आजाद हिंद फौज नेताजी का अधूरा सपना

दिल्ली चलो… यह नारा था आजाद हिंद फौज का, नेताजी सुभाष चंद्र बोस का। अंग्रेजों के चंगुल से देश को छुड़ाने निकली उस फौज का मार्चिंग सॉन्ग भी बनाया गया, इसी नारे को। उस गीत में कहा गया था, ‘चलो दिल्ली…चलो दिल्ली… चलो दिल्ली, जवानो, हिंद को आजाद करवाएं’। उसमें दिल्ली की पहचान भी बताई गई। वह दिल्ली, जहां यमुना किनारे अपना लाल किला है। उसी गीत में एक खास मकसद भी तय किया गया था। आज़ाद हिन्द फौज का गठन पहली बार रासबिहारी बोस द्वारा 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में हुआ था। मूल रूप से उस वक्त यह आजाद हिन्द सरकार की सेना थी, जिसका लक्ष्य अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्रता दिलाना था।

भारत जब 40 और 50 के दशक में अंग्रेजों की पराधीनता से बाहर निकलने के लिए कड़ी जद्दोजहद कर रहा था, तब आजाद हिंद फौज की स्थापना में पंजाबियों ने बहुमूल्य योगदान दिया। पंजाब के जनरल मोहन सिंह ने 15 दिसंबर 1941 को आजाद हिंद फौज की स्थापना की और बाद में 21 अक्तूबर 1943 को उन्होंने इस फौज का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया। हिंदुस्तान की आजादी के लिए अनेकों वीरों ने अपने आप को बलिदान (Sacrifice) की शूलियो पर चढ़ा दिया। हिंदुस्तान के स्वतंत्रता सेनानी तथा इनके सहयोगियों के बलिदानों को हम कभी नहीं चुका पाएंगे। परंतु इन तमाम स्वतंत्रता के पंक्तियों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का योगदान सराहनीय है। वे इंग्लैंड (England) से आईसीएस (ICS) की परीक्षा पास कर के भारत लौट आए और अंग्रेजों की गुलामी तथा नौकरशाही के शोषक बनने से साफ इनकार कर दिया।

जनरल मोहन सिंह का कहना था कि मातृभूमि की आजादी के लिए एक अलग सेना की बहुत जरूरत है, जो अंग्रेजों की सैनिक ताकत का मुकाबला कर सके। इसके लिए उन्होंने जापान से मदद हासिल करने का सुझाव भी नेताजी के सामने रखा था। फौज के तिरंगे झंडे में दौड़ते हुए शेर का चित्र अंकित किया गया, जो फौज की वीरता का प्रतीक था।

जर्मनी, जापान तथा उनके समर्थक देशों द्वारा ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ को मान्यता प्रदान की गई। इसके पश्चात् नेताजी बोस ने सिंगापुर एवं रंगून में आज़ाद हिन्द फ़ौज का मुख्यालय बनाया। पहली बार सुभाषचन्द्र बोस द्वारा ही गाँधी जी के लिए राष्ट्रपिता शब्द का प्रयोग किया गया। जुलाई, 1944 ई. को सुभाषचन्द्र बोस ने रेडियो पर गाँधी जी को संबोधित करते हुए कहा “भारत की स्वाधीनता का आख़िरी युद्ध शुरू हो चुका हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ चाहते हैं।” सुभाषचन्द्र बोस ब्रिगेड के सेनापति शाहनवाज ख़ाँ थे। सुभाषचन्द्र बोस ने सैनिकों का आहवान करते हुए कहा तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।

एक ओर जहां आजाद हिंद फौज को तीन ब्रिगेड सुभाष ब्रिगेड, गांधी ब्रिगेड और जवाहर ब्रिगेड के साथ-साथ महिला रेजिमेंट को लक्ष्मीबाई रेजिमेंट नाम दिया गया, वहीं नेताजी की फौज में निचले स्तर पर सैनिकों की भर्ती का पहला अभियान पंजाब में ही शुरू किया गया, जिसे जनरल हरबख्श सिंह ने संभाला।आजाद हिंद फौज की इस पहली भर्ती में पंजाब से अधिकतर किसानों और नौकरीपेशा लोगों ने अपनी सेवाएं प्रस्तुत कीं और देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज की वर्दी पहनकर जंग में उतर गए। बाद में जापान के युद्ध बंदी भी इस सेना का हिस्सा बन गए क्योंकि जापान का मानना था कि भारतीय भी अंग्रेजों की गुलामी झेल रहे हैं।

फ़रवरी से जून,1944 ई. के मध्य आज़ाद हिन्द फ़ौज की तीन ब्रिगेडों ने जापानियों के साथ मिलकर भारत की पूर्वी सीमा एवं बर्मा से युद्ध लड़ा, परन्तु दुर्भाग्यवश दूसरे विश्व युद्ध में जापान की सेनाओं के मात खाने के साथ ही आज़ाद हिन्द फ़ौज को भी पराजय का सामना करना पड़ा।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज की गतिविधियों ने देश में साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को और मजबूत किया। 1945 में सुभाष ने भारत माता की बेड़ियों को काटने के लिए दूसरा भयानक आक्रमण किया,परंतु जर्मनी की हार के साथ आजाद हिंद फौज का भाग्य ही बदल गया सैनिक गिरफ्तार कर लिए गए,विमान द्वारा नेताजी जापान जा रहे थे। रास्ते में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त (Accident) हो गया। 18 अगस्त सन 1945 के दिन यह घटना हुई। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का यह नारा अमर हो गया!!

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