अब कहाँ चले गए वरद मूर्ति मिश्रा ?

सुबोध अग्निहोत्री

शासकीय नौकरी से इस्तीफा देकर चर्चाओं मे आये वरद मूर्ति मिश्रा विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर गायब हैं। आईएएस से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने सरकार व सरकारी तंत्र पर तमाम आरोप लगाकर वास्तविक भारत पार्टी के गठन का एलान कर दिया और बाकायदा प्रेस कॉफ्रेंस कर विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा तक कर दी थी। राजनीति की चौसर बिछ चुकी है। विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई, राजनीतिक दलों के सर्वे हो गए। प्रमुख राजनैतिक दलों ने अपने प्रत्याशी भी मैदान में उतार दिये। लेकिन इस चुनावी समर से वरद मूर्ति गायब हैं। न तो वे स्वयं मैदान में दिख रहे हैं, न प्रत्याशी और न ही उनकी पार्टी।

आईएएस वरद मूर्ति मिश्रा ने इस्तीफा देकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा था कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों में प्रशासनिक समझ कम है तथा दूरदर्शिता के अभाव के चलते पूरे प्रदेश में विकास बाधित हो रहा है। उन्होंने यहां तक कहा कि वर्तमान सरकार तो हर मोर्चे पर विफल है।

नई पार्टी के गठन के बाद श्री मिश्रा ने प्रदेश की जनता के नाम संदेश भी लिखा, जिसमें लिखा कि सरकार ने कष्ट के अलावा कुछ नही दिया। विचारणीय प्रश्न है कि सरकार तो जैसे चलती है वैसे ही चलती है। श्री मिश्रा को ऐसा क्या चाहिये था जो नही मिल सका। उन्होंने यह भी कहा कि मैं व मेरे साथी एक राजनैतिक पार्टी के रूप में आपकी लड़ाई लड़ने को तैयार है।

उन्होंने यह भी कहा कि हम एक बेहतर शासन व्यवस्था, रोजगार का बड़े पैमाने पर सृजन, बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य, पेयजल, राशन की बेहतर उपलब्धता के लिये समर्पित होकर काम करना चाहते हैं। वे कहते है कि सरकारों ने जनता को कष्ट के अलावा कुछ भी नही दिया। इसलिये अच्छे, समझदार और विनम्र लोगो को अवसर दीजिये, ताकि वे आपकी सेवा कर सकें।

वरद मूर्ति मिश्रा की सोच तो बहुत अच्छी है। इसी सोच को लेकर भिण्ड के  निवासी राजीव शर्मा ने शहडोल कमिश्नर के पद से इस्तीफा दे दिया और भिण्ड पहुंच गए। उनका त्यागपत्र सशर्त मंजूर भी हो गया। उनके मन में भी भिण्ड के लिये कुछ करने की ललक जगी है।

उन्होंने भी कहा कि लगभग सभी पार्टियों से उन्हें टिकिट के ऑफर मिले हैं। लेकिन अभी तक किसी पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी नही बनाया है। लगभग यही सेवा की सोच मिश्रा जी की भी है। लेकिन अभी तक उनका कही कोई अता-पता नही है। अब जनता उन पर कैसे भरोसा करे कि उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कुछ कहा था, क्या वह सही था। क्योंकि ऐन चुनाव के वक्त वे चुनावी प्रक्रिया से बाहर हैं। न वे दिख रहे और न उनकी पार्टी।

दरअसल लोग सरकारी सेवा में रहकर यह भ्रम पाल बैठते हैं कि उन्होंने ही जनता की सेवा की है। बाकी सब झूठ है। मान लें कि मिश्रा जी ने सही कहा तो फिर उन्हें मैदान में तो आना ही चाहिये था। इसी कड़ी में निशा बांगरे भी अपना इस्तीफा मंजूर कराने पैदल यात्रा कर रही हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। पूर्व नौकरशाह अजीत जोगी, डॉ भागीरथ प्रसाद की बात अलग थी। वे नौकरशाह होते हुए भी राजनैतिक दलों के आकाओं के सीधे संपर्क में थे। इसलिये टिकिट भी पा गए और जीत भी गए। लेकिन अब तो वही सफल होगा जो नौकरी में रहते हुये कार्यकर्ता की तरह कार्य करेगा। क्योंकि अब राजनीति भी बदल गई, राजनीति के मायने भी बदल गए और राजनीति की सोच भी बदल चुकी है।

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