अब कृष्ण की आशा छोड़ो

 

-बिमल तिवारी-

 

अब कृष्ण नहीं ओ आएंगे

खुद ही अपना वस्त्र सम्भालो

अब नहीं ओ बचाएंगे।।

रम्भा वाली रूप ये छोड़ो

चंडी सा श्रृंगार करो

अंधी बहरी मर्दों की दुनिया में

गंदगी का प्रतिकार करो।।

अपनी आँखों की आशु को

व्यर्थ नहीं तुम गिरने दो

अपनी हाथों से हर दुःशासन को

बीच सभा मे मरने दो।।

दरबार नहीं दुनिया अंधी है

बहरी भी और गूंगी भी

अब एक गोविंद ना बचा सकेगा

तेरी इज़्ज़त महंगी सी।।

अपनी हाथों का करो भरोसा

अपनी लाज बचाने को

एक हाथ में खड्ग सम्भालो

एक से चीर बचाने को।।

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