भक्ति, सच्चे भक्त बनकर करना चाहिए, भिखारी बनकर नहीं-: मुनिश्री विनय सागर

इंद्रा इंद्राणियो संगीतमय भजनों के साथ भगवान जिनेंद्र के समक्ष महा अर्घ्य समर्पित करें।

भिंड/ भगवान की भक्ति करने वाले, सच्चे भक्तों के जीवन में ‘बिन माँगे मोती मिले’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। भक्ति, सच्चे भक्त बनकर करना चाहिए, भिखारी बनकर नहीं। संत-समागम, परमात्मा की भक्ति, विनय एवं अतिथि सतकार करना, हित-मित मधुर वाणी बोलना, शुद्ध आचार-विचार एवं शुद्ध आहार रखना, संतान को सँस्कारवान बनाना, ईमानदार मित्र बनना एवं बनाना, ये सुख-शाँति एवं समृद्धिशाली परिवार बनाने के मुख्य सूत्र हैं।उक्त उदगार श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज ने संस्कारमय पावन वर्षायोग समिति एवं सहयोगी संस्था जैन मिलन परिवार के तत्वावधान में आज बुधवार को महावीर कीर्ति स्तभ में आयोजित 48 दिवसीय श्री भक्तामर महामंडल विधान में धर्मसभा को सांबोधित करते हुए व्यक्त किए।

मुनिश्री ने कहा कि चैत्य का अर्थ प्रतिमा होता है और प्रसाद का अर्थ भवन होता है। जहाँ प्रतिमा विराजित हो उसे चैत्यालय, मंदिर या देवालय कहते हैं। जैसे किसी कागज के टुकड़े पर भारतीय रिजर्व बैंक आफ इण्डिया के गवर्नर के हस्ताक्षर एवं सील लगा देने से मुद्रा बन जाती है। वैसे ही पददलित अपावन भी आचार्य के मंत्ररूपी सील लगाने से पूज्य परमात्मा बन जाता है। जैसे एकलव्य ने गुरू द्रोणाचार्य के अभाव में भी, मिट्टी की मूर्ति को गुरू मानकर, धनुष विद्या की सिद्धि कर ली। वैसे ही प्रतिमा स्थापित कर के भक्त मोक्ष की सिद्धि कर लेता है। जैसे राम के वनवास होने पर, भरत ने चरणपादुका रखकर, उन्हें ही राजा की प्रतीक मानकर, राज्य संचालन किया वैसे ही साक्षात् भगवान के अभाव में, उनकी प्रतिमा रखकर धर्मतीर्थ का संचालन, पूजापाठ आदि क्रिया करके किया जाता है।

मुनिश्री ने मंत्रो की आरधान से भगवान जिनेंद्र का कराया अभिषेक, हुई शांतिधारा।

मुनिश्री के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज के सानिध्य एवं विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ग्वालियर के मार्गदर्शनो में केशरिया वस्त्रों में इंद्रो ने मंत्रो के साथ कलशों से भगवान आदिनाथ का जयकारो के साथ अभिषेक किया। मुनिश्री ने अपने मुख्यबिंद मंत्रो से भगवान आदिनाथ के मस्तक पर पदमचंद जैन परिवार ने की शांतिधारा। मुनिश्री को शास्त्रभेट समजाजनो ने सामूहिक रूप से भेट किया। आचार्यश्री विराग सागर, विनम्र सागर के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन पदमचंद रवि सौरभ जैन वितौली वाले परिवार द्वारा किया।

भक्तमार महामंडल विधान में संगीतमय पूजन के साथ चढ़ाये महाअर्घ्य।

श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज के सानिध्य में विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ने भक्तमार महामंडल विधान में पदमचंद रवि सौरभ जैन वितौली वाले परिवार एवं इंद्रा इंद्राणियो ने भक्तामर मंडप पर बैठकर अष्ट्रद्रव्य से पूजा अर्चना कर संगीतमय भजनों पर भक्ति नृत्य करते हुए महाअर्ध्य भगवान आदिनाथ के समक्ष मंडप पर समर्पित किए।

संसार से पार लगाने वाले देव, गुरू और शास्त्र हैं। इन तीनों पर श्रद्धान करना

मुनिश्री विनय सागर ने कहा कि इन तीन का बड़ा महत्व है। संसार से पार लगाने वाले देव, गुरू और शास्त्र हैं। इन तीनों पर श्रद्धान करना सम्यकदर्षन कहलाता है। सम्यकदर्षन, सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनों को धारण करके परमात्मा से मिलन किया जा सकता है अथवा यही तीन आत्मा को परमात्मा बनाते हैं। संसार में झगड़े की तीन जड़ होती हैं। कहा भी है जर(धन), जोरू(पत्नि), जमीन, झगड़े की जड़ तीन है। आदमी के अंदर तीन चीजें क्रोध पैदा करती हैं, स्वामित्व, कत्र्तव्य एवं भोगतृत्व शक्तिशाली बनाती है। साधु साधना में जुटे, लोकप्रिय बनने में नहीं। लोकप्रिय बनने की चाहत साधुओं की साधना में बाधक होती है। आपा खो जाना मानसिक कमजोरी है। खुद पर काबू पा जाना आध्यात्मिक साधना है। सहयोग/परोपकार की भावना व्यक्ति के विशाल हृदय की परिचायक है।

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