देश में अनियमितताओं का जिम्मेदार आखिर कौन!

उधव कृष्ण 
हाल के कुछ दिनों में एक सोशल एक्सपेरिमेंट करके मैंने देखा, चुकी आप जानते हैं अफ़सर ही देश के प्रति सबसे जिम्मेदार और लंबे समय तक काम करने वाला व्यक्ति होता है, इसके लिए उसे अच्छी वेतन, ढेरों सुविधाएं, और क़ानून सम्मत अधिकार भी दिए जाते हैं। पर फिर भी पता नहीं आखिर इन अफ़सरों को अफसर बनते ही ऐसा कौन सा ज्ञान या निर्वाण प्राप्त हो जाता है, कि ये समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभा पाते। सोचनीय है कि इनमें आखिर ऐसा क्या मानसिक और वैचारिक परिवर्तन हो जाता है कि ये अपने काम को ठीक तरह से कर ही नहीं पाते। इसलिए मेरा मानना है कि देश के दुर्भाग्य अथवा सौभाग्य का सबसे बड़ा कारण सभी अफ़सर ही हैं। अगर ये अपने काम को जी-जान लगा कर करें तो देश में मूलभूत दिक्कतों पर तो लगाम लगाई जा ही सकती है। जैसे विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन, आदर्श पुलिसिंग, क्राइम कंट्रोल, बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं इत्यादि में। हाँ तो अपने इस एक्सपेरिमेंट के लिए मैंने समाज के विभिन्न लोगों से कई तरह के प्रश्न पूछे, प्रश्न की गंभीरता को समझते हुए मैंने समाज के उन लोगों का भी चुनाव किया जो मुझे महत्वपूर्ण लगे, इनमें कुछ एक पत्रकार और वकील भी शामिल थे, हालांकि उनकी बातें और काम बिल्कुल भी प्रभावित करने वाली नहीं थी। इस सामाजिक अनुप्रयोग में एक बात जो गौर करने वाली निकल कर सामने आई कि कोई आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, डीएसपी, एसडीएम, बैंकर और कर्मचारियों के परिवार वालो ने ये स्वीकार तक नहीं किया कि काम में कोताही के लिए अफसर भी जिम्मेदार हो सकते हैं। हालांकि उसमें कुछ एक अपवाद भी मिले जिन्होंने खुल कर कहा कि बात ठीक है, पर ऐसे अपवाद जवाब या तो सेवानिवृत्त लोगों के मुँह से निकले या फिर वैसे लोगों द्वारा दिए गए जो किसी लाभ के पद पर नहीं थे। पर ज्यादातर लोगों ने इस बात से इनकार किया कि देश के हालातों के लिए अफसर जिम्मेदार हैं। उल्टे उन्होंने ये ज्ञान दिया कि अफसर बहुत ईमानदार होते है और अपना काम मन लगाकर करते हैं। सोचने वाली बात ये है कि फिर कामों में अनियमितता का जिम्मेदार कौन है, और अगर वे अफसर मन लगाकर काम करते ही है तो उनके नाक के नीचे कैसे विभिन्न विभागों में अनेक प्रकार के काले खेल ना सिर्फ चलते है अपितु समय के साथ फलते-फूलते भी रहते हैं। ये ईमानदार अफसर वैसे लोगों को चिन्हित क्यों नहीं करते, और इनको कौन सा वचन रोके रखता है कार्रवाई करने से। ख़ैर जो भी जिम्मेदार हों, पर एक कहावत है ना कि जबतक परिणाम ना आये तब तक प्रयास की गिनती नहीं होती। काम वही पूर्ण माना जाता है जो जमीन पर हो काग़ज पर तो इतिहास को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा सकता है, और वर्तमान के विषय में भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है। बाकी देश की जनता भी कितनी होशियार है ये बतलाने वाली बात थोड़े ही है। सत्ता के लिए नारायण-नारायण करने वाले क्या विरोध करेंगे, काफी सब्र करने वाली जनता है देश की, उनके लिए तो सब ठीक ही है। बस उनके लिए सत्ता का विरोध करने वाले लोग ग़द्दार हैं। शायद उनको भारत के इतिहास की जानकारी नहीं है, या फिर उन्होंने जिस इतिहास को पढ़ा है वो तोड़ा-मरोड़ा हुआ है। अंग्रेजों से लेकर सम्पूर्ण क्रांति के वक्त तक लोगों ने सत्ता का जमकर विरोध किया, हाँ उसमें एक बात का ख्याल रखा गया कि देश विरोधी नारे नहीं लगाए जाएं, या कोई ऐसा कार्य ना किया जाए जिससे देश के सम्मान व कानून की क्षति हो। अलबत्ता कुछ तो उन्हीं आंदोलनों से उभरकर आज साहिबे-मसनद बने बैठे हैं तो क्या वे देशद्रोही थे। बस मैं और कुछ नही कहना चाहता सिर्फ इतना कहूँगा अंत में कि देशभक्ति राष्ट्र के प्रति हो सकती है किसी भी पार्टी, व्यक्ति, संस्था के प्रति जो आपकी निष्टा है उसे देशभक्ति तो बिल्कुल नहीं कह सकते।

उधव कृष्ण
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक
शोधार्थी (पीएचडी), पाटलिपुत्र विश्विद्यालय
बी.ए (पत्रकारिता एवं जनसंचार)
एम.ए (पत्रकारिता एवं जनसंचार)
नालन्दा खुला विश्विद्यालय
पटना

Leave A Reply

Your email address will not be published.