कर्नाटक में लौह अयस्क निर्यात प्रतिबंध हटाने पर इस्पात मंत्रालय से मांगी राय

नयी दिल्ली 11 अप्रैल,  उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक में लौह अयस्क के निर्यात से प्रतिबंध हटाने की याचिका पर सोमवार को केंद्रीय इस्पात मंत्रालय से अपना पक्ष स्पष्ट तौर पर रखने को कहा। मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम. नटराज से कहा कि सरकार इस मामले में ‘व्यापक दृष्टिकोण’ रखने और इस्पात मंत्रालय को अपना रुख स्पष्ट करे। पीठ ने हालांकि, कहा कि खानन मंत्रालय ने प्रतिबंध हटाने की मांग संबंधी याचिका का समर्थन किया है, लेकिन याचिकाकर्ता एनजीओ ‘समाज परिवर्तन समुदाय’ ने याचिका का विरोध किया है। एनजीओ का कहना कहा है कि इस्पात मंत्रालय ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है।

कर्नाटक के खनिकों ने राज्य से लौह अयस्क के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। शीर्ष अदालत ने देश के निर्यात पर प्रतिबंध नहीं होने के तथ्य का जिक्र करते हुए पूछा “हम भी प्रतिबंध हटाना चाहते हैं। मान लीजिए अगर प्रतिबंध हटाने की अनुमति देते हैं तो बाजार में इतनी बड़ी मात्रा में लौह अयस्क आएगी। उसके बाद क्या की स्थिति होगी?” खनिकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने दलील देते हुए कहा कि निर्यात पर प्रतिबंध वाले आदेश को संशोधित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने निर्यात करने की पहले ही अनुमति दे दी थी, इसलिए इस्पात मंत्रालय के जवाबी हलफनामे की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हमें विदेशी मुद्रा की आवश्यकता है। लिहाजा, प्रतिबंध हटा दिया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान कई वकीलों ने निर्यात के पक्ष में दलीलें दीं।

एनजीओ की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि खानन बढ़ने से पर्यावरण संबंधी चिंताएं हैं। उन्होंने पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था क्योंकि सभी रिजर्व खत्म हो जाते।उन्होंने दलील देते हुए कहा कहा कि किसी खनन कंपनी के लाभ के लिए प्राकृतिक स्रोतों के दोहन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
श्री भूषण ने कहा कि इस्पात मंत्रालय ने हमेशा कहा है कि घरेलू उपयोग के लिए लौह अयस्क की कमी है और उसे इस तथ्य को अदालत के समक्ष रखना चाहिए।

इस्पात निर्माता निकाय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा,“हम कह रहे हैं कि जमीन पर लौह अयस्क को ई-नीलामी के लिए क्यों नहीं रखा जाता? अगर हम नहीं खरीदते हैं तो इसे निर्यात के लिए अनुमति दें।” गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने 18 अप्रैल 2013 को कर्नाटक के तीन जिलों से लौह अयस्क के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। साथ ही अधिकतम वार्षिक उत्पादन सीमा तय की थी। हालाँकि 29 जून, 2020 और 18 जुलाई 2019 की अदालत द्वारा नियुक्त ‘केन्द्रित अधिकार प्राप्त समिति’ की रिपोर्ट ने बल्लारी, चित्रदुर्ग और तुमकुरु जिलों से लौह अयस्क के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध से संबंधित शीर्ष अदालत के आदेशों की समीक्षा का समर्थन किया। केंद्र सरकार के खानन मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा है देश के अन्य हिस्सों में लौह अयस्क के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है। कर्नाटक में अभूतपूर्व अवैध खनन के कारण असाधारण स्थिति में प्रतिबंध लगाया गया था। अब स्थिति बदल गई है लिहाजा इन खानों को अन्य राज्यों की तरह निर्यात की अनुमति दी जा सकती है।

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