बलात्कारियों द्वारा नेताजी का अभिनन्दन

-गिरीश पंकज-

कुछ भूतपपूर्व और कुछ अभूतपूर्व बलात्कारी एक जगह एकत्र हो कर एक नेता जी का अभिनन्दन कर रहे थे। नेता जी ने काम ही ऐसा कर दिया था की उनका अभिनन्दन किया जाये। नेता जी ने पिछले दिनों युवा बलात्कारियों की हौसलाआफ़ज़ाई के लिए अद्भुत बयान दिया था, उन्होंने राष्ट्र के नाम सम्बोधन की शैली में कहा था कि युवको से गलती हो जाती है, जोश में होश खो कर बेचारे बलात्कार कर देते है, उनको इस गलती के लिए फांसी देना ठीक नही। इस बयान से कुछ युवक भयंकर उत्साहित हो गए और अभिनन्दन की ठान ली, ऐसे बेबाक चिंतक देश में हैं कहां? नेता जी भी बेचारे अभिनन्दन-लोभी थे, वे तैयार हो गए।

और शुरू हुआ अभिनन्दन का दौर।

सबसे पहले नेता जी बोले, भाइयो, कितनी खुशी की बात है क आज मेरा अभिनन्दन हो रहा है, बहुत दिनों से अभिनन्दन नहीं हुआ था। मुझे कैसा-कैसा तो लग रहा था, जीवन निरर्थक लगाने लगा था। नींद नहीं आती थी, लगता था जीवन निस्सार हो गया है, लेकिन आज तो चमत्कार हो गया है। इतने बलात्कारी -माफ़ करना दृ इतने युवक यहां एकत्र हुए हैं। तुम वीर युवक हो, अपना हर काम’ बहादुरी से करो। मैं वचन देता हूं कि जब मेरी सरकार बनेगी तो मैं हर वीर-बहादुर युवक को अतिरिक्त बेरोजगारी भत्ता दूंगा। ये वर्तमान सरकार कुछ भी नहीं समझती, अरे, बेरोजगार नौ जवान क्या खाली बैठेंगे? कुछ-न-कुछ तो करेंगे न? क्या हम उनको नकारा बना दें? ये गंदी सोच है। अरे, किसी ने जवानी के जोश में किसी लड़की से बलात्कार कर दिया तो क्या फांसी पर लटका दिया जाए ? ये कैसा कानून है? बेचारे युवक, आगे जा कर राजनीति में जायेंगे, विधायक या सांसद बनेंगे। मंत्री वगैरह बनेंगे। उनको बलात्कार के अपराध में फांसी दे देने से एक सम्भावना का अंत हो जायेगा, इसलिए मैं अगर सरकार में आया तो विशवास दिलाता हूं कि बलात्कार की सजा पर फांसी नहीं होने दूंगा। सजा भी कम करा दूंगा। कानून को सोचना चाहिए कि जोश में गलती हो जाती है, और इसके लिए क्या युवा वर्ग दोषी है? आजकल सिनेमा कितना गन्दा बन रहा है, वो उत्तेजना फैलाता है। देखिये जरा। लडकियों को, कितना गन्दा काम करती है। क्या बलात्कार के लिए उनका कोई दोष नहीं? बेचारे युवको के पीछे पड़े है सब। तो मेरे प्यारे युवको, तुम अपना वीरोचित कुकर्म -नहीं-नहीं- कर्म दृ कर करते रहो।, मैं तुम लोगों के साथ हूं। बोलो, मसाजवाद, नहीं-नहीं, समाजवाद की जै।

सबने समाजवाद की जय के नारे लगाए और बारी-बारी से नेता जी अभिनन्दन किया। किसी ने फूल माला पहनाई, किसी ने बुके दिया, तभी भीड़ से एक बूढ़ी औरत प्रकट हुयी और आगे बढ़ी। उसके हाथ में बुके था।यह देख कर नेता जी खुश, वे बगल बैठे बलात्कारी से बोले, देखो, ये बुढ़िया भी मेरा समर्थन कर रही है। धन्य है माते, नेता जी मुस्कराते हुए खड़े हो गए और बोले, आओ अम्मा।

बुढिया आगे बढ़ी, बुके दिया और नेता जी को एक चांटा जड़ दिया। बुढ़िया ने अचानक चांटा मारा था कि नेता जी उसे रोक नहीं पाये, बेचारे नेता जी। कुछ समझ भी नहीं पाये कि अचानक ये क्या हो गया। वो सोचने लगे कि अभिनन्दन समारोह में यह लतभंजन-समारोह कैसे हो गया?

 

बुढ़िया फुर्तीली थी, तेजी से आई, चांटा मारी, और निकल गयी। बूढ़ी थी इसलिये उसका लिहाज करके कोई उसे रोक भी नहीं पाया।

नेता अपने गाल सहलाते हुए जी बोले, ये कौन है, मुझे क्यों मारा.? ये विपक्ष की साजिश है।

वहां एक पत्रकार खड़ा था, वह बोला, इस बुढ़िया को यहां के लोग भारत माता कहते है? ये बहुत ही ‘डेंजरस’ महिला है, जहां कहीं गड़बड़ देखती है, खुद पहुंच जाती है। आपको आकर थप्पड़ मारा है, इसका मतलब है कि आपने कुछ -न- कुछ गलत बात की है।

नेता जी बोले, मैं और गलत? मेरा हर काम सही रहता है, मेरी गुंडा गर्दी सही है, मेरे लूटपाट सही है, मैं जो भी करता हूं, जनहित में करता हूं। मैंने बलात्कारियो के पक्ष में बयान दिया, वह भी सही है, लगता है इस बुढ़िया को मेरा बयान पसंद नहीं आया होगा, अरे, बूढ़ी है, वो क्या जाने कुछ?

अभिनन्दन करने वालों ने नेता जी की हां में हां मिलाई। और नारा लगाया,’नेता जी ज़िंदाबाद।

नेता जी बोले- देखो, भाई, राजनीति में थप्पड़, लात, अंडे-टमाटर वगैरह तो मिलते ही रहते हैं, हम लोग इन सबके आदी हो चुके हैं। बहादुर नेताओं के इन सबसे विचलित होने की ज़रुरत नहीं है। हे वीर युवको, तुम अपना काम सावधानी से करो, स्वामी विवेकानंद ने कहा था तुमको जो अच्छा लगता है, वह करो, यह मत सोचो की दुनिया क्या कहेगी। लोहिया जी भी कहते थे ज़िंदा कौमे ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकतीं। हमारे युवको की शादियां नहीं हो रही है, नौकरियां भी नहीं मिल रही है, तो बेचारे करें क्या? बैठे-बैठे भजन करें? स्वाभाविक है कि कोई लूट करेगा, कोई बलात्कार भी कर सकता है। ये एक मानवीय भूल है, गलती हैं, नादानी है। इसके लिए क्या किसी को फांसी पर चढ़ाया जाये? बच्चो की जान लोगे क्या? हद है, भई, मैं तो युवको के साथ हूं, बहादुर युवको, तुम देश के लिए भी काम करो। तुम लोगो में राजनेता होने के गुण है। अनेक नेता बलात्कारी, गुंडे, अपराधी होते है, तभी वे सफल; नेता बनाते है, सीधे-सादे लोग राजनीति में चल ही नहीं सकते इसलिए मैं तुम लोगों से कहूंगा की राजनीति को अपना कैरियर बनाओ। आओ, मेरे साथ आओ, मेरे दल में शामिल हो जाओ।

नेता जी को सुन कर युवको ने एक बार फिर ज़िन्दाबाद के नारे लगाये। नेता जी गाल सहलाते हुए हाथ हिलाते रहे और फिर अपनी कार की और बढ़ गये। लौटते वक्त उनकी नज़र कोने में खड़ी बूढ़ी औरत पर पडी, उन्हें लगा क वो उनकी और बढ़ रही है, नेता जी दौड़ कर कर के भीतर घुस गए। और ड्राइवर से बोला, फ़ौरन निकल लो प्यारेलाल।

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