पाक में शहबाज

-सिद्धार्थ शंकर-

पाकिस्तान में इमरान खान की कुर्सी आखिरकार चली गई। अविश्वास प्रस्ताव पर नौ अप्रैल की देर रात हुए मतदान के नतीजों ने इमरान का अंक गणित बिगाड़ दिया। इस दौरान न तो इमरान खान नेशनल असेंबली में मौजूद थे और न ही उनकी पार्टी के सदस्यों ने मतदान में हिस्सा लिया। विपक्ष को 174 वोट मिले, हालांकि सरकार बनाने के लिए 172 वोट की जरूरत थी। इससे पहले इमरान नीत पीटीआई गठबंधन के पास 179 सदस्य थे, लेकिन एमक्यूएम-पी समेत बाकी सहयोगियों के साथ छोड़ने से उसके पास 164 सदस्य रह गए थे। दूसरी ओर विपक्ष की संख्या बढ़कर 177 मानी जा रही थी। इमरान के 24 सांसद बागी बताए जा रहे थे। बहरहाल अंतत: इमरान खान की सरकार गिर गई। इस बीच, पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री के नाम को लेकर भी चर्चा शुरू है। भारत समेत पूरी दुनिया की नजर इस पर है। हर कोई जानना चाहता है कि अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा। इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले विपक्षी दलों के नेताओं ने पहले ही पीएम पद के उम्मीदवार का नाम तय कर लिया था।

शनिवार को भी वोटिंग से पहले विपक्षी दलों के नेताओं ने बैठक की और इसमें शहबाज शरीफ को अपना नेता चुना। मतलब साफ है कि शहबाज शरीफ ही पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री होंगे। शहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। नवाज शरीफ के समय ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान गए थे। मौजूदा समय शहबाज पाकिस्तान की संसद में विपक्ष के नेता हैं। वह तीन बार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शहबाज उस पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जिसे पाकिस्तान का दिल कहा जाता है। दुनिया के हर हिस्से में नवाज और शहबाज के कनेक्शन हैं। हमारे देश से भी उनके अच्छे रिश्ते रहे हैं। नवाज लंदन में थे तो शहबाज ने पार्टी को बखूबी संभाला। नवाज के उलट शहबाज के पाकिस्तानी फौज के साथ अच्छे संबंध हैं। फौज का शहबाज को पूरा समर्थन है। शहबाज और नवाज के भारत से अच्छे रिश्ते रहे हैं।

दोनों देशों के बीच एक साल से ज्यादा वक्त से सीजफायर है। अब ये ज्यादा मजबूत तरीके से चल सकता है। पाकिस्तान सेना प्रमुख कमर बाजवा पिछले दिनों सीजफायर के मुद्दे को उठा चुके हैं। बाजवा का कहना है कि यदि भारत इस मुद्दे पर राजी है तो पाक को कोई आपत्ति नहीं है। साथ ही दोनों देशों के बीच आधिकारिक रूप से व्यापार शुरू हो सकता है। इमरान ट्रेड का विरोध करते रहे थे। इमरान खान ने सीधे तौर पर अमेरिका से पंगा लिया। चीन का साधना चाहा, लेकिन वो भी नहीं हो पाया। अब शहबाज शरीफ फिर से अमेरिका की ओर झुकेंगे। हालांकि, बहुत खुलकर नहीं। क्योंकि उन्हें कुछ महीने बाद चुनाव में जाना है और पाकिस्तान में अमेरिका विरोधी सेंटीमेंट्स हैं। इमरान इसे कैश करने की कोशिश करेंगे। नवाज सरकार के दौरान भी पाकिस्तान की अमेरिका समर्थक विदेश नीति रही थी। इमरान खान की तालिबान के प्रति ढुलमुल नीति के कारण पाकिस्तान की अफगानिस्तान से लगती सीमा पर बाड़बंदी का मामला विवाद का मुद्दा बना हुआ है। पाकिस्तान के सैनिकों को तालिबानी लड़ाकों की फायरिंग झेलनी पड़ती है।

तीन साल में पाकिस्तानी सेना के 550 से ज्यादा सैनिक मारे गए। शहबाज शरीफ अफगान तालिबान के साथ सुलह की कोशिश करेंगे। उन्हें मौलाना फजल-उर-रहमान का साथ मिलेगा। रहमान की तालिबान बहुत इज्जत करते हैं। शहबाज शरीफ अपने बड़े भाई और लंदन में इलाज के नाम पर रह रहे नवाज शरीफ की वापसी तय करेंगे। उनके लिए ये बिल्कुल मुश्किल नहीं होगा, क्योंकि अयोग्यता से जुड़ा विधेयक पारित कराया जा सकता है। नवाज पनामा पेपर्स में नाम आने के बाद से लंदन में हैं। शरीफ परिवार इसे हमेशा से राजनीतिक साजिश कहता रहा है। शहबाज पर भ्रष्टाचार के आरोप साबित नहीं हुए हैं। पाकिस्तान में बढ़ती महंगाई के कारण इमरान सरकार के खिलाफ अवाम में जबरदस्त गुस्सा है। महंगाई दर 14 फीसदी हो चुकी है। शहबाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती महंगाई को कम करना होगा। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेना पड़ेगा। चूंकि अमेरिका का साथ रहेगा, इसलिए ये मुश्किल तो नहीं होना चाहिए।

Leave A Reply

Your email address will not be published.