मेरी मंजिल के रास्ते

मेरी मंजिल के रास्ते
भावना मेहरा
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड

वादियों को छूकर, हवाओं को महसूस करके।
मै चल रही हूँ, ज़िंदगी को साथ लेके।।
बढ रही हूँ अपनी मंजिल की ओर।
जहां एक एहसास खुद मुझे बुला रही है।।
जहां वो चिड़ियों का शोर, नदियों, झरनों से गिरता पानी।
ठंडी ठंडी हवाओं की सरसराहट।।
हिमालय पर्वत को और भी खूबसूरत बना रही है।
खिलखिलाती धूप मन को मोह रही है।।
इन सब के बीच मेरे मंजिल का रास्ता और मैं।
मंजिल दूर है रास्ता आसान नहीं, फिर भी चल पड़ी हूं।।
मैं रास्तों की ख्वाहिशों में मिल जाउंगी।
यकिन है मुझे ये किस्मत जो अकड़ के बैठी है।
इसे भी मैं रास्तों पर ले आऊंगी।।
ये वादियां मेरे इस सफर में कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं।
जो मुझे एक सुकून दे रही है।।
मेरे रास्तों को आसान बना रही है।
मेरी मंजिल को मेरे और पास ला रही है।।

चरखा फीचर

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