इकलौता बेटा बस इतना ही कहता कि मैं अब अनाथ हो गया या मेरी माँ एक अच्छी माँ थी या कुछ भी मेरे बारे में… लेकिन उसने ऐसा नहीं कहा… मुझे नंबर वन… मिल गया … और कुछ ही सेकण्ड में शरीर के रूप में जो मेरी अस्तित्व बची थी.. वह खत्म हो गई……।

(साभार-रचनाकार)

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