‘भांड गीरी’ पर उतारू भारतीय टीवी चैनल्स

-निर्मल रानी-

क्रिकेट टी-20 विश्व कप का पिछले दिनों इंग्लैण्ड के ‘विश्व विजयी ‘ होने के साथ समापन हुआ। फ़ाइनल मैच से पूर्व जब भारतीय टीम सेमीफ़ाइनल में पहुंची थी और फ़ाइनल में प्रवेश के लिये इंग्लैंड की ही टीम से संघर्ष कर रही थी उसी समय भारतीय टीवी चैनल्स ने क्रिकेट मैच की भविष्यवाणियों का गोया एक ‘वार रूम’ सा बना दिया था। बेशक कुछ गंभीर टीवी चैनल इस विषय पर विश्वस्तरीय क्रिकेट एक्सपर्ट्स तथा विशेषज्ञों अथवा सीनियर क्रिकेट खिलाड़ियों के साथ आंकड़ों, टीमों के पिछले खेल इतिहास तथा टीम में बॉलर व बैट्समैन के अनुपात एवं कप्तान की योग्यता के आधार पर भारत व इंग्लैण्ड के खेल की समीक्षा कर रहे थे। वे इस आधार पर भारत के जीतने की संभावना ज़रूर व्यक्त कर रहे थे कि चूँकि अभी तक भारत व इंग्लैंड के मध्य कुल 22, टी-20 मैच हुये हैं जिनमें से भारत ने 12 जबकि इंग्लैंड ने 10 मैचों में जीत हासिल की है। अतः भारत का पल्ला भारी समझा जा सकता है। परन्तु कुछ ‘तमाशा’ करने वाले चैनल इसी खेल पर ज्योतषियों से भविष्यवाणियां करवा रहे थे।

 

एक साथ 11-11 ज्योतिषी ग्रहों की चाल और दिशा-दशा के अनुसार भारतीय टीम को विजयी बताने की कोशिश कर रहे थे। एंकर भी ज्योतिष विद्या के विशेषज्ञ प्रतीत हो रहे थे और भविष्यवाणियों को लेकर ग्रह चाल संबंधी ऐसी ऐसी बारीकियों पर चर्चा करा रहे थे गोया मैच में हार जीत का निर्धारण क्रिकेट मैदान में खिलाड़ियों द्वारा अपने जी तोड़ प्रतिस्पर्धात्मक प्रदर्शन और उनके खेल कौशल से नहीं बल्कि इन्हीं ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के आधार पर होगा। बताया जा रहा था की खेल के समय ग्रहों की स्थिति क्या होगी और कौन सा ग्रह किस टीम को फ़ायदा और किसे नुक़्सान पहुंचा सकता है। हालाँकि कुछ ज्योतिष इंग्लैण्ड को भी विजयी होता बता रहे थे। परन्तु कितना अच्छा होता कि जो ज्योतिषी सेमीफ़ाइनल में इंग्लैंड पर भारत की जीत के ग्रह संबंधी गुणा भाग प्रस्तुत करते हुये भारत को विजयी बनाने की भविष्यवाणी कर रहे थे, उन्हीं ज्योतषियों को भारत की पराजय के बाद भी मैच के पुनर्विलोकन हेतु उन्हीं टीवी स्टूडियो में बुलाकर यह भी पूछा जाता कि जब ग्रह दशा भारत के पक्ष में थी फिर आख़िर भारत की पराजय कैसे हुई?और जिस इंग्लैंड को ‘महान ज्योतिषी’ सेमीफ़ाइनल में भारत से हारा हुआ बता रहे थे वही इंग्लैंड भारत से सेमीफ़ाइनल ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से फ़ाइनल मैच भी जीत कर टी-20, 2022 का 12 वर्षों बाद विश्व कप विजेता कैसे बन गया?

यह कोई पहला अवसर नहीं है जबकि मात्र अपनी टी आर पी की ख़ातिर टीवी चैनल्स ने देश की भोली भाली जनता को अवैज्ञानिक बहस में उलझा कर उसे गुमराह करने की कोशिश की हो। इसके पहले भी अनेक टीवी चैनल्स इसी तरह की अनेक निरर्थक व अवैज्ञानिक क़िस्म की बहसों में उलझाकर जनता का क़ीमती वक़्त बर्बाद करते रहे हैं। इसी तरह जब जब देश में सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण लगने का समय आता है उस समय हालांकि हमारे ही देश के वैज्ञानिक इसे एक प्राकृतिक खगोलीय घटना बताने का भरसक प्रयास करते हैं। यहाँ तक कि आज के आधुनिक वैज्ञानिक युग में तथ्य व प्रमाण सहित सूर्य व चंद्र ग्रहण जैसी विचित्र खगोलीय घटनाओं का सीधा प्रसारण कर जनता को इसका वैज्ञानिक पक्ष बताने और उनका ज्ञानवर्धन करने की पूरी कोशिश करते हैं। परन्तु यहाँ इस विषय पर भी मीडिया कुछ ‘चिंटुओं’ को बिठाकर यह बताना शुरू कर देता है कि इस समय यात्रा नहीं करनी, दान देना है और इस घटना को ‘धार्मिक’ बता कर इसके न जाने क्या क्या दुष्प्रभाव बता दिये जाते हैं। यहाँ तक कि मंदिरों को भी ग्रहण के दिन बंद रखा जाता है। क्या दुनिया के अन्य विकसित या विकासशील देशों में भी ज्योतिष ही तय करते हैं कि कौन मैच में जीते या हारेगा अथवा ग्रहण के समय क्या दान या ‘उपाय’ करने चाहिये?

आज के सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिक युग में भारतीय टीवी चैनल्स की ‘भांडगीरी’ ऐसा नहीं है कि केवल भारतीय दर्शक ही देखते हों। पूरा विश्व स्वयं को लोकतंत्र का ‘स्वयंभू चौथा स्तंभ ‘ बताने वाले अनेक भारतीय टीवी चैनल्स पर चलने वाली बेहूदी बहस तथा अवैज्ञानिक व तथ्यहीन कार्यक्रमों पर नज़र रखता है। दुनिया यह भी देखती है कि किस तरह अलग अलग सम्प्रदायों के दो चार स्वयंभू धर्मगुरुओं को स्टूडियो में बिठाकर उत्तेजनात्मक विषयों पर उनसे डिबेट कराकर किस तरह टीवी एंकर उस बहस के दौरान आग में घी डालने का काम करता है। ऐसे टीवी चैनल्स के प्रति भारतीय जनता का विश्वास तो उठा ही है साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इन्होंने देश के मीडिया की साख पर बट्टा लगाया है। टीवी चैनल्स के इस गिरते स्तर के चलते आज देश के करोड़ों लोगों का टीवी से मोह भंग हो चुका है और वे टीवी देखना तक बंद कर चुके हैं। इतना ही नहीं बल्कि कार्यक्रमों के अपने इसी तरह के बेहूदा व ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रस्तुतीकरण के चलते इन्हीं ऐंकर्स व ‘एंकराओं’ को सोशल मीडिया पर अनगिनत गालियां खानी पड़ती हैं। सरे आम लोग ऐसे टीवी चैनल्स को कोसते नज़र आते हैं। इन्हें तरह तरह के नामों से पुकारा जाने लगा है। इन्हें कोई गोदी मीडिया तो कोई दलाल मीडिया, कोई चाटुकार मीडिया तो कोई भांड मीडिया कहकर संबोधित कर रहा है। देश के अनेक न्यायालय यहां तक कि सर्वोच्च व कई उच्च न्यायालय कई बार इन्हें आईना भी दिखा चुके हैं। एडिटर्स गिल्ट द्वारा इन्हें फटकार लगाई जा चुकी है। परन्तु आश्चर्य है कि इन सबकी परवाह किये बिना ऐसे अनेक बेशर्म चैनल्स अब भी अपनी ‘भांड गीरी’ पर उतारू हैं।

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