राष्ट्रीय एकता का पर्व है दशहरा

दशहरा (15 अक्तूबर) पर विशेष

-श्वेता गोयल-

 

दशहरा समस्त भारत में भगवान श्रीराम द्वारा लंकापति रावण के वध के रूप में अर्थात् बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में तथा आदि शक्ति दुर्गा द्वारा महाबलशाली राक्षसों महिषासुर व चण्ड-मुण्ड का वध किए जाने के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय पाने के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि हिन्दू राजा अक्सर इसी दिन विजय के लिए प्रस्थान किया करते थे। इसी कारण इस पर्व को विजय के लिए प्रस्थान का दिन भी कहा जाता है। दशहरे को रावण पर राम की विजय अर्थात् आसुरी शक्तियों पर सात्विक शक्तियों की विजय तथा अन्याय पर न्याय की, बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की, दानवता पर मानवता की, अधर्म पर धर्म की, पाप पर पुण्य की और घृणा पर प्रेम की जीत के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व देश की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं राष्ट्रीय एकता का पर्व है, जो राष्ट्रीय एकता, भाईचारे और सत्यमेव जयते का मंत्र देता है।

दशहरे के उत्सव का संबंध नवरात्रों से भी जोड़कर देखा जाता रहा है। इसे आसुरी शक्तियों पर नारी शक्ति की विजय का त्यौहार माना जाता है। आदि शक्ति दुर्गा को ‘शक्ति’ का रूप मानकर शारीरिक एवं मानसिक शक्ति प्राप्त करने के लिए नौ दिनों तक देवी के नौ अलग-अलग रूपों की व्रत, अनुष्ठान करके पूजा की जाती है। जगह-जगह मां दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और माता के जागरण भी किए जाते हैं। माना जाता है कि दुर्गा पूजा से सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, धन-सम्पदा, आरोग्य, संतान सुख एवं आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। अंतिम नवरात्र पर कुंवारी कन्याओं को भोजन कराकर नवरात्रों का समापन किया जाता है।

मान्यता है कि आदि शक्ति दुर्गा ने दशहरे के ही दिन महाबलशाली असुर सम्राट महिषासुर का वध किया था। जब महिषासुर के अत्याचारों से भूलोक और देवलोक त्राहि-त्राहि कर उठे थे, तब आदि शक्ति मां दुर्गा ने 9 दिनों तक महिषासुर के साथ बहुत भयंकर युद्ध किया था और दसवें दिन उसका वध करते हुए उस पर विजय हासिल की थी। इन्हीं 9 दिनों को दुर्गा पूजा (नवरात्र) के रूप में एवं शक्ति संचय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है और महिषासुर पर आदि शक्ति मां दुर्गा की विजय वाले दसवें दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। श्राद्धों के समाप्ति वाले दिन मिट्टी के किसी बर्तन में मिट्टी में जौ बोए जाने की परम्परा बहुत से क्षेत्रों में देखने को मिलती है। दशहरे के दिन तक जौ उगकर काफी बड़े हो जाते हैं, जिन्हें ‘ज्वारे’ कहा जाता है। मिट्टी के जिस बर्तन में जौ बोए जाते हैं, उसे स्त्री के गर्भ का प्रतीक माना गया है और ज्वारों को उसकी संतान। दशहरे के दिन लड़कियां अपने भाईयों की पगड़ी अथवा सिर पर ज्वारे रखती हैं और भाई उन्हें कोई उपहार देते हैं।

दशहरे और शक्ति पूजा के आपसी संबंध के बारे में कहा जाता है कि जिन दिनों में राम ने शक्ति की उपासना की थी, उसी समय रावण और मेघनाद ने भी शक्ति उपासना की थी। आदि शक्ति ने दोनों पक्षों की पूजा-उपासना से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिए लेकिन विजय राम की ही हुई क्योंकि उनके साथ धर्म, मानवता, सत्य, निष्ठा, पुण्य इत्यादि गुण थे जबकि रावण भले ही बहुत बड़ा विद्वान था लेकिन उस समय उसके पास घमंड, वासना, क्रोध इत्यादि तमाम बुराईयां ही बुराईयां थी। पुराणों में बताया जाता है कि देवी ने राम को विजयी होने का आशीर्वाद दिया था जबकि रावण और मेघनाद को उनका कल्याण होने का आशीर्वाद दिया था। चूंकि रावण का कल्याण उसका अभिमान, उसकी दानवता और उसका अधर्म नष्ट होने में ही था, इसीलिए राम के हाथों उसे सद्गति प्राप्त हुई और राम की जीत हुई। दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के काम, क्रोध, मद, लोभ व वासना रूपी पुतलों का दहन कर लोग अपने आगामी वर्ष की सफलता की कामना करते हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.