अपेक्षाएं (कहानी)
-सुभाष चंद्र कुशवाहा-दशहरे की छुट्टियों में मैं गांव में था। घर-बार, बाग-बगीचे, ताल-तलैये, बंसवारी अपनी जगह थे, थोड़ी-बहुत आकार-प्रकार की भिन्नता के साथ। पुराने संगी-साथियों में कुछ थे, कुछ काम-धंधे के वास्ते बाहर गए थे। धान की कटाई हो…
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