अपेक्षाएं (कहानी)

-सुभाष चंद्र कुशवाहा-दशहरे की छुट्टियों में मैं गांव में था। घर-बार, बाग-बगीचे, ताल-तलैये, बंसवारी अपनी जगह थे, थोड़ी-बहुत आकार-प्रकार की भिन्नता के साथ। पुराने संगी-साथियों में कुछ थे, कुछ काम-धंधे के वास्ते बाहर गए थे। धान की कटाई हो…
Read More...

कहानी: समय की तंगी

-सुनील सक्सेना-जगदीश के पिता के देहांत की सूचना उसे सुबह-सुबह रमाकांत के फोन से मिली। कुछ देर में वह जगदीश के घर पहुंच गया। लेकिन सुबह रमाकांत की बातों, फिर अपनी पत्नी के हाव-भाव और जगदीश के घर पर भी उसे…
Read More...

इंतजार (कहानी)

उस लड़की से सही तो तुम ही हो। मेरे पास धूप में बैठ गए। उसे तो मेरे करीब आने का समय नही है। और न ही दरवाजे पर। कि मै उसे देख सकूं।
Read More...

मिर्च-मसाले (कहानी)

-रीता कुमारी-हर रिश्ते में कुछ खट्टा तो कुछ मीठा होता है, मगर सास-बहू के रिश्ते की बात ही अलग है। यहां तो खट्टे-मीठे के अलावा मिर्च-मसाला भी खूब होता है। जिस तरह सेहत के लिए हर स्वाद जरूरी है, उसी तरह रिश्ते के इस कडवे-तीखे स्वाद के…
Read More...

दीपक बन प्रकाश कर

 उधव कृष्ण क्यों हताश है, निराश है क्यों चिन्ता क्यों तुझे घेरे हैनिराश जीवन में अंधियारा क्यों बिखेरे हैचिंता को चिता पर रख दे, निराशा को रख जूते की नोंक पर!जाग....! काम, क्रोध, मोह को त्याग! ज्ञान का सूर्य…
Read More...

कहानी: पत्नी का पत्र

-रवींद्रनाथ टैगोर-  (अनुवाद - अज्ञेय)श्रीचरणकमलेषु,आज हमारे विवाह को पंद्रह वर्ष हो गए, लेकिन अभी तक मैंने कभी तुमको चिट्ठी न लिखी। सदा तुम्हारे पास ही बनी रही - न जाने कितनी बातें कहती सुनती रही, पर चिट्ठी लिखने लायक दूरी कभी नहीं…
Read More...

जिस्म (कहानी)

-मोनिका गजेंद्रगडकर-सरकारी वकील ने काला चोगा कांधे पर सरकाते हुए सायरा से पूछा, आपके शौहर की दूसरी बीवी थी मुमताज?जी। बुरके के जाली को ढक रहे आवरण को उछालकर सिर पर धर देने के प्रयास में सायरा के हाथ की उंगलियां कांपती-सी लग रही थीं।…
Read More...

कविता

हंसने दो-जयचन्द प्रजापति कक्कू-मांमैं मां नहीं बनना चाहतीअभी खेलना चाहती हूंलुका छिपी का खेलकरना चाहती हूं ठिठोलीउड़ना चाहती हूंसपनों का पंख लगाकर,यह लिपस्टिकये चूड़ियाये बालियांघूंघरू…
Read More...

बेबस, बेसहारा,बेजुबान सा हु मै,

शमा अंसारीबेबस, बेसहारा,बेजुबान सा हु मै, हाँ मैं हूं एक मजदूर, हां वो मैं ही हु जो फिरता है दर-दर,बस एक रोटी की चाह में,हां वही रोटी जो टुकड़े टुकड़े होकर,पेट भरेगी कई हिस्सों का, रहते हो तुम जीन महलों मैं, ये मत भूलो कि उसकी नीव…
Read More...

कविता: प्रभु से पुकार

-राकेशधर द्विवेदी-आज अखबार में एक खबर छपी हैभुखमरी से एक किसान की मृत्यु हुई हैरोटी, कपड़ा और मकान का सपना लिएमर गया एक इंसान धूप में तपता हुआविकास और प्रगति की ये अधूरी तस्वीरेंमिटा न पाई पेट की भूख को पूरी…
Read More...