कबूतर और बहेलिया

जंगल में एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। उस पर तरह-तरह के पक्षी रहते थे। एक दिन एक बहेलिए ने आकर उस पेड़ के नीचे अपना जाल फैला दिया और दाने डालकर स्वयं उस विशाल पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया।

कुछ समय बाद उधर से कबूतरों का एक झुंड आता दिखाई दिया। बहेलिए की खुशी का ठिकाना न रहा। धीरे-धीरे सारे कबूतर दानों के लालच में आकर उस स्थान पर बैठ गए, जहां पर जाल बिछा हुआ था।

कुछ समय बाद सभी कबूतर बहेलिए के बिछाए जाल में फँस गये। कबूतरों में उनका राजा चित्रग्रीव भी था। दूर से बहेलिए को आता देख चित्रग्रीव ने कहा, ‘‘मित्रों यह हमारे लिए संकट की घड़ी है। किन्तु हमें घबराना नहीं चाहिए। संकट की इस घडी का हमें मिलकर मुकाबला करना चाहिए। तभी इस संकट से छुटकारा मिल सकता है।

सभी कबूतर भय से व्याकुल थे। तभी उनके राजा चित्रग्रीव ने उन सभी कबूतरों को एक साथ जाल लेकर उड़ने का आदेश दिया। सभी को अपनी जान प्यारी थी। इसलिए सभी एक साथ मिलकर जाल को उड़ा ले चले। बहेलिया हाथ मलता रह गया।

चित्रग्रीव ने सभी कबूतरों को एक दिशा में उड़ने का आदेश दिया। जाल को लेकर सभी कबूतर उस दिशा में उड़ चले। कुछ देर के बाद चित्रग्रीव ने कबूतरों को एक स्थान पर उतरने का आदेश दिया। सभी कबूतर उस स्थान पर उतर गये।

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