भारत के मित्र, आबे जापान के सबसे अधिक समय तक रहे प्रधानमंत्री

टोक्यो/ नयी दिल्ली, 08 जुलाई,  जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे स्टील कंपनी की नौकरी से करियर की शुरुआत करके देश का सबसे अधिक समय तक नेतृत्व करने वाली हस्ती बने। उन्होंने एशिया प्रशांत की भू-राजनीतिक परिस्थितियों पर अपनी छाप छोड़ी जिसका प्रभाव लंबे समय तक महसूस किया जायेगा। श्री आबे शुक्रवार को जापान के पूर्व सैनिक की क्रूरता की भेंट चढ़ने से काफी पहले सत्ता की राजनीति से स्वास्थ्य कारणों से अलग हो चुके थे लेकिन जिस समय उन्हें नारा शहर में पूर्व नौसैनिक ने गोली मारी उस समय वह जनता के बीच थे और रविवार को होने वाले उच्च सदन के चुनाव के लिए अपनी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार कर रहे थे।

श्री आबे ने भारत और जापान के मैत्रीपूर्ण संबंधों को और प्रगाढ़ बनाया तथा उनके कार्यकाल में दोनों देशों के बीच व्यापार निवेश और रणनीतिक संबंधों के क्षेत्र में कई नयी पहल की गयीं। उन्होंने एशिया प्रशांत क्षेत्र में आस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत के साथ मिलकर एक क्वाड की पहल को गति दी और आज चार देशाें का यह समूह मूर्त रूप ले चुका है। श्री आबे ने अपने पहले कार्यकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर भारत और जापान के संबंधों को मजबूत करने की दिशा में ठोस कदम उठाये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ श्री आबे के दोस्ताना संबंध थे और श्री मोदी अपनी पिछली जापान यात्रा के दौरान जापान के पूर्व प्रधानमंत्री से मिलने गये थे। श्री मोदी ने श्री आबे के साथ उस मुलाकात का आज उल्लेख करते हुए उस समय की अपनी फोटो भी ट्विटर पर साझा की।

श्री आबे पहली बार 2006 से 2007 तक इस पद पर रहे। उन्होंने 26 सितंबर 2012 में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली तथा स्वास्थ्य संबंधी कारणों से 14 सितंबर 2020 को पद छोड़ दिया।

श्री आबे धुर दक्षिण पंथी संगठन निप्पन काइगी (जापान कांफ्रेस) के सदस्य थे। उन्हें दक्षिण पंथी लोक-लुभावन नेता के रूप में जाना जाता था तथा वह अपनी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में अति परंपरावादी नेता माने जाते थे। जापान में उनके कई राजनीतिक विरोधी उनकी नीतियों को प्रतिक्रियावादी और फासिस्ट करार देकर आलोचना करते थे लेकिन वह जनता के बीच लोकप्रिय प्रधानमंत्री थे। इतिहास के बारे में उनके दृष्टिकोण को लेकर चीन और दक्षिण कोरिया में आशंकायें व्यक्त की जाती थी। उन्होंने 2007 में इस रिपोर्ट का खंडन किया था कि दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने दूसरे देशों की महिलाओं को यौन इच्छा पूर्ति के लिए दासी बनाया था। श्री शिंजो आबे को जन्म 21 सितंबर 1954 में टोक्यो में शिंजुकू में हुआ था। इनके पिता का नाम सिंतारो आबे तथा माता का नाम योको आबे था। श्री आबे की पत्नी का नाम अकेई आबे है। श्री आबे ने जापान के सेइकेई विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की उपाधि ली थी, बाद में वह अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में पढ़ाई करने गये लेकिन पढ़ाई पूरी किये बिना स्वदेश लौट आये।

श्री आबे जापान के प्रमुख राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन राजनीति में कदम रखने से पहले अप्रैल 1979 में उन्हाेंने कोबे स्टील के लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने 1982 में कंपनी को छोड़ दी और विदेश मंत्री के कार्यकारी सहायक, लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (जापान) जनरल काउंसिल के अध्यक्ष के निजी सचिव और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के महासचिव के निजी सचिव सहित कई और सरकारी पदों पर रहे। उन्हें 1993 में पहली बार जापान की प्रतिनिधि सभा के लिए चुना गया था। प्रधानमंत्री जूनिचीरो कोईजूमि ने सितंबर 2005 में उन्हें कैबिनेट सचिव नियुक्त किया था, उसके बाद वह 2006 में जूनिचीरों के उत्तराधिकारी बने। वह 52 वर्ष की आयु में जापान के सबसे युवा और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जन्मे जापान के पहले प्रधानमंत्री बने। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से 12 सितंबर 2007 को इस्तीफा दे दिया। उनका स्थान यासुओ फुकुदा ने ले लिया, जो 16 महीने तक जापान के प्रधानमंत्री रहे।

श्री आबे ने फिर वापसी की और 26 सितंबर 2012 को लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा। पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव में उनका सामना पूर्व रक्षामंत्री शिगेरू ईशिबा से हुआ। अध्यक्ष के चुनाव में उन्होंने ईशिबा को हराया। वर्ष 2012 के आम चुनाव में उन्होंने अपनी पार्टी को भारी बहुमत से जीत दिलवाई, वह 1948 में शेगेरू योशिदा के बाद से कार्यालय में वापस जाने वाले पहले पूर्व प्रधानमंत्री बने। वह 2014 के आम चुनाव में गठबंधन साथी कोमिटो के साथ अपने दो-तिहाई बहुमत को बरकरार रखते हुए और फिर से निर्वाचित हुए और फिर 2017 के आम चुनाव में भी उन्होंने दो-तिहाई बहुमत को बरकरार रखा और फिर से निर्वाचित हुए। श्री आबे को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत ने उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा था।

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