इंसानियत

इंसानियत
इंसान हैं ना हम फिर कहां गई हमारी इंसानियत
पैसे,ओदे,पद, अहंकार ने बता दी हमारी नियत।
दहेज़ देकर शादी हो जाती धन देकर मिल जाता पद,
ओदा देख कर इज्जत मिलती रिश्वत देकर हो जाता सब।
ईमानदारी की बाते तो अब सुनने को मिलती कहां
चोरी, हत्या,मारपीट से भरी जो हैं पत्रिकाएं यहां।
मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे को हम यहां है धर्म मानते
सत्य,निष्ठा,प्रेम,कर्म को फिर हम क्यों है त्यागते।
गुण चाहे हजार हो लेकिन हम गुणगान है देखते
प्रेम चाहे कैसा भी हो लेकिन हम सुंदरता निहारते।
अरे पूछो जरा खुद से कभी कहां गई हमारी इंसानियत
पैसे,ओदे, पद, अहंकार ने बता जो दी हमारी नियत।
# सुहानी जोशी
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