पहले मोहल्लई में कोऊ न जानत तौ, अब वे इलाके के दद्दा बने हैं

विक्रम सिंह.

भिण्ड,  संत शिरोमणि परशुराम दास महाराज जी की तपस्थली महदवा में महामंडलेश्वर रामेश्वर दास जी महाराज द्वारा की जा रही श्रीमद्भागवत कथा के दरम्यान कविसम्मेलन का आयोजन किया गया; जिसकी अध्यक्षता पतिप्रसाद सिंह मेंबर ने की। कवि सम्मेलन में सेवड़ा दतिया से वरिष्ठ गीतकार रामस्वरूप स्वरूप, भिण्ड से डॉ.सुनील त्रिपाठी निराला, लहार से हरिहर सिंह मानसभृंग, भिंड से आशुतोष शर्मा नंदू, सेवड़ा से निरंजन दत्त जानू, रौन से गीतकार डॉ शिवेंद्र सिंह शिवेंद्र, रमपुरा से कीरत सिंह यादव, मिहोना से सत्येंद्र सिंह चौहान, मेहदवा के चुटकुला किंग पुत्तन सिंह कुशवाह आदि ने भाग लिया। इसका संयोजन एवं संचालन हरीबाबू शर्मा निराला मिहोना ने किया।
काव्यपाठ के क्रम में सुनील त्रिपाठी निराला भिण्ड ने कहा कि अंधेरी रात, दोपहरी, सुबह-ओ-शाम रहता है।

गरज़ ये है कि दिल बेचैन, आठों याम रहता है।।
निराला भूख है, ना प्यास है, ना नींद ही आए,

हमारे होंठों पे केवल उसी का नाम रहता है। नेताओं पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कि कुर्ता जरीदार, मंचों के मेहमान, डीएम के ठीक दाएं डटे हैं।

देखो तमाशा सियासत का भाई लुटेरों की रक्षा में गारड लगे हैं।।
सूरा के पांव बटेर दबी है सो चुन चुन के खूबइ निशाने लगे हैं।
पहले मोहल्लइ में कोऊ न जानत तौ, अब वे इलाके के दद्दा बने हैं।।

डॉ.शिवेंद्र सिंह शिवेंद्र ने कहा कि अगर आकाश छूना हो पिता की छांव छू लेना। जो दुनिया देखना चाहो तो अपना गांव छू लेना। सम्मेलन के आयोजक गिरनाथ सिंह, हरनाथ सिंह, सत्येंद्र सिंह राजू थे। देर रात तक चले इस कार्यक्रम में कविताओं के रंग बिखरते रहे।

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