यूजीसी का ट्रांसजेंडर संबंधी सर्कुलर डीयू में छह साल से धूल चाट रहा है , दिल्ली यूनिवर्सिटी में नहीं बना ट्रांसजेंडर के लिए सेल।

 पांच साल से ट्रांसजेंडर कर रहे हैं अप्लाई, डीयू में नहीं है इनका कोई आंकड़ा।

नई दिल्ली, 22 अगस्त। जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, इलाहबाद यूनिवर्सिटी, जेएनयू, बीएचयू, इग्नू, लखनऊ यूनिवर्सिटी, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी ,एमडीयू, केयू और दिल्ली यूनिवर्सिटी समेत देशभर की तमाम सेंट्रल यूनिवर्सिटी, स्टेट यूनिवर्सिटी व डीम्ड यूनिवर्सिटीज को यूजीसी के चेयरमैन ने सुप्रीम कोर्ट के सात साल पहले एक फैसले के अंतर्गत जिसमें ट्रांसजेंडर्स को सुविधाएं मुहैया कराने की बात कही गई थी। उन्हें भी अनुसूचित जाति/जनजाति, ओबीसी समुदायों की तरह सुविधाएं देने की बात कही थी। आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए ) के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पी.सी. जोशी से एससी/एसटी सेल की तर्ज पर ट्रांसजेंडर के लिए सेल की स्थापना करने की मांग की है । उन्होंने चिंता जताई है कि यूजीसी द्वारा भेजे गए सर्कुलर को लागू नहीं किया है ,उसे तुरंत लागू करने की मांग की है ।

डीटीए के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि यूजीसी के चेयरमैन ने ट्रांसजेंडर छात्रों के कल्याणार्थ एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था। ऐसा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 15 अप्रैल 2014 के जजमेंट के बाद निर्णय लिया, उसके बाद यूजीसी की अंडर सेक्ट्ररी ने देशभर की सभी यूनिवर्सिटीज को एक सर्कुलर जारी कर निर्देश दिए थे कि यूनिवर्सिटी एवं कॉलेजों में ट्रांसजेंडर से संबंधित विभिन्न मुद्दों को उचित एवं प्रभावी तरीके से लागू करने के निर्देश दिए गए और इस संदर्भ में यूजीसी ने उचित कार्यवाही करते हुए एक्सपर्ट की एक कमेटी बनाकर इस बात को लागू करने की बात कही है । एक्सपर्ट कमेटी ने सुझाव दिया है कि इक्वल अपोर्चनीटी सेल को इस संदर्भ में रिसर्च और अन्य विभिन्न मुद्दों से संबंधित सभी जानकारी उपलब्ध कराएं ।

डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि सुप्रीम कोर्ट के 15 अप्रैल 2014 के जजमेंट के बाद यूजीसी ने सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को एक सर्कुलर जारी कर यह निर्देश दिया था कि इक्वल अपोर्चनीटी सेल के माध्यम से ट्रांसजेंडर को वे सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं जो उन्हें मिलती है।उन्होंने बताया है कि आज तक इन यूनिवर्सिटीज में ना तो सेल ही बना है और ना ही एडमिशन संबंधी गाइड लाइन ही बनी है ।डॉ. सुमन ने आगे बताया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के बाद से विभिन्न सेवाओं में आरक्षण उपलब्ध कराके उनके हितों की रक्षा के लिए विशिष्ट प्रावधान किया गया है और पिछले कई साल इनका अलग श्रेणी में दिल्ली यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रेशन किया गया था ताकि ये उच्च शिक्षा प्राप्त कर मजबूत बने।उन्होंने बताया है कि शैक्षिक सत्र 2016–17 में ट्रांसजेंडर के 15 छात्रों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया था। इसी तरह शैक्षिक सत्र 2017–18 में 86 ट्रांसजेंडर ने आवेदन किया था। उनका यह भी कहना है कि इन वर्गों के लिए आज तक कोई कमेटी नहीं बनी और ना ही इनके एडमिशन की नीति क्या होगी ,तय नहीं किया गया ।
डॉ. सुमन ने बताया है कि वर्ष 2018 में उन्होंने एडमिशन कमेटी की पहली मीटिंग में ट्रांसजेंडर संबंधी कई मुद्दों जैसे एडमिशन, हॉस्टल, स्कॉलरशिप व अन्य सुविधाओं पर चर्चा की थी लेकिन बावजूद इसके आज तक ना तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में इक्वल अपोर्चनीटी सेल द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं को कॉलेजों को सर्कुलर ही भेजा और न ही कोई नीति बनी है। इसी तरह से एससी, एसटी, ओबीसी और पीडब्ल्यूडी के एडमिशन को देखने के लिए विशेष सेल,ग्रीवेंस कमेटी और इनके लिए काउंस्लिंग, कैरियर संबंधी जानकारी देने की कमेटी ही बनी । उन्होंने आरक्षित श्रेणी के सभी उम्मीदवारों की संयुक्त कमेटी बनाने की मांग की है ।

थर्डजेंडर को चाहिए सम्मान–अक्सर देखने में आया है कि थर्डजेंडर के लोगों के साथ समाज का रवैया सदैव भेदभाव का रहा है। समाज में वे अपनी पहचान छुपाकर जीने को मजबूर है तमाम संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद समान व्यवहार तथा सम्मान उनके लिए भी एक स्वप्न है। देखा गया है कि अकादमिक जगत भी इससे अछूता नहीं है, यहां भी थर्डजेंडर छात्रों के साथ एडमिशन से लेकर हर स्तर पर भेदभाव होता है।उन्होंने बताया है कि वर्ष 2018 में मैंने एडमिशन कमेटी के सामने थर्डजेंडर के सामने आने वाली दिक्कतों को रखा। मेरा मानना है कि शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, सभी को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। थर्डजेंडर भी इसमें शामिल हैं।एडमिशन प्रक्रिया से लेकर शिक्षा तथा शिक्षण संस्थानों में हर प्रकार से उन्हें किसी भी तरह के भेदभाव से बचाने और सम्मान के साथ पढ़ने और जीने के लिए वे अपने प्रयास जारी रखेंगे।

समाज को भी जागरूक करना होगा–सामाजिक स्तर पर भी लोगों को इस संबंध में जागरूक करने की आवश्यकता है।शिक्षा से समाज आगे बढ़ता है और किसी भी समाज और देश के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए किसी को भी शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने डीयू प्रशासन से मांग की है कि पिछले छह साल से थर्डजेंडर यानि अन्य कॉलम एडमिशन फॉर्म में दर्शाया गया है लेकिन डीयू एडमिशन कमेटी या डीन के पास थर्डजेंडर में कितने एडमिशन हुए, या नहीं लिया अथवा छोड़कर चले गए कोई आंकड़े नहीं है।

इक्वल अपोर्चनीटी सेल में बना सकते हैं सेल—डीयू में इनके लिए अभी तक कोई सेल भी नहीं और न ही इनसे जुड़ा साहित्य, और अन्य सामग्री तथा उनके लिए सरकार की क्या योजनाएं लागू की गई है, कितना पैसा आया है किस मद में लगा कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने सरकार से भी मांग की है कि थर्डजेंडर के एडमिशन के लिए सरकार को चाहिए कि इनमें ज्यादा से ज्यादा शिक्षा का प्रचार प्रसार हो इसके लिए यूजीसी, एमएचआरडी को इस संदर्भ में विज्ञापन के लिए रेडियो, टेलीविजन चैनलों व समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर इन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक करना चाहिए।

डीयू में अलग से बने सेल व डीन—पीडब्ल्यूडी और थर्डजेंडर के लिए अलग से सेल बने और इनको बढ़ावा देने के उद्देश्य से शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए अलग डीन की पोस्ट बनानी चाहिए। डॉ. सुमन ने यूजीसी के चेयरमैन को पत्र लिखकर यह मांग की है कि वे सुप्रीम कोर्ट के उस जजमेंट की कॉपी और यूजीसी सर्कुलर फिर से सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटी, स्टेट यूनिवर्सिटी और डीम्ड यूनिवर्सिटीज के अलावा कॉलेजों को भेजे ताकि ट्रांसजेंडर समुदाय को एडमिशन लेने में कोई दिक्कत ना हो। उनके लिए विशेष सेल बने जहां से सारी इंफॉर्मेशन कॉलेजों को एक जगह मिल सके।

डॉ. सुमन ने पत्र में यह भी मांग की है कि यूजीसी के सर्कुलर जारी होने के बाद से सेंट्रल, स्टेट और डीम्ड यूनिवर्सिटीज और संबद्ध कॉलेजों में ट्रांसजेंडर्स के कितने एडमिशन अभी तक हुए हैं, उनके आंकड़े मंगवाएं जाएं। इन आंकड़ों को यूजीसी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दर्ज करें कि प्रति वर्ष कितने एडमिशन यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में हुए हैं।उनका कहना है कि कॉलेजों व यूनिवर्सिटी के पास ट्रांसजेंडर् संबंधी कोई डाटा नहीं है कि कितने छात्रों ने अप्लाई किया, कितने एडमिशन ले पाएं और कितने छोड़कर चले गए ,का कोई आंकड़ा अभी तक नहीं है।

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