जीएसटी के नाम पर लूट, सरकार से बचे तो दुकानदार से लुटे

-सनत जैन-

भारत सरकार जिस तरीके से ताबड़तोड़नियम और कानून बना रही है। उन नियमों और कानूनों के बल पर आम जनता को बुरी तरह से लूटा जा रहा है। महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त जनता को, इस तरह की लूट, विद्रोही बनाने पर आमादा है। एमआरपी के नाम पर दवा सहित खाद्य पदार्थों एवं अन्य चीजों में 30 से 80 फ़ीसदी तक ज्यादा कीमत प्रिंट करके आम उपभोक्ताओं को लूटने का सिलसिला, पिछले कई सालों से चल रहा है। जीएसटी कानून के अंतर्गत जो भी टैक्स वसूल किया जा रहा है। वह आम आदमी को चुकाना पड़ रहा है। गरीब हो या अमीर सभी एक ही डंडे से हांके जा रहे हैं। पिछले 5 वर्षों में जीएसटी का दायरा बढ़ता ही चला जा रहा है। इसमें वह सभी चीजें शामिल हो रही हैं,जो आम आदमी के लिए कभी या रोजाना की आम जरूरतों की हैं। सभी के टैक्स की रेट भी बढ़ा दिए गए हैं। शायद ही ऐसी कोई चीज छूटी हो, जो जीएसटी के दायरे से बाहर हो।

हाल ही में खाने पीने की चीजों में जीएसटी की दरें निर्धारित की गई है। यदि आप रेस्टोरेंट में बैठकर खा रहे हैं। तो 5 फ़ीसदी टैक्स लगेगा। यदि आप घर लेकर जा रहे हैं, तो 12 फ़ीसदी टैक्स लगेगा। आइसक्रीम यदि पैक कराकर घर ले जा रहे हैं, तो 18 फ़ीसदी टैक्स देना होगा। पानी रेस्टोरेंट पर बैठ कर पीने में 5 परसेंट और ले जाने पर 18 फ़ीसदी टैक्स देना होगा।

गुजरात अपीलेट अथॉरिटी ने पराठे पर 18 फ़ीसदी टैक्स को जायज ठहरा दिया है। जुलाई माह में जीएसटी की जो नई अधिसूचना जारी हुई है। उसमें एक ही तरह की वस्तु में 2 अलग-अलग दरों पर टैक्स वसूल किए जा रहे हैं। इसमें उपभोक्ता ही लूट रहा है। दुकानदार और सरकार कमाई करने के लिए इन नियमों का बेजा फायदा उठाते हैं। जीएसटी की बढ़ाई अब स्कूलों एवं कॉलेजों में अनिवार्य किये जाने की मांग भी आने लगी है।

हे भगवान…… भारत सरकार ने किस तरीके के नियम बनाए हैं?इसकी बानगी ड्राई फ्रूट के काजू पर 5 फ़ीसदी टैक्स बादाम पर 12 फ़ीसदी, रोस्टेड काजू पर 12 फ़ीसदी टैक्स है। अगर ड्राई फ्रूट के साथ में बैकरी है, चॉकलेट रखी है, तो 18 फ़ीसदी टैक्स आम उपभोक्ता को लग रहा है।

जीएसटी में जिस तरह का टैक्स स्ट्रक्चर बनाया गया है। उसका पालन कराने के लिए सरकार को अपने एक-एक अधिकारी को दुकानों में नियुक्त करना चाहिए। ताकि टैक्स की सही वसूली हो सके। जिस तरह के टैक्स लगाए गए हैं। उसमें प्रयोग के तौर पर न्यायाधीशों की ड्यूटी भी लगा देनी चाहिए। ताकि उन्हें भी सरकार के बनाए हुए एक्ट और नियमों का पालन टैक्स देने वाला किस तरह से कर पाएगा। इसका ज्ञान हो आम उपभोक्ता इस टैक्स प्रणाली में किस तरह लुट रहा है। दुकानदारों को कहां परेशानी आ रही है। किस तरीके से टैक्स की चोरी हो रही है। यह सब जानना सभी वर्गों के लिये जरूरी हो गया है।

सरकार के बनाए गए नियमों के मकड़जाल मैं न्याय दे पाना, ना तो न्यायालयों के बस की बात है। ना ही जिन्होंने कानून बनाए हैं, वह इस मकड़जाल सेबाहर निकल सकते हैं। जीएसटी का यह मकड़जाल आम उपभोक्ताओं को ही मार रहा है। सरकार के लिए आम उपभोक्ता और दुकानदार नींबू की तरह हैं। जितनी ताकत से निचोड़ेगे,उतना ही रस निकलेगा। इस तरह की टैक्स वसूली भारत में पहली बार देखने को मिल रही है। जीएसटी में आम आदमी लुट रहा है। उसके साथ साथ अब वह विद्रोही भी हो रहा है। वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपा विज्ञापन भी इसी तरह की अन्तरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया है। यह सरकार को समय रहते समझना होगा।

Leave A Reply

Your email address will not be published.