लव जिहाद कानून, मूलभूत अधिकारों के विरुद्ध,
मामले में पक्षों की बहस सुनने के बाद आज जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस वीरन विष्णु की दो सदस्यीय बेंच ने उपरोक्त इस कानून की धारा 3, 4, 4 बी, 4A, 4C, 5,6और 6A पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया है। इस एक्ट की धारा 3 में शादी के माध्यम जबरदस्ती धर्म परिवर्तन या शादी करने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की मदद को अपराध माना गया है। धारा 3A में मां बाप, भाई बहन या किसी खून से जुड़े या ससुराली रिश्तेदार की तरफ से जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की शिकायत की जा सकती है। धारा 4 A में गैर कानूनी, धर्म परिवर्तन के लिए 3 से 5 साल तक जेल की सज़ा प्रस्तावित की गई है। धारा 4 B में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन द्वारा की गई शादी को प्रतिबंधित कर दिया गया है। धारा 4सी में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन में संलिप्त संस्थाओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाएगी। धारा 6 A में आरोपी पर ही सबूत देने का बोझ डाला गया है। न्यायालय ने इन धाराओं पर रोक लगाते हुए कहा कि यह वयस्कों की स्वतंत्रता पर आधारित दूसरे धर्म में शादियों पर लागू नहीं होगी। सुनवाई के दौरान दोनों जज महोदय ने मौखिक तौर पर कहा कि धर्म और शादी व्यक्तिगत चयन के प्रकरण हैं। हालांकि इनके अनुसार जिस क्षण कोई व्यक्ति दूसरे धर्म में शादी करता है और उसके विरुद्ध एफआईआर दर्ज होती है तो इस व्यक्ति को जेल भेज दिया जाता है और इसके अलावा सबूत का बोझ भी इस मुलजिम पर डाल दिया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई व्यक्ति शादी करता है तो क्या सरकार उसे जेल भेजेगी और फिर विश्वास प्राप्त करेगी कि विवाह जबरदस्ती किया गया था या लालच में-?।