संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग, मनमाने फैसले, यही मोदी सरकार की पहचान: प्रो. रणबीर नंदन

पटना, 13 नंवबर, जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश प्रवक्ता प्रो. रणबीर नंदन एवं प्रवक्ता परिमल कुमार ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि संसदीय समितियों पर कब्जा और मनमाने तरीके से होने वाले फैसला इसका उदाहरण है। प्रो. नंदन ने कहा कि संसदीय समितियों के गठन विपक्षी पार्टियों को नजरअंदाज किया जा रहा है। यह संघीय शासन प्रणाली पर हमला है। भाजपा ने सरकार बनाने के बाद से ही प्रावधानों में बदलाव कर संविधान के मूल स्वरूप पर चोट कर रही है। संसदीय समिति की महत्ता को कम किया जा रहा है। बैठकों की संख्या कम कर दी गई है। बिलों को संसद से स्थायी समिति में नहीं भेजा जाता है। स्टैंडिंग की विषय सूची को बहुमत के दम में बदला जा रहा है। यह संसदीय समितियों को कमजोर करने का बड़ा प्रयास है।

प्रो. नंदन ने कहा कि मोदी सरकार ने संसद की स्थायी समितियों में विपक्ष की उपेक्षा की है। जिन मसलों को संसद की स्थायी समितियों तक ले जाया जाना चाहिए, उस पर चर्चा तक नहीं की जाती है। मनमाने तरीके से फैसले लिए जा रहे हैं। समिति की बैठकों को लगातार कम किया जा रहा है। मनमाने रवैये का सबसे बड़ा उदाहरण संसद की स्थायी समिति में केंद्र- राज्य संबंधों के लिए तय विषय वस्तु को हटाया जाना है। मोदी सरकार ने गृह मामलों की समिति से केंद्र राज्य संबंधों पर आधारित विषय वस्तु को हटा दिया है।

प्रो. नंदन ने कहा कि आपको जानकर हैरानी होगी, गृह मामलों की समिति की बैठक 1 अगस्त 2022 को हुई थी। इसकी अध्यक्षता कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने की थी। बैठक में केंद्र राज्य के बीच सभी पुराने विवादों पर चर्चा की योजना पारित की गई। यह विषय उठते ही भाजपा असहज हो गई। समिति की अगली बैठक के पहले ही सिंघवी को अध्यक्षता से हटा दिया गया। मैं पूछना चाहता हूं कि गृह मामलों क समिति की बैठक में केंद्र और राज्य के बीच पुराने विवादों पर चर्चा करने की योजना से केंद्र सरकार क्यों भयभीत हो गई?

डाॅ0 रणबीर नंदन ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने बहुमत का दुरुपयोग करते हुए 4 अक्टूबर को न केवल अभिषेक मनु सिंघवी को अध्यक्ष पद से हटाया, बल्कि केंद्र राज्य संबंधों पर आधारित विषय वस्तु को भी समिति से हटा दिया। 18 अक्टूबर को गृह मामलों की समिति की बैठक की अध्यक्षता भाजपा सांसद बृजलाल ने की। उनकी ओर से जो विषय सूची पेश की गई, उसमें केंद्र राज्य संबंधों पर चर्चा का विषय नहीं था।

मोदी सरकार के इस असंवैधानिक फैसले का विरोध तृणमूल कांग्रेस, जदयू, बीजू जनता दल और कांग्रेस ने किया। मोदी सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। डाॅ0 नंदन ने कहा कि संसदीय समितियों को इसी प्रकार से अपने अधिकार में करने की कोशिश हो रही है। आप देखेंगे तो पाएंगे कि वर्ष 1989 में विषय आधारित और विभाग आधारित स्टैंडिंग कमेटी बनाने का फैसला तत्कालीन केंद्र सरकार ने लिया था। पहले तीन स्टैंडिंग कमेटी बनाई गई। वर्ष 1993 में इनकी संख्या बढ़कर 17 हो गई। वर्ष 2004 से अब तक संसद में 24 स्टैंडिंग कमेटी है। इसमें 8 राज्यसभा और 16 लोकसभा के अधिकार क्षेत्र में काम करती है। हरेक समिति में एक अध्यक्ष, 21 लोकसभा सदस्य और 10 राज्यसभा सदस्य मेंबर होते हैं।

डाॅ0 नंदन ने कहा कि स्टैंडिंग कमेटी में वर्तमान समय में कोई भी प्रस्ताव पास कराना भाजपा के लिए आसान है। संसद में वे बहुमत में हैं। करीब 58 फीसदी सदस्य पार्टी के हैं। इसके बाद भी संसदीय समितियों में विपक्षी दलों के सांसद को अध्यक्ष बनाने में भाजपा को डर लगता है। दरअसल, भाजपा संसद की स्थायी समिति में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा ही नहीं होने देना चाहती है। आप देख लीजिए 4 अक्टूबर 2022 को घोषित 17वीं लोकसभा के 22 संसदीय समिति के अध्यक्ष में से भाजपा के 15 सांसद हैं। दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के एक और तीसरी सबसे बड़ी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के एक भी अध्यक्ष नहीं है। सबसे अधिक महत्वपूर्ण विभागों गृह, वित्त, रक्षा, विदेश और सूचना प्रौद्योगिकी की स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष का पद भाजपा के पास है।

प्रो. नंदन ने कहा कि 16वीं लोकसभा के दौरान 24 स्टैंडिंग कमेटी में से 12 में भाजपा और 6 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वहीं, यूपीए शासन के दौरान 15वीं लोकसभा में कांग्रेस के 7 और भाजपा के 8 अध्यक्ष संसदीय समितियों के थे। मोदी सरकार के कार्यकाल में संसदीय समितियों की उपेक्षा लगातार हुई है। लोकसभा में पारित बिलों को संसदीय समिति के समक्ष भेजा ही नहीं जा रहा है। आप देखेंगे कि 14वीं लोकसभ के दौरान रक्षा संसदीय समिति की 37 बैठकें हुईं। 16वीं लोकसभा में यह संख्या घटकर 12 रह गई। इसी प्रकार वित्त मामलों की समिति की पिछली लोकसभा के दौरान 23 और गृह मामलों की समिति की 15 बैठकें ही हुईं। मोदी सरकार इन समितियों की महत्ता को लगातार कम कर रही है।

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