जागरूक बन करें मतदान तभी होगा जनसमस्याओं का समाधान

 उधव कृष्ण 

हम मनुष्य हैं, समस्त जीवों में सबसे श्रेष्ठ क्योंकि हमारे पास विचार करने व उसे दूसरों तक लिखकर, बोलकर अथवा विभिन्न प्रकार के भाव-भंगिमाओं द्वारा प्रेषित करने की एक अद्भुत शक्ति है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में संचार कहते हैं। संचार करने की ऐसी उन्नत तकनीक किसी और जीव में नहीं। और ये अच्छी बात है, परंतु जब इसी शक्ति का दुरुपयोग इंसान अपने स्वार्थ व सत्ता हेतु करने लगे तो ये ग़लत भी है।
हालांकि अपने विचारों को प्रेषित कर दुसरों को बरगलाने व बहकाने का कार्य कोई नया नहीं है, ऐसे प्रयोग देश की आज़ादी से पहले से ही होते चले आ रहे हैं। पर आज कल ये अपने चरम पर है, डिजिटल प्लेटफार्म, टेलीविजन, सोशल मीडिया, हीट-डिबेट आदि ने इसमें अपना भरपूर योगदान जो दे रखा है।
आज कुछ भी कर लीजिए पर कुछ लोग बस उतना ही देख पाते हैं जितना उन्हें एजेंडा सेट करने वाले (अपना इच्छित काम करवाने वाले/बरगलाने वाले) लोग दिखाना चाहते हैं। इसमें सिर्फ उनकी गलती मैं नहीं मानता, गलती तो उनकी भी है जो चंद पैसों के लिए आईटी सेल के गुमनाम लेखक बनकर, किसी और के नाम का फैन पेज चला कर भोले-भाले लोगों के मन में ज़हर फैला रहे हैं। (चुकी फैन-पेज से बन्दा फसेगा नहीं किसी भी केस में, क्योंकि अभी ये प्रावधान ही नहीं बना। बस जाँच एजेंसियां औपचारिक रूप से उक्त आईडी चलाने वाले की देश भर में खोजबीन करेंगी, वो भी सिर्फ बहुत ही संगीन मामलों में।)
आखिर, पैसों के लिए कोई कितना गिर सकता है ये उस प्रकार के तमाम पेजों के भड़काऊ व तथ्यहीन पोस्ट को देखकर समझा जा सकता है। इसके साथ ही लोगों का दिमाग किस कदर काबू किया जा सकता है ये उनके समर्थकों के ऊटपटाँग कमैंट्स और बयानों को देख-सुन कर अंदाजा लगाया जा सकता है।   वर्तमान समय के ‘डिजिटल इंडिया’ में मानसिक गुलामी बहुत ही घातक व दुर्भाग्यपूर्ण है।
दोस्तों, हमें समझना होगा कि जो भी विचार हम तक विभिन्न माध्यमों से पहुँचाये जा रहें हैं क्या वो हमारे व देश के विकास हेतु हितकारी हैं अथवा नहीं।

 

हमें इसका भी ख्याल रखना होगा कि उक्त विचारों से आख़िर किस संगठन/संस्था/पार्टी आदि को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लाभ या हानि हो रही है। कहीं ये विचारों का ताना-बाना सत्ता हथियाने अथवा सत्ता पर काबिज़ रहने एवं जनता को बेबकूफ़ बनाने को जान बूझ कर तो नहीं फ़ैलाया गया है।  हमारे पास आँखे हैं सच्चाई देखने के लिए, कान हैं सुनने के लिए और सबसे श्रेष्ठ मस्तिष्क है मंथन के लिए और साथ ही जुबान भी है अपनी बात कहने के लिए।

 

मैं ये नहीं कहता कि लोग आँख मूंद कर या किसी के विचारों से प्रभावित होकर किसी को वोट दें अथवा ना दें। बस इतना कहना चाहता हूँ कि ईवीएम पर बटन दबाने से पहले आप सब ख़ुद से एक सवाल अवश्य पूछें कि आपको क्या चाहिए, आप किस वजह से मतदान कर रहें हैं, क्या जिसे आप वोट दे रहे हैं वो आपके इच्छित कार्यो की पूर्ति कर सकता है, या फिर करेगा, अगर नहीं करेगा तो क्या उसकी जबाबदेही तय हो पाएगी, क्या उससे आप 5 साल से पहले काम ना करने का हिसाब ले पाएंगे। क्या आप जिसके पक्ष में मतदान करने वाले हैं उस व्यक्ति पर आप भरोसा करते हैं? या उसकी पार्टी/धर्म/जाति आदि देखकर उसे इस आस में चुन रहें हैं कि वो आपका विकास करेगा।
आशा है इस आलेख को पढ़ने वाले इतना जरूर करेंगें। अंत में यही कहना चाहूंगा कि जागरूक बनिये और अपने बच्चों को भी जागरूक बनाइए, किसी के भी एजेंडे को फ़ैलाने का माध्यम बिल्कुल मत बनिये। सोच सही होगी तो अच्छे कार्य भी होंगे और जिम्मेदारों की जबाबदेही भी बनेगी, लोकतंत्र में जनता ही मालिक होती हैं, इसलिए अपनी सद्बुद्धि का इस्तेमाल कीजिये, अधिकारों को पहचानिए और एक जिम्मेदार नागरिक बनिये।
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