हो सके तो जिन्दगी ले के आओ……

-सुशील याद-
हर निगाह चमक, हरेक होठ, हंसी ले के आओ
हो सके, कम्जर्फों के लिए, जिन्दगी ले के आओ,
इस अंधेरे में, दो कदम, न तुम चल पाओ, न हम
धुधली सही, समझौते की, रौशनी लेके आओ,
कुछ अपनी हम चला सके, कुछ दूर तुम्ही चला लो
सोच है, कागजी कश्ती है, नदी ले के आओ,
चाह के पढ़ नहीं पाते, खुदगर्जों का चेहरा
पेश्तर नतीजे आयें, रोशनी ले के आओ,
सिमट गए सभी के, अपने-अपने दायरे नसीब
पारस की जाओ ढूढ कहीं, कनी ले के आओ,
खुदा तेरे मयखाने, कब से प्यासा है रिंद
किसी बोतल कुछ बची हो, वो, बची ले के आओ।।

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