बुद्धिजीवियों के सर्कस की लाइव कॉमेंट्री
उधव कृष्ण
छोड़ो यार क्या ही बोलूँ, यही सोच कर कई दिनों से चुप ही था मैं। क्योंकि किसी को क्या ही फ़र्क पड़ता है इससे, अब सब सही ही है शायद, इसलिए कोई चिंता नही है।
तो क्या हुआ जो लोकतंत्र धीरे-धीरे खत्म हो रहा है तो, होने दीजिए।
पर याद रहे विपक्ष को मारने वालों में हम और आप भी पूरे दोषी हैं, क्योंकि एक-एक मनगढ़ंत संदेश, व्हाट्सअप और फेसबुक पर शेयर किए गए पायरेटेड वीडियो/फोटो को जनता के हाथों ही जनता तक फ़ैलाया गया, लोग इसमें माध्यम बने और संचार को क़ायम किया गया। जो हवा बनी बह गई, रेत की इमारत थी सो ढह गई। हाँ इन संदेशों के फीडबैक के तौर पर छिटपुट नफ़रत फैलने की खबरें कहीं किसी कोने से यदा-कदा आ भी जाएं तो क्या गुनाह हो गया भड़काऊ कंटेंट शेयर करना! जी नहीं, ये मैं नहीं कहता ये तो बहुसंख्य लोग की वर्तमान सोच है।
उनकी सोच मेरे जबान से आगे सुनिए, क्यों ना करें शेयर, आखिर किसी ने सोच कर ही तो वीडियो बनाया है, उसके मक़सद को यूँही जाने दें। नही हम तो उसे अंजाम तक पहुँचाने वालों में से हैं, हाँ नही तो।
चलिये छोड़िए ऐसी व्यंग्यात्मक और तकनीकी बातें, क्योंकि ऐसी बातें और बहुत से लोगों ने साफ़-साफ़ कही है, जो अभी जेल में हैं। चलिए हम जिलेबी की तरह एकदम सीधी बात करते हैं।
और देश में कोरोना महामारी चल रहा था ना, अच्छा पर अभी थम गया है, हाँ चुनाव जो आ जाते हैं, इलेक्शन खत्म होते ही फिर से मोशन में आ जाता है, सत्तासीनों का आज्ञाकारी जो ठहरा।
इधर बाकी सबलोग भी लग गए हैं, सब अपना-अपना काम बजा रहें हैं। जो पैसे लेकर फॉरवर्ड, शेयर, पोस्ट आदि करते हैं उनकी तो रोजी का सवाल है, पर जो निठल्ले ऐसे ही नेता के आगे पीछे रामधुनी में लगे हैं, उन नमूनों के क्या कहने। उनका बस चले तो चुनाव के पहले ही अपने चोंचले टाइप नेता को विजयश्री का खिताब दे दें। ख़ैर कोई बात नहीं, असल में सब के सब लॉकडाउन में ऊब भी गए थे, अब ऊबेंं हुए लोगों की बोरियत भी कम हो रही है। और बहुतों के घर भी चल रहें हैं, इससे किसी को क्या तकलीफ़ होगी भला। अब असली वाला मेला तो नही लग सकता, तो इसी को सर्कस समझिए, यहाँ सब है मौत का कुआँ भी। तो चलिए तत्काल थोड़ी कॉमेंट्री हो जाए…
1.इस बार सर्कस में आए नए-नए कलाकार अपनी कला का ज़ोरदार प्रदर्शन करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाह रहें हैं। इनमें से कुछ तो डायरेक्ट मौत के कुँए से निकल कर आयें हैं।
2. उधर सर्कस के स्थापित व अनुभवी वरिष्ठ कलाकार बस बैक स्टेज से अपनी रणनीति और मेकअप आदि पर कार्य कर रहे हैं।
3.हर एक उम्मीदवार ख़ुद को सफ़ल मान कर ही स्टेज पर उतर रहा है।
4.जो लोग ताली पीटने वाले हैं, वे दर्शक दूसरी श्रेणी के हैं।
5.पहली श्रेणी में अपने स्वामी के परफॉर्मेंस के हिसाब से गियर चेंज करते हुए सिटी बजाने वाले और गला फाड़ कर चिल्लाने वाले आते हैं।
6.सबसे अव्वल दर्जे के प्रशंसक कुर्सी तोड़ू प्रजाति के होते हैं, जरूरत के हिसाब से ये लोगों के हाथ पैर भी चटका सकते हैं इसलिए इनसे दूरी बनाए रखने में ही बेहतरी है।
7. दर्शक दीर्घा खचाखच भरी है, पढ़े लिखे स्वाभाविक डरपोक इंसानों से ज्यादा रंगदार, गुन्डे और बुर्राक दिखाई देते हैं।
8. इसमें एक विशेष सुरक्षा घेरे के अंदर पत्तलचाट पत्तलकार पंक्ति में पत्तल लेकर बैठे हैं, इनके चारो ओर बाड़ लगी है सर्कस के ब्रेक में ये लोग आने वाले परफॉर्मेंस का ब्यौरा देते हैं, मतलब कि एक प्रकार का हवा बनाते हैं।
9. कुछ पगलेट टाइप यूनिवर्सिटी के छात्र बेमतलब ही चिल्लाने लगते हैं, उन्हें बस अपनी बात कहनी हैं, ये व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के पूर्ववर्ती छात्र हैं।
10. कुछ लोग सर्कस का लाइव अपने सोशल मीडिया पर भी डालते हैं, पता नही शायद इससे उन्हें कोई आत्मिक सुख मिलता होगा।
11. कुछ बेतुके लोग जबरदस्ती सेल्फी लेने की फ़िराक में रहते हैं, किसी को भी पकड़ कर बस ख़..चा..क. फिर इसे अपने अनोखे नाम वाले सोशल मीडिया एकाउंट पर भी लगे हाथ डालते हैं।
13. बुजुर्ग इसमे परामर्शदात्री चरित्र में रहते हैं, हालांकि सबकी अलग तरह की चुल्ल होती है।
14. सर्कस के चरम पर अधिकतर लोग तो इस खेल में इतना मंत्र मुग्ध हो जाते हैं कि बस हथोर कर अपने पसंदीदा चुनाव चिन्ह पर बटन दबाते हैं, देखते भी नहींं। और इसी के साथ समाचार समाप्त होता है।