इंसाफ

-प्रमिला उपाध्याय-

मालती रोज की तरह जब काम पर से लौटी तो घर के पास उसे मूंछें ऐंठते हुए रूपचंद मिल गया. उस ने पूछा, कैसी हो, मालती?

ठीक हूं.

कब तक इस तरह हाड़तोड़ मेहनत करती रहोगी? अब तो तुम्हारी उम्र भी हो गई है, क्यों नहीं अपनी बेटी कम्मो को मेरे साथ मुंबई भेज देती हो? मैं बारगर्ल का काम दिला कर उसे हजारों रुपए कमाने लायक बना दूंगा. तुम बुढ़ापे में सुख और आराम से रहोगी.

नहीं भैया, मेरी बेटी इतनी दूर जा कर मेरे से अलग रह ही नहीं सकती. वैसे भी वह एक प्रोफैसर दीदी के यहां काम कर रही है और खुश भी है.

ओहो, तुम मेरी बात ही नहीं समझ रहीं. मैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा हूं. वैसे हड़बड़ी नहीं है, सोचसमझ कर अपना विचार मुझे बताना.

चिंतित सी मालती धीरे से सिर हिलाते हुए अपने घर में घुस गई. कम्मो यानी कामिनी अभी नहीं लौटी थी. 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि वह आ गई. सुबह के 11 बजने वाले थे. मांबेटी थकी हुई थीं. कम्मो ने पूछा, मां, चाय पिओगी? चिंतित मालती ने थकी सी आवाज में कहा, हां बेटी, बना न. अगर अदरक हो तो थोड़ी सी डाल देना, बहुत थक गई हूं. थोड़ी देर में कम्मो 2 गिलासों में चाय ले कर आई, क्या बात है मां, बहुत थकी और चिंतित लग रही हो?

नहीं बेटी, अब उम्र भी तो बढ़ रही है, थोड़ा ज्यादा काम करती हूं तो कभीकभी थकान लगने लगती है.

तुम इतनी मेहनत क्यों करती हो मां. अब तो मैं भी काम करने लगी हूं. जितना हम मांबेटी मिल कर कमा लेते हैं, 2 जनों के लिए काफी है.

नहीं बेटी, महंगाई का जमाना है, कुछ दिनों बाद तेरे हाथ भी पीले करने हैं, दो पैसे नहीं जोड़ूंगी तो कैसे काम चलेगा. कहां हाथ फैलाऊंगी, बोल. अब तो तेरे पिताजी भी नहीं रहे. जानती है बेटी, एक मर्द का साया सिर पर रहना बहुत जरूरी होता है. कम्मो आज के जमाने की नए विचारों वाली लड़की थी, बोली, ऐसा क्यों सोचती हो मां, आज लड़कियां भी बहुत कुछ कर सकती हैं. मुझे तो पापा ने 8वीं तक पढ़ा भी दिया है. जिस दीदी के यहां मैं काम कर रही हूं, उन्होंने कहा है कि मुझे वे घर में ही पढ़ा कर 2-3 साल के अंदर मैट्रिक करा देंगी. फिर तो आगे बढ़ने के लिए कई रास्ते मिल जाएंगे. मालती को राहत मिली. लगा प्रोफैसर दीदी उस की बेटी के लिए कुछ न कुछ अवश्य करेंगी. उस ने झट से आलू काटा. कम्मो ने भात चढ़ा दिया और सब्जी का मसाला पीसने लगी. कुछ देर में भात तैयार हो गया तो उस ने सब्जी छौंक दी. सब्जी तैयार हो जाने पर मांबेटी ने खाना खाया और बरतन आदि धो कर आराम करने लगीं. कम्मो को लेटते ही नींद आ गई पर मालती को रूपचंद की बातें याद आ रही थीं. वह करवटें बदलती रही. बारबार रूपचंद का चेहरा उस की आंखों के सामने आ जाता था. सूनी आंखें लिए वह खिड़की के सामने बैठ कर तरहतरह की बातें सोचने लगी. आज का जमाना तो वैसे भी खराब है. वह जानती है कि लड़कियों के साथ बदमाश लोग कुछ भी गलत करने से नहीं हिचकते. रूपचंद दादा किस्म का दबंग आदमी था. वह अपनी जवान बेटी को कैसे किसी के साथ बाहर भेज दे. वह एक राजनीतिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता भी था. उस ने अपना दबदबा इन झोपड़पट्टियों पर इस कदर बना रखा था कि सभी उस से डरते थे. इसीलिए मालती भी उस से भय खाती थी. वह अकसर रोज ही मालती के सामने अपना प्रस्ताव रखने लगा था, इसी से वह चिंतित थी.

पास ही आधा किलोमीटर की दूरी पर ढेरों प्राइवेट घर थे. उस पौश कालोनी को आदर्श नगर के नाम से जाना जाता था. मालती की बस्ती रामूडीह गरीबों का झोपड़पट्टी वाला इलाका था. दूसरे दिन मालती काम कर के लौटी तो फिर रूपचंद उस के घर के पास ही मूंछें ऐंठते हुए मुसकरा रहा था. उस ने भावपूर्ण नजरों से मालती को देखा पर बोला कुछ नहीं. मालती राहत की सांस लेते हुए नजरें झुकाए घर में घुस गई. वह विधवा औरत किशोर बेटी के साथ शांति से चैकाबरतन कर के अपना घर चला रही थी. एक साल पहले उस का पति एक दुर्घटना में चल बसा था. उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीक ही चलने लगी थी. लेकिन जब से रूपचंद ने अपना विचार उस से कहा और उस के अजीब तरह के देखने के ढंग से वह अंदर से सिहर उठती थी. 3-4 दिन के बाद वह 2-3 लंपट किस्म के लड़कों के साथ खड़ा मिला और मालती को देखते ही पूछा, क्या मालती, कुछ सोचा या नहीं?

वह अनजान बनते हुए बोली, किस बारे में, भैया?

अरे, इतनी जल्दी भूल जाती हो, इतनी कमजोर है तुम्हारी याददाश्त. वही मुंबई बारगर्ल वाली बात के संबंध में. भेजोगी अपनी बेटी को तो रानी बन कर रहोगी, रानी. घरघर जा कर काम करने से छुटकारा मिल जाएगा तुम्हें और इतना कुछ होगा तुम्हारे पास कि दूसरे लोगों को देने लायक हो जाओगी. मालती ने बात टालने की सोच कर कहा, हां भैया, जल्दी ही बताऊंगी. मैं ने अपनी बेटी को इस संबंध में कुछ बताया नहीं है. दूर भेजने की बात है न. कामिनी से उस ने अभी तक कुछ बताया नहीं था. जब रूपचंद ने उस पर जल्दी बताने के लिए रोज जोर देना शुरू किया तो एक दिन उस ने डरतेडरते उस से पूछा, बेटी, तू मुंबई जाएगी काम करने? बारगर्ल बन कर काम करने पर तुझे हजारों रुपए मिलने लगेंगे. कम्मो सुनते ही रोने लगी, मां, तुम ने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें छोड़ कर बाहर कमाने जाऊंगी. यदि मुझे लाखों रुपए भी मिलने लगेंगे तो भी मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी, समझीं. सुन लो, हां. मालती उस की बात सुन कर आश्वस्त सी हो गई. मन ही मन सोचा कि मेरी बेटी ने तो मेरी मुश्किल ही आसान कर दी. उस का दिल भी उसे अपनी आंखों से ओझल होने देने का नहीं कर रहा था. अब वह रूपचंद को टका सा जवाब दे सकती है.

दूसरे दिन रूपचंद फिर कुछ लोगों के साथ खड़ा था. उस ने अपनी बात फिर दोहराई. मालती ने आज उस से साफसाफ कह दिया, नहीं भैया, मेरी बेटी बाहर कहीं नहीं जाना चाहती. वह मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती है. सच में भैया, लड़की का मामला है, सबकुछ सोचना पड़ता है न. रूपचंद ने पूछा, अच्छी तरह सोचसमझ लिया है न?

हांहां भैया, अच्छी तरह सोच कर ही जवाब दे रही हूं. उस ने हुंकार भरते हुए कहा, अच्छा ठीक है. जिस ढंग से उस ने हुंकार भरी थी, वह थोड़ा सहम गई. अब मालती और कामिनी काम पर से लौटतीं तो रूपचंद नजर नहीं आता था. सबकुछ सामान्य था. एक दिन मालती काम से लौट कर बैठी ही थी कि अचानक कुछ लोग उस के घर में घुस आए और चिल्लाते हुए बोले, मारो साली को, डायन है यह डायन. इसी ने रामलाल के बेटे को खाया है, बिलकुल छंटी हुई डायन है यह. मालती किसी को पहचानती नहीं थी. हां, उन में से एक रूपचंद के साथ अकसर नजर आया करता था. वह चिल्लाते हुए बोली, आप लोग कौन हैं? कौन रामलाल का बेटा? आप लोग क्या कह रहे हैं, मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा है. लेकिन उस की बात कोई नहीं सुन रहा था. वे दनादन उस पर डंडे, जूताचप्पल बरसाने लगे. इतने में कामिनी भी काम पर से वापस आ गई. वह रोनेचिल्लाने लगी, आप लोग मेरी मां को क्यों मार रहे हैं? कौन हैं आप लोग?

साली मांबेटी दोनों ही छंटी हुई हैं, रूपचंद का साथी बोला और कम्मो के बालों को पकड़ कर जोर का धक्का दिया. वह गिर पड़ी. वह उठ कर मां को फिर बचाने के लिए झपटी. तभी उस के गालों पर बदमाश ने ऐसा जोरदार थप्पड़ मारा कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वह मूर्छित सी हो कर गिर गई. बदमाशों ने मालती को दमभर मारापीटा. तभी एक आदमी डब्बे भर कर मैला ले कर आ गया और जबरन मालती के मुंह में डाल दिया. वह उस के बालों को जोरजोर से खींचते हुए बोला, साली, मेरे बच्चे को किसी तरह जिंदा करो, नहीं तो मार ही डालूंगा.

मैं ने कुछ नहीं किया, मैं ने कुछ नहीं किया, कहतेकहते मालती बेहोश हो गई. मारपीट कर बदमाश वहां से चले गए. इस दौरान बस्ती का कोई भी उसे बचाने नहीं आया. कुछ ही देर में रूपचंद एक ओझा को ले कर वहां पहुंचा और बोला, बाप रे, यह मालती डायन है, मुझे नहीं मालूम था. ओझाजी इस से पूछिए कि रामलाल के बेटे को तो उस ने खा लिया, अब वह किसे खाना चाहती है? ओझा एक छड़ी से बेहोश मालती को खोदते हुए बोला, बोल री डायन, यह सब तू ने क्यों किया? मालती नहीं उठी तो उस ने उसे झाड़ू से मारा. वह फिर भी नहीं उठी तो उस ने आग जला कर उस में मिर्चें डाल कर धुआं किया और एक झाड़ू फिर लगाते हुए बोला, अरी जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल, उठती है या नहीं? पूरी बस्ती में यह खबर आग की तरह फैल गई थी. कई लोग उस के घर दौड़े आए. ओझा के दोबारा झाड़ू उठे हाथ लोगों को देख कर रुक गए. कई लोग मालती के करीब आ कर उसे देखने लगे. तो ओझा एक झाड़ू उसे और लगाते हुए बोला, जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल तू उठती है या नहीं? कुछ लोग मालती के काफी करीब आ गए, उसे देखते हुए बोले, यह तो बेहोश है. छोड़ दीजिए ओझाजी, तभी कम्मो को होश आ गया. वह झटपट उठी और मां की ओर दौड़ी. मां की दशा देख कर फूटफूट कर रोने लगी.

मूर्ति बने लोगों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए. रूपचंद और उस के ओझा की दबंगता के आगे सभी डरे हुए थे. जब भी किसी को कुछ काम करवाने की जरूरत होती तो वह रूपचंद की ही सहायता लेता था. उस की पार्टी के साथ लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई थीं. समयसमय पर वह लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला भाषण दिया करता था. आखिर वह एक सांप्रदायिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता जो था. उस की पार्टी के लोग धर्म के नाम पर अपना उल्लू सीधा करते रहते थे. जब देखो इस पार्टी के लोग अपनी नीतियों की प्रशंसा और अन्य पार्टियों का विरोध करते रहते थे. अपनी पार्टी में उस की धाक थी ही, बस्ती के आसपास के लोग भी उस की दबंगता के आगे खौफ खाते थे और उस की हां में हां मिलाते थे. रूपचंद बड़बड़ाते हुए ओझा को ले कर वहां से चला गया. उस के जाते ही सभी जैसे होश में आ गए. रूपचंद ने मालती का ऐसा रूप सब के सामने पेश करवाया था कि जिस के बारे में उस बेचारी को कुछ भी पता नहीं था. लोग आपस में सलाहमशविरा करने लगे. इतने में एक 7-8 साल का लड़का बंशी आ गया. कम्मो उसे अपने छोटे भाई की तरह प्यार करती थी. जिन प्रोफैसर दीदी के यहां वह काम करती थी, उन के यहां से उसे मिठाइयां या टौफी वगैरह मिलतीं तो वह थोड़ा बचा कर उस के लिए जरूर लाती थी. वह छोटा बच्चा इसी इंतजार में रोजाना रहता था कि कब दीदी उस के लिए कुछ ले कर आएंगी. वह भी उसे बहुत प्यार करता था. वह उस का कोई भी काम करने के लिए तैयार रहता था.

मालती और कम्मो की हालत देखते ही वह सरपट दौड़ पड़ा जागरूक महिला सोसायटी की सैक्रेटरी दमयंतीजी के पास. उन से जल्दी साथ चलने का आग्रह करने लगा. वे बगल की आदिवासी कालोनी में सब से पहले घर में रहती थीं. हांफते हुए उस ने वहां का सारा नजारा बताया और बांह पकड़ कर बस्ती में ले आया. दमयंतीजी महिलाओं के किसी भी दमनकारी कृत्य में या उन का हक दिलवाने के मामलों में जीजान से जुट जाती थीं. वे खानापीना भूल कर उन की सहायता किया करती थीं. बंशी की बात सुन कर वे बड़ी तेजी से चल कर वहां पहुंचीं और वहां का दृश्य देख कर अवाक् रह गईं. मांबेटी की हालत देख कर उन्हें बहुत गुस्सा आया. वे समझ गईं कि किसी गुंडे ने इन निर्बलों पर अपना बल आजमाया है. वे बोलीं, आप लोग तमाशा मत देखिए, फौरन एक टैंपो ले आइए और मालती को अस्पताल पहुंचाने में मदद कीजिए. अब सभी लोग हरकत में आ गए और दौड़ कर टैंपो ले आए. कुछ लोगों की सहायता से मालती को उस में लिटाया गया. तब तक कम्मो ताला बंद कर के मां का सिर अपनी गोद में रख कर बैठ गई. दमयंतीजी भी अगली सीट पर बैठ गईं और अस्पताल पहुंचीं. वहां जरूरी प्रक्रिया पूरी करा कर उन्होंने मालती का इलाज शुरू कराया. मालती की खराब हालत देख कर डाक्टर ने पुलिस का मामला बताते हुए उस का इलाज करने में अपनी मजबूरी बताई. दमयंतीजी जैसी महिला समाजसेवी के आगे उन्हें झुकना पड़ा. कम्मो अभी भी रहरह कर सिसक रही थी. दमयंतीजी ने उसे समझाया, देखो, कामिनी, घबराओ नहीं, हमारी महिला सोसायटी तुम लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटेगी. रुपएपैसे की चिंता मत करो और रोना बंद करो.

अब तक मालती की बस्ती के कुछ लोग वहां पहुंच गए. दमयंतीजी ने उन लोगों से कहा, देखिए, अभी पुलिस आती ही होगी, आप सभी जोजो बातें जानते हैं और देखा है, उस के बारे में बेहिचक पुलिस को बताइएगा. कामिनी भी रिपोर्ट देगी. इन मांबेटी की सहायता करना हम सभी का फर्ज बनता है. सभी लोगों ने अपनी सहमति में सिर हिलाया. पुलिस ने आते ही सब का बयान ले कर एफआईआर दर्ज कर ली. दमयंतीजी की ओर मुखातिब हो कर इंस्पैक्टर बोला, आप को थाने में बुलाया जा सकता है. हांहां इंस्पैक्टर साहब, आप बेहिचक मुझे बुला सकते हैं. मेरा तो काम ही है महिलाओं के दुखसुख में साथ देना, उन की सेवा करना. यहां तो दुष्टों ने अच्छीभली महिला को डायन बता कर मारापीटा और वहशियाना व्यवहार किया है, यहां तक कि उसे मैला तक पिलाया गया. दमयंतीजी बड़ी भली महिला समाजसेविका थीं. लोग उन का आदर करते थे. उन्होंने कम्मो को जरूरी बातें समझाईं और बोलीं, तुम कोई भी बात बेझिझक मुझ से बता सकती हो. देखो, तुम चिंता तो बिलकुल मत करो. हमारी सोसायटी तुम्हारी मां के इलाज का खर्चा उठाएगी. अच्छा, अब मैं जा रही हूं.

तभी छोटा बंशी अपनी मां को ले कर आ पहुंचा. उसे देख कर कामिनी फिर सिसकने लगी, सुबकते हुए बोली, देखो मौसी, मां की क्या हालत बना दी है बदमाशों ने. बंशी की मां अवाक् हो कर मालती को देखते हुए बोली, घबराओ नहीं, बेटी, जिस ने यह सब किया है उस की सजा उसे अवश्य मिलेगी. बंशी की मां ने दमयंतीजी को देखते हुए प्रणाम किया तो वे बोलीं, देखिए, मालती का ध्यान रखिएगा, और आप आज यहीं रह जाइए न. कामिनी को भी आप के रहने से अच्छा लगेगा और सहारा भी रहेगा. अच्छा, मैं अब चलती हूं. कल आने की कोशिश करूंगी. बंशी की मां सिर हिलाते हुए बोली, हांहां, मैं रह जाऊंगी. आप निश्ंिचत हो कर जाइए. दूसरे दिन अखबार में झारखंड समाचार पृष्ठ पर कम्मो थी. प्रोफैसर दीदी ने जब यह समाचार पढ़ा तो उन के रोंगटे खड़े हो गए. वे आज अपनी आंखों से देखना चाहती थीं कि डायन का आरोप लगा कर किस तरह बेसहारा, अनाथ महिलाओं पर अत्याचार किया व उन्हें प्रताड़ना दी जाती है व कई तरह के अमानवीय व्यवहार किए जाते हैं. यहां तक कि नंगा कर के पूरी बस्ती में घुमाया जाता है. वे मालती और कामिनी से मिलने अस्पताल पहुंचीं. मालती को होश आ गया था लेकिन दवा के असर से सो रही थी. अभी वे उन लोगों का हाल पूछ ही रही थीं कि दमयंतीजी भी 2 महिला साथियों को ले कर पहुंच गईं. सभी वार्ड के बाहर के बरामदे में बैंच पर बैठ गईं.

प्रोफैसर दीदी से उन की जानपहचान थी. आपस में अभिवादन के बाद पूरा हालचाल जानने के बाद सभी महिलाएं अस्पताल के बरामदे में लगी कुरसियों पर बैठ गईं. वे गिरीडीह के पौश इलाके के पढ़ेलिखे सभ्य लोगों के आवास के बगल में बसी इस बस्ती में इस तरह के जघन्य अपराध पर चिंता प्रकट करने लगीं. प्रोफैसर दीदी ने कहा, दमयंतीजी, दोषियों को सजा दिलवाना हम महिलाओं का फर्ज बनता है. एक सीधीसादी, घरों में चैकाबरतन करने वाली विधवा और बेसहारा महिला को प्रताड़ित कर अधमरा कर देना घोर अपराध है. हांहां, जिस राजनीतिक दबंग, स्वयंभू नेता रूपचंद ने यह सब करवाया है उस ने बदले की भावना के तहत किया है. मैं ने पता कर लिया है, कई दिनों से कामिनी को बारगर्ल बनाने के लिए मुंबई भेजने के लिए वह मालती पर जोर डाल रहा था. उस के न कहने के बाद उस ने यह ओछी हरकत की है.

ओ, अच्छा, प्रोफैसर दीदी अवाक् रह गईं.

मुझे यह भी पता चला है कि वह बारगर्ल बनाने का लालच दे कर और उन के मांबाप को रुपएपैसे दे कर न जाने कितनी लड़कियों को बहलाफुसला कर ले जाता है मुंबई और वहीं पर सैक्स रैकेट चलाता है. इस में तो वह अकेला है नहीं. बड़ेबड़े दिग्गज भी शामिल होंगे. तभी यह सब संभव भी हो पाता है.

मैं भी अपने कालेज की अन्य प्रोफैसरों को इस में शामिल करूंगी. हम सभी मिल कर विरोध में रैली निकालेंगे और दोषियों को सजा दिलवाने में मदद करेंगे, प्रोफैसर दीदी पूरे जोश के साथ बोलीं.

हां दीदी, किसी हाल में दोषियों को सजा दिलवाना जरूरी है, नहीं तो रूपचंद जैसे लोगों का मनोबल बढ़ता चला जाएगा. बहुत सूझबूझ और सावधानी से दोषी तक पहुंचना है. मुझे पता चला है कि इस में पुलिस को भनक है लेकिन सफेदपोशों की संलिप्तता के कारण अभी तक वह उन पर हाथ नहीं डाल पाई है, दमयंतीजी ने बहुत धीरेधीरे ये सब बातें बताईं. उन्होंने आगे कहा, सब से बड़ी बात यह है कि बस्ती के लोग तथा आसपास के लोग रूपचंद से काफी सहायता लेते रहते हैं. यहां की समस्याओं में लोगों का वह साथ देता है. इसी से उस के साथ कई चमचे लगे रहते हैं. लेकिन किसी भी तरह दोषी को सजा दिलवाना बहुत जरूरी है. है तो यह थोड़ा जटिल काम, उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा. सावित्री यानी प्रोफैसर दीदी बोलीं, हां दमयंतीजी, कठिन जरूर है परंतु जहां चाह, वहां राह मिल ही जाएगी. हम लोगों की नाक के नीचे ऐसी घटनाएं घटती रहें और हम शांति से बैठे रहें, यह नहीं हो सकता, हमें डटे रहना होगा. अन्य दोनों महिलाओं ने भी हामी भरी. फिर सभी अंदर आ गईं. वार्ड में डाक्टर आए हुए थे. सावित्री दीदी ने पूछा, डाक्टर साहब, अब मालती की तबीयत कैसी है? कब तक ठीक हो जाएगी यह?

अभी चोट वगैरह भरने में कुछ समय तो लगेगा ही, उस के बाद छुट्टी मिल जाएगी, डाक्टर ने जातेजाते कहा. सावित्री दीदी बोलीं, देखो मालती, हम सब तुम्हारे साथ हैं, घबराना नहीं, हां. तो ठीक है, अब हम लोग चलते हैं.

मालती और कामिनी ने सभी को प्रणाम किया और आश्वस्त हो कर सिर हिलाया. दमयंतीजी ने मुसकरा कर सिर हिला दिया. बंशी की मां रात में अस्पताल में ही थी. सभी महिलाएं एकसाथ अस्पताल से बाहर निकलीं और रिकशा या आटो की प्रतीक्षा करने लगीं. तभी पुलिस इंस्पैक्टर की जीप उन के बगल में आ कर रुक गई. इंस्पैक्टर ओझा दमयंतीजी की ओर मुखातिब हो कर बोले, दमयंतीजी, कैसी है मालती? जरूरी पड़ताल के लिए आया हूं. अच्छा है आप मिल गईं. उस रूपचंद ने किसी को डरायाधमकाया तो नहीं या किसी तरह से तंग करने की कोशिश तो नहीं की न?

नहीं इंस्पैक्टर साहब, यदि ऐसा होता तो मांबेटी हमें जरूर बतातीं, वे बोलीं.

ठीक है दमयंतीजी, चिंता मत कीजिए, जल्दी ही हम सबकुछ आप के सामने उजागर कर देंगे और दोषी बख्शे नहीं जाएंगे. अच्छा चलता हूं, और जीप आगे बढ़ गई. एकदो रोज सभी अस्पताल जाती रहीं. शहर की अधिकांश महिलाएं एकजुट हो गईं. महिलाओं की इस कदर जागरूकता देख बड़े नेता हरकत में आ गए. झारखंड पुलिस ने मुंबई पुलिस की मदद से वहां चलने वाले सैक्स रैकेट का परदाफाश किया और झारखंड की कई लड़कियां वहां से छुड़ाईं. लेकिन अभी तक रूपचंद और उस के साथी पकड़ में नहीं आए थे. वे फरार थे. आखिरकार, एक दिन वे झारखंड की राजधानी रांची के एक होटल में खाना खाते हुए पकड़े गए. कुछ महीने तक केस चला. कई लोगों की गवाहियां हुईं. कई सफेदपोश लोगों के चेहरे बेनकाब हुए. रूपचंद और उस के साथियों को जुर्माना भरना पड़ा और 5 साल की सश्रम सजा सुनाई गई. सफेदपोश तो जुर्माना और बेल करा कर बाहर आ गए लेकिन अन्य दोषियों को सजा भुगतनी पड़ी. इधर, अस्पताल से मालती और कम्मो को प्रोफैसर सावित्री अपने घर ले आईं.

दमयंतीजी अपनी 2-3 महिला साथियों के साथ मिठाई का डब्बा ले कर सावित्री दीदी के यहां पहुंचीं, दीदी, गले मिलें. आप सभी के साथ से ही मेहनत रंग लाई है. रूपचंद और उस के साथियों को जेल हो गई है. गले लगते हुए दीदी बोलीं, सब आप जैसी जुझारू महिला नेता के कारण ही तो संभव हो सका है. आप जैसी महिलाएं हर जगह हों तो एक दिन बदमाशों का अंत होगा ही.

नहीं, सावित्री दीदी, आप सभी शिक्षिकाओं ने भी कुछ कम नहीं किया है. अगर ऐसी ही जागरूकता हर जगह की महिलाओं में आ जाए तो आएदिन झारखंड, बिहार तथा अन्य जगहों में भी घटती ऐसी घटनाओं में लिप्त अपराधी अपराध करने से पहले एक बार सोचेंगे जरूर. कुछ नहीं करने से वे बेखौफ होते जाते हैं, दमयंतीजी बोलने के मूड में थीं. अभी गपशप चल ही रही थी कि मालती और कामिनी ने आ कर उन लोगों को नमस्कार किया. उन्हें देखते ही सभी के चेहरे और खिल उठे, कैसी हो मालती? एकसाथ दोनों बोल उठीं, सब आप लोगों की दया और उपकार का फल है दीदी, मालती बोली, कल से कम्मो काम पर आएगी, दीदीजी, फिर दोनों मांबेटी जाने को तत्पर हुईं. सावित्री दीदी ने मिठाई बढ़ाते हुए कहा, अरे चाय तो पी कर जाओ. कम्मो झट से खड़ी हो गई, नहीं दीदी, मेरे रहते आप चाय बनाएंगी? अभी लाती हूं, और चल पड़ी वह रसोई की ओर.

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