फुरसत

-वंदना सिहं- सरला को कहां पता था कि आज उस के जीवन का यह आखिरी दिन है. पता होता तो क्या वह अचार के दोनों बड़े मर्तबान भला धूप में न रख देती और छुटकी के स्वेटर का तो केवल गला ही बाकी बचा था, उसे न पूरा कर लेती. खैर, यह सब तो तब होता जब सरला…
Read More...

एक नया सवेरा

-राजेश माहेश्वरी-हिम्मत सिंह नाम का एक व्यापारी था जो अपनी एक मात्र संतान के लिए अच्छी व सुयोग्य वधु की तलाश कर रहा था। एक दिन वह अपने व्यापार के सिलसिले में एक शहर की ओर जा रहा था तभी शाम का वक्त हो गया और अंधेरा घिर आया। वह…
Read More...

नोटों की गड्डी

-रश्मि-हम तुम्हरे पांय परत हैं बिटिया, इनका बचाय लेओ। बुढ़िया हाथ जोड़े, अधझुकी होकर सुगना के सामने मिन्नतें कर रही थी जबकि सुगना का पूरा शरीर क्रोध से कांप रहा था और हथेलियां गुस्से से भिंची हुईं थीं।सुगना! तनिक…
Read More...

सब का दाता है भगवान

-राजेश माहेश्वरी- जबलपुर शहर में एक धनाढ्य व्यापारी पोपटमल रहता था। वह कर्म प्रधान व्यक्तित्व का धनी था और गरीबों को दान धर्म, जरूरतमंदों को आर्थिक सहयोग, बच्चों को शिक्षा प्रदान करने हेतु उनकी फीस, किताबें इत्यादि के लिए आर्थिक मदद देता…
Read More...

एक बूढ़े की मौत

-शशिभूषण द्विवेदी-कहानी लिखने के लिए कहानी ढूँढऩी पड़ती है। पता नहीं, यह कितना सच है मगर अब तक हर कहानी लेखक ने मुझसे यही कहा है कि कहानी लिखना खासा मुश्किल काम है। कभी कभी मुझे भी ऐसा ही लगता है, कारण कि जो चीज हमारे सबसे…
Read More...

बच्चों को कैसा साहित्य परोस रहे हैं हम?

-योगेश कुमार गोयल- जब भी हम बच्चों के बारे में कोई कल्पना करते हैं तो सामान्य रूप से एक हंसते-खिलखिलाते बच्चे का चित्र हमारे मन-मस्तिष्क में उभरता है लेकिन कुछ समय से बच्चों की यह हंसी, खिलखिलाहट और चुलबुलापन जैसे भारी-भरकम स्कूली बस्तों…
Read More...

कहानी : एक चिनगारी घर को जला देती है

एक समय एक गांव में रहीम खां नामक एक मालदार किसान रहता था। उसके तीन पुत्र थे, सब युवक और काम करने में चतुर थे। सबसे बड़ा ब्याहा हुआ था, मंझला ब्याहने को था, छोटा क्वांरा था। रहीम की स्त्री और बहू चतुर और सुशील थीं। घर के सभी पराणी अपना-अपना…
Read More...

इन्तज़ार (लघु कथा)

-शबनम शर्मा-रात गहराती जा रही थी। मेरा मन बहुत घबरा रहा था। मेरी बेटी शाम 4 बजे से यह कहकर गई थी कि वो 2-2) घंटे में वापस आ जायेगी। मैंने उसे अनगिनत फोन कर डाले। फोन मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था। ‘अनरिचेबल’ की टोन ने मुझे और भी परेशान…
Read More...

बोलता मटका

-सिद्धार्थ संचोरी-एक बार एक कुम्हार एक मटका बना रहा था। तो मटके और कुम्हार के बीच रोज नोंक-झोंक होती रहती थी।  मटका जब भी कुछ बोलता कुम्हार उसे पीटना शूरु करता। एक दिन जब मटका बड़ा हो गया तो उसे कुम्हार अपनी दुकान पर ले गया। अब…
Read More...

मरने से पहले (कहानी)

-भीष्म साहनी-मरने से एक दिन पहले तक उसे अपनी मौत का कोई पूर्वाभास नहीं था। हाँ, थोड़ी खीझ और थकान थी, पर फिर भी वह अपनी जमीन के टुकड़े को लेकर तरह-तरह की योजनाएँ बना रहा था, बल्कि उसे इस बात का संतोष भी था कि उसने अपनी मुश्किल का हल…
Read More...