सुहानी का लेखन : एक अभिरुचि
सुहानी जोशी
नैनीताल उत्तराखंड।
लिखने का शौक मेरा बचपन से ही रहा।जब कोई मुझे थोड़ी बहुत फटकार लगाता तो मैं उसे एक कॉपी में लिख लिया करती थी। यह कहना तो आसान नहीं कि मैं किसी भी तरह का लिख लेती हूं, लेकिन डायरी और कलम में फिरोकर अपनी भावनाओ को लिखती आई हूं। और मैं कह सकती हूं कि लेखन प्रक्रिया से मैं स्वयं को और भी बहुत अच्छी तरह जान पाई हूं। लिखना आसान नहीं होता लेकिन अपनी भावनाओ को शब्द में फिरोकर लिखो तो वो जरूर आसान हो जाता हैं। लिखना हमेशा मेरी अभिरुचि में रहा और धीरे धीरे समय निकाल मैं लिख लिया करती।कहने को तो मैं चित्र भी बना लिया करती हू और गायन की भी बड़ी रुचि मेरे भीतर रही लेकिन जो महत्व मैने लेखन को दिया तब से लेखन मेरा प्रिय अभिरुचि में शामिल हैं। इसे मैं प्रतिभा नही कह सकती अर्थात कह सकती हूं कि मेरी अभिरुचि से ही मैं सर्वाधिक कविताएं लिख पाई हूं। मेरी लेख अच्छी नहीं परंतु मैने कभी लिखना न छोड़ा।विषम परिस्थिति में लिख कर मन वास्तविक रूप से हल्का हो जाता हैं।कभी एक शांत कमरे में बैठ या शांत माहौल में बैठ अपने को अनुभव कर कुछ लिखो तो वो हमे बहुत सुख देता हैं।
मैं अपनी भावनाओ को स्वयं तक सीमित रखना अनुचित समझती थी इसीलिए मैंने कविताओं में अधिक जोर दिया परंतु मैने डायरी और कलम को भी अपने हाथ में जकड़े रखा। किताबे पढ़ना और भावो में खो जाना मेरी एक कला ही हैं।परंतु मैने स्वयं की भावनाओ को अभिरुचि के माध्यम से ही लिखा। मेरा कोई बड़ा मकसद नही रहा परंतु लिख कर मैं खुद को अनुभव करना चाहती थी और कुछ पल लेखन में बिताना चाह रही थी।ठीक उसी तरह लिखना मेरी कला बन चुकी हैं।अपनी अभिरुचि में मैं सर्वाधिक महत्व दूंगी तो वो अपने अनुभवों और भावनाओ को दूंगी।