वो एक दिन…

-शबनम शर्मा-
मैंने जल्दी-जल्दी काम निबटाये,
कपड़े पहने और आँख बचाकर,
निकलना चाहा जब घर से,
कि नन्हीं कुंजू मुझसे लिपट गई,
‘माँ तुम कहीं मत जाओ, मैं तुम
संग खेलूंगी, बातें करूंगी,
मैं तुम्हें तंग न करूंगी।’
मैंने एक दस का नोट उसकी
तरफ बढ़ाया और कहा कि लो
चॉकलेट ले लेना।
वह दौड़ी अन्दर गई व अपनी
गुल्लक उठा लाई,
धड़ाम से पटकी जमीन पर दे
उसने सारे पैसे समेट कर,
मेरी झोली में डाल दिए,
व कहा माँ सारे पैसे ले लो
पर आज मुझे छोड़ मत जाओ।
मैं कितनी निष्ठुर बन गई थी कि
सब कुछ समेट, मुस्कराकर उसे
दे दिया और चल दी, अपनी
ममता का गला घोंट कर,
चन्द कागज़ के टुकड़े बटोरने,
जो मुझे सुख तो दे सकते हैं
पर खुशी नहीं। न जाने कब
स्कूल आ गया, मैंने इस्तीफा
प्रधानाचार्य की मेज़ पर रखा
और आ गई उस संग कुछ अनमोल
पल बिताने, जो एक बार जाकर
फिर कभी न आयेंगे।

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