सपनों को पालें कहां तक

 

-नाथ गोरखपुरी-

सपनों को पालें कहां तक

अपनों को संभाले कहां तक,

जो मेरी रूह के हर हिस्से में बसा

आखिर उसको निकाले कहां तक,

भूख ने उसके तोड़ दिए हैं दम को

फिर तो ढूंढे वह निवाले कहां तक,

नफरतों के उन्मादी बस्ती में बसकर

इंसानियत आखिर संभाले कहां तक,

इश्क में दिल से दिल जुड़ा करता है

लगेंगे मोहब्बत में ताले कहां तक,

तेरे सोहबत में मुझे मिला है बहुत कुछ

हम दिखाएं पाँव के छाले कहाँ तक।।

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