ब्रेकिंग न्यूज के उतार चढ़ाव

-सुदर्शन कुमार सोनी-

आजकल ब्रेकिंग न्यूज का जमाना है कोई भी चैनल खोलो नीचे की पट्टी में कभी भी ब्रेकिंग न्यूज ब्लिंक होती रहती है। ब्रेकिंग न्यूज का मतलब है जो आपका ध्यान चल रहे कार्यक्रम से ब्रेक कर दे और आपकी उत्सुकता इसमें बनी रहे कि कब इसका प्रसारण हो और आप इससे मरहूम हो! पहले पहल तो ब्रेकिंग न्यूज वास्तव में अति महत्वपूर्ण न्यूज ही हुआ करती थी कि आपका ध्यान चल रहे कार्यक्रम से हटाना आवश्यक होता था, जैसे कि यदि कहीं कोई गंभीर आतंकवादी घटना हो गयी हो जिसमें बड़ी संख्या में लोगों को जान से हाथ धोना पडा़ हो, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति कि मृत्यु हो गयी हो, कोई बड़ी रेल दुर्घटना हो गयी हो, कहीं भूकम्प या अन्य प्राकृतिक आपदा हो गयी हो और फलस्वरूप बड़ी संख्या में जानमाल का नुकसान हो गया हो आदि आदि।

धीरे-धीरे ब्रेकिंग न्यूज की धार भी लगता है ब्रेक हो रही है? अब किसी भी समाचार या घटना को जरूरत पड़ने पर ब्रेकिंग न्यूज के रूप में पेश कर दिया जाता है और उसे इस तरह से पेश किया जाता है कि उत्सुकता खत्म न हो उसे इसलिये जरूरत से ज्यादा समय तक न्यूज केप्शन को ब्लिंक किया जाता है, कई बार तो पंद्रह मिनट से आधे घंटे बीत जाते हैं परंतु यह ब्रेकिंग न्यूज आती नहीं है। खाना खाते हुये टीवी देख रहा व्यक्ति उत्सुकता में निवाला हाथ में ही पकड़े रह जाता है और जब उसे ध्यान आता है कि एैसे में तो वह आधेपेट रह जायेगा तो वह फिर से निवाला मुंह के अंदर डालता है! वाह रे ब्रेकिंग न्यूज कुपोषित बच्चों के देश में तो एैसे में बड़े भी कुपोषित हो जायेंगे?

अब ब्रेकिंग न्यूज आयी भी है तो आप ही तय करें कि यह कितनी ब्रेकिंग है सोलन में दो सिपाहियों में गोलीबारी एक गंभीर रूप से घायल दूसरी देखे आपको कितना ब्रेक कर पायेगी लड़की को घूरने के आरोप में दिल्ली में एक व्यक्ति को पुलिस ने गिरफतार किया एक और देखे अलीगढ़ में गर्मी आने के पहले ही पानी की कमी की गर्मागर्मी में मारपीट में दो परिवारों के आधा दर्जन लोग घायल। चैनल वाले करें भी क्या उन्हें तो रोज और अब हर घंटे ब्रेकिंग न्यूज देना है तो जो समझ में आयी या मिली उसे ही ब्रेकिंग के रूप में परोस दी अरे भाई गंगू कहता है देखने वाले को एैसे मत ब्रेक करो नहीं तो एकदिन ब्रेकिंग न्यूज पूरी तरह ब्रेक हो चुकी होगी।

आजकल जनआंदोलन का जमाना है चाहे जो आंदोलन करता है या उपवास पर बैठ जाता है कब कंहा कौन किसलिये आंदोलन पर बैठ जायेगा यह तो बैठने के बाद ही पता चलता है! हर आदमी महात्मा गांधी बनना चाहता है लेकिन आजतक कोई बन नहीं पाया है! तो जब एैसा होता है तो इनके कार्यकलाप इनकी्रमेंन्टल ब्रेकिंग न्यूज का अच्छा मसाला बन जाते हैं जैसे कि फलां ने उपवास शुरू किया एक ब्रेकिंग न्यूज, तीन दिन बाद दूसरी न्यूज की उनका स्वास्थ्य खराब हुआ, पांच दिन बाद न्यूज डाक्टरों की टीम ने जांच की अस्पताल में शिफ्ट किया और उधर सर्मथको ने नारेबाजी की कि सरकार का कोई नुमांईदा नही पंहुचा है मतलब एक ही शख्स ने ब्रेकिंग न्यूज की सीरिज प्रदान कर दी! चैनल वाले तो खुश है कि चलो फंला के कारण ब्रेकिंग न्यूज की सीरिज ब्रेक होकर उसका टोटा तो नहीं हो रहा है!

अभी एक और प्रचलन हो गया है कि चैनल एक घंटे भी बिना ब्रेकिंग न्यूज के नही रह सकती है पहले तो दो चार दिन में एकाध बार ब्रेकिंग न्यूज आया करती थी। फिर पूरे दिन भर में मुश्किल से एकाध बार आती थी अब तो हर घंटे कोई न कोई ब्रेकिंग न्यूज आ जाती है। कई बारगी तो गजब हो जाता है कि एक ब्रेकिंग न्यूज आ भी नहीं पाई कि दूसरी के लिये ब्लिंक होना शुरू हो जाता है इतना काम्पीटशन आज इनके खुद के ही बीच हो गया है? मतलब ब्रेकिंग एक दूसरे की क्रेकिंग में ही लग जाती है! ब्रेकिंग में भी कौन किंग है इसका काम्पीटीशन शुरू हो जाता है!

देश व देश के लोग महान है कि कुछ न कुछ एैसा कर जाते हैं कि ब्रेकिंग न्यूज बन जाती है कुछ नहीं तो कहीं बच्चा खेलते खेलते बोरवेल में गिर जाता है फिर नगर पालिका, पुिलस व आर्मी से लगाकर सब अपना दांव आजमाते हैं कि बच्चा बच जाये यह एक्सटेन्डेड ब्रेकिंग न्यूज का उदाहरण है! यह कभी कभी दो तीन दिन तक चलती है। कुछ न हुआ तो किसी धार्मिक आयोजन में भगदड़ मच जाती है और महिलायें और बच्चे सबसे पहले काल कवलित होते हैं।

गंगू का मानना है कि जैसे हर चीज का इस जमाने में ह्रास हो रहा है तो ब्रेकिंग न्यूज में भी हो रहा है तो फिर केवल चैनल वाले ही क्यों दोषी है दोष तो जमाने व उसकी हवा का ही है।

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