बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा?

-तनवीर जाफ़री-

अपनी पीठ थपथपाने में महारत रखने वाली सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा आये दिन किसी न किसी मंच के माध्यम से भारतवासियों को यह जताने की कोशिश की जाती है कि 2014 के बाद से ही भारत ने अपनी विकास यात्रा तय करनी शुरू की है। कुछ चाटुकार क़िस्म के सत्ता समर्थक तो यहाँ तक कह चुके कि देश को सही मायने में स्वतंत्रता ही 2014 के बाद मिली है। ऐसा कहने वाले बेशर्म लोग यह भी नहीं सोचते कि उनके इस प्रकार के सत्ता की ख़ुशामद करने वाले बयानों से स्वतंत्रता संग्राम के लाखों शहीदों का कितना अपमान होता है। परन्तु ‘विकास पथ पर’ कथित तौर पर आगे बढ़ने वाले उस वर्तमान भारत में जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आये दिन ज़लील करने की कोशिश की जाती हो और उनके हत्यारे गोडसे को राष्ट्रभक्त बताया जाता हो, देश के उस पहले आतंकवादी गुणगान किया जाता हो व उसकी प्रतिमायें स्थापित की जाती हों,जहाँ प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा बनाये गये कई सरकारी संस्थानों को उन्हीं को गालियां दे देकर बेचा जा रहा हो वहाँ कुछ भी प्रचारित करना संभव है। जिन नेताओं को उनके दलों के लोग यशस्वी और पूजनीय कहते हुये नहीं थकते उन्हीं नेताओं की विदेशों में कितनी फ़ज़ीहत होती यह ‘भक्तों’ व ‘चाटुकारों’ को दिखाई नहीं देता। इन ‘सावन के अंधों’ को केवल यही नज़र आता है कि यशस्वी ‘डांकापति’ की लोकप्रियता के चलते पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। इन्हें न तो यह दिखाई दे रहा है कि कितनी विदेशी कम्पनियाँ भारत से बिदा हो चुकी हैं और हो रही हैं। इन्हें डॉलर की तुलना में रूपये की क़ीमत अभूतपूर्व तरीक़े से गिरने से कोई वास्ता नहीं, इनकी नज़रों में बढ़ती बेरोज़गारी और आसमान छूती मंहगाई कोई मायने नहीं रखती।

अनेक बार यह भी देखा गया है कि तमाम प्रतिष्ठित विदेशी समाचार पत्र व पत्रिकायें अपने सम्पादकीय आलेख में इसी सरकार की कठोर शब्दों में आलोचना करती दिखाई दी हैं। विश्व प्रसिद्ध टाइम मैगज़ीन तो हमारे ‘यशस्वी’ प्रधानमंत्री को ‘डिवाइडर इन चीफ़’ की उपाधि देते हुये कवर स्टोरी के साथ पूरा आलेख प्रकाशित कर चुकी है। विदेश यात्राओं के दौरान कई बार इनके विरुद्ध छोटे बड़े अनेक प्रदर्शन होते रहे हैं। परन्तु हमारे देश का ‘घुटना टेक’ मीडिया ख़ासकर टी वी चैनल्स मीडिया छवि निर्माण अभियान में मस्त होकर केवल ‘यशस्वियों का यशगान’ करने में लगे रहते हैं। कबीर दास को आदर्श महापुरुष व महान आलोचक मानने वाले हमारे देश का मीडिया सत्ता की निंदा करना तो दूर आलोचनाओं से भी डरता और कतराता है। वह कबीर दास के इस आदर्श दोहे को भूल जाता है जिसमें उन्होंने फ़रमाया था कि – निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। अर्थात: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ़ कर देता है। परन्तु आज की सत्ता निंदा करना तो दूर अपनी सही आलोचना भी पसंद नहीं करती। उसे केवल अपना ‘यशगान’ करने वाले लोग व मीडिया चाहिये।

परन्तु विदेशों में रहने वाले अनेक भारतीय व उनके समाजसेवी संगठन समय समय पर समाज विभाजक एजेंडा चलाने वाले ऐसे नेताओं का मुखर होकर विरोध करते रहते हैं। अभी पिछले दिनों भाजपा के युवा सांसद तथा भारतीय जनता युवा मोर्चा प्रमुख तेजस्वी सूर्या 31 मई से 3 जून तक ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में आयोजित होने वाले ऑस्ट्रेलिया-इंडिया यूथ डॉयलॉग के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने ऑस्ट्रेलिया पहुंचे। बताया जाता है कि ‘ऑस्ट्रेलिया-इंडिया यूथ डॉयलॉग’ भारत व आस्ट्रेलिया के युवाओं के मध्य संवाद बढ़ाने में सहायता करने वाला एक संगठन है जोकि हर दूसरे वर्ष भारत और ऑस्ट्रेलिया में एक सम्मेलन आयोजित करता है। इस सम्मेलन में दोनों देशों के शीर्ष प्रतिभावान पंद्रह पंद्रह चुनिंदा युवाओं को आमंत्रित किया जाता है जो दोनों देशों के युवाओं से परस्पर अपने विचारों को साझा करते हैं। भारत की तरफ़ से पंद्रह लोगों की सूची में युवा सांसद व भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्य़क्ष तेजस्वी सूर्या का नाम प्रमुख है। तेजस्वी सूर्या को विगत 30 मई को सिडनी की स्विनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी के कैंपस में एजुकेशन सेंटर ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया (ईसीए) नमक संगठन के बैनर तले आयोजित एक कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करना था। परन्तु अनेक संगठन द्वारा सूर्या के विरुद्ध विरोध प्रदर्शनों के नोटिस के बाद आयोजकों ने इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया। विरोध करने वालों का कहना है कि “एक फ़ासीवादी सांसद का सरकारी एजेंसियों के ख़र्च और नाम पर ऑस्ट्रेलिया में बुलावा अस्वीकार्य है।” विरोध कर्ताओं का कहना है कि तेजस्वी सूर्या, स्वयं को आरएसएस स्वयंसेवक के तौर पर पेश करते हैं। और चूंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक कट्टरपंथी हिंदू संगठन है, जो यूरोपीय फ़ासीवादी तौर तरीक़ों से लोगों को एक-दूसरे का दुश्मन बना रहा है। उसके दर्शन को मंच देना समझदारी नहीं होगी।”

ग़ौरतलब है कि यह वही तेजस्वी सूर्या हैं जिन्होंने अपने एक अतिविवादित ट्वीट में कहा था कि “95 प्रतिशत अरब महिलाओं को अपने पिछले कुछ सौ सालों में यौन संतुष्टि नहीं मिली है। हर मां ने बच्चों को सिर्फ़ सेक्स करके पैदा किया है, प्यार करके नहीं।” उसी समय सूर्या के इस ट्वीट का अरब व मध्य एशियाई अनेक देशों में ज़बरदस्त विरोध हुआ था। यहाँ तक कि यूएई में भारत के तत्कालीन राजदूत पवन कपूर को उस समय सूर्या का बचाव करते हुये सोशल मीडिया पर सफ़ाई तक देनी पड़ी थी। ऑस्ट्रेलिया में उनका विरोध करने वाले आज तेजस्वी सूर्याके उन्हीं विवादित बयानों को याद कर स्पष्ट तौर पर यह कह रहे हैं कि “तेजस्वी सूर्या की धर्मांधता, महिलाओं के प्रति उनकी नफ़रत और बर्बरता के दस्तावेज़ मौजूद हैं। लिहाज़ा ऐसे व्यक्ति का ऑस्ट्रेलिया के युवाओं से संवाद न केवल बेमानी बल्कि हानिकारक भी है। विदेशों की धरती पर भारतीय नेताओं का इसतरह का विरोध निश्चित रूप से भारतवर्ष की छवि को भी धूमिल करता है। परन्तु अफ़सोस की बात है कि सांप्रदायिक व पूर्वाग्रही राजनीति से संस्कारित लोगों को इस बात की कोई चिंता नहीं होती। इन्हें भारत में मिल रहे ”यशगान’ से ही संतुष्टि मिलती है। चाहे वह नकारात्मक ही क्यों न हो। बक़ौल ‘शेफ़्ता’ -‘हम तालिब-ए-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम, बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा।

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