दो बूढ़ी औरतें

-स्व. घनश्याम रंजन-

एक समय की बात है। दो बूढ़ी औरतें एक नदी के दोनों आमने−सामने के किनारों पर रहती थीं। वे दोनों अपनी बदमिजाजी के लिए बदनाम थीं। सूरज निकलने से पहले ही वे अपने−अपने किनारे पर आकर जम जाती थीं। और सूरज छिपने तक झगड़ती रहती थीं। किसी को मालूम नहीं था कि उनके झगड़े का कारण क्या है।

उनमें से एक बुढ़िया की एक पोती थी। अपनी दादी के रोज−रोज के झगड़े से तंग आ कर एक दिन वह अपनी दादी से बोली, दादी, नदी किनारे जा कर झगड़ा न किया करो। अगर तुम झगड़ने नहीं जाओ तो वह भी किससे झगड़ेगी?

बुढ़िया चीखी, मैं यह कभी नहीं होने दूंगी कि आखिर बात उसकी रहे।

लेकिन एक दिन लड़की की दादी बीमार पड़ गई। और बिस्तर से लग गई। दूसरे दिन तड़के ही लड़की ने दूसरी बुढ़िया को किनारे पर चीखते हुए सुना।

लड़की नदी के किनारे जा कर खड़ी हो गयी और देखने लगी कि आज वह क्या करती है।

लड़की को देखकर वह बुढ़िया चीख कर बोली, ओ शैतान की लड़की, ठहरी रह। अभी आकर मैं तेरे बाल नोचती हूं।

बुढ़िया नदी के बिछे पत्थरों पर चल तेजी से चल कर इस पार आने लगी। लेकिन बीच नदी तक पहुंचते−पहुंचते एक पत्थर पर से उसका पैर फिसला और वह नदी में जा गिरी।

बुढ़िया के गिरने पर दुःखी हो कर लड़की उसे बचाने के लिए नदी में कूद पड़ी। और जल्दी से तैर कर उसके पास जा पहुंची। उसने उसे खींच कर बाहर निकाला। फिर उसे एक सूखे पत्थर पर बैठा दिया। लड़की ने उस बढ़िया के उलझे बाल भी ठीक से बांध दिये।

बुढ़िया थोड़ी देर शांत रही। फिर अपने को बचाने वाली लड़की की ओर देख कर रोने लगी। और उस लड़की के प्रति किये गये अपने बुरे व्यवहार पर लज्जित भी हुई।

लड़की ने किसी तरह से उसे चुप कराया। उसके बाद बुढ़िया एक शब्द भी नहीं बोली। चुपचाप वापस अपने घर चली गयी। उसने उस दिन के बाद से फिर कभी झगड़ा नहीं किया।

लड़की के अच्छे व्यवहार से झगड़ा हमेशा के लिए खत्म हो गया।

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