सबसे प्रदूषित दिल्ली

दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है। यदि पुराने आंकड़ों के आधार पर आकलन करें, तो भी दिल्ली विश्व का तीसरा सबसे प्रदूषित शहर था। अब स्थिति बदतर हो रही है। विश्व स्तर पर 50 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची तैयार की गई है। उनमें से 28 शहर भारत के हैं। राजधानी दिल्ली ‘गैस चैंबर’ तो पहले ही बन चुकी थी। न्यायाधीशों और चिकित्सकों ने ऐसी टिप्पणियां की हैं, लेकिन वायु प्रदूषण राष्ट्रीय समस्या बनता जा रहा है। दिल्ली में औसत आदमी खांस रहा है। आंखों में जलन है और नाक लगातार बह रही है। सांस घुट रही है या फूलने लगती है। फेफड़ों के कैंसर फैलने के आसार बढ़ रहे हैं। स्ट्रोक आम रोग हो गए हैं। दिल का दौरा पडऩा, डायबिटीज का बढऩा, अस्थमा, डिप्रेशन, नर्वस सिस्टम, स्किन की समस्याएं, समझने की क्षमता पर चोट आदि रोग ‘खतरनाक संकेत’ दे रहे हैं। राजधानी के ही अस्पतालों में सांस की बीमारियों से जुड़े मरीजों की संख्या 30-35 फीसदी बढ़ गई है। छोटे बच्चों के स्कूल बंद करने पड़े हैं। सरकारी और निजी दफ्तरों में 50 फीसदी कर्मचारी ही आएंगे, शेष घर से काम करेंगे। जिन पार्कों में सुबह टहलने और व्यायाम करने वालों की भीड़ होती थी, वे अब लगभग सूने पड़े हैं। दिल्ली महानगर की हवा गुणवत्ता का औसत स्तर अब भी 400 से अधिक है। यह ‘बेहद खतरनाक’ प्रदूषण का आंकड़ा है। वायु की सामान्य गुणवत्ता 100 के नीचे ही होती है, लेकिन बीते 15 दिनों से प्रदूषण का स्तर ‘गंभीर’ अथवा ‘बेहद खतरनाक’ है। यह जानलेवा प्रहार हर साल अक्तूबर से शुरू होता है और जनवरी तक झेलना पड़ता है।

हालांकि पराली का जलाना तो 15 नवंबर तक कम हो जाएगा, लेकिन प्रदूषण का यही कारक नहीं है। राजधानी के पड़ोसी शहरों-गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा और गाजिय़ाबाद आदि-में तो प्रदूषित हवा का स्तर 500 को भी छू चुका है। क्या हमारी सरकारें संवेदनहीन होकर खामोश बनी रहेंगी? क्या पराली जलाने से ही इतना भयानक प्रदूषण होता है? क्या चीन को उदाहरण मानकर और लंदन, मैक्सिको शहरों से सबक लेकर हम प्रदूषण को कम नहीं कर सकते? चीन ने अपने देश में करीब 40 फीसदी प्रदूषण कम किया है, नतीजतन वहां औसत उम्र 2 साल बढ़ गई है। संयुक्त राष्ट्र ने मैक्सिको को पृथ्वी का सबसे प्रदूषित शहर घोषित कर दिया था, लेकिन वह 1989 में कारों पर पाबंदी लगाने वाला ‘प्रथम देश’ बना। राजधानी दिल्ली में 50 फीसदी से ज्यादा प्रदूषण वाहनों के कारण है। पराली जलाने से औसतन 38 फीसदी प्रदूषण हो रहा है। इनके अलावा कूड़ा जलाना, आग, प्रदूषित उद्योग, चूल्हा जलाना, सडक़ की धूल, निर्माण-कार्य आदि भी प्रदूषण के बुनियादी कारक हैं। जब प्रदूषण ‘बेहद खतरनाक’ स्तर पर पहुंच गया, तो दिल्ली में प्रदूषित वाहनों के प्रवेश पर पाबंदी चस्पा की गई है। परिवहन और दुकानों के सम-विषम फॉर्मूले पर भी विचार किया जा रहा है। दिल्ली में भी सीएनजी वाले वाहन ही चलाए जा सकेंगे। सौभाग्य समझा जाए कि दिल्ली मेट्रो रेल से लाखों यात्री इधर-उधर आते-जाते हैं। मेट्रो से कोई प्रदूषण नहीं होता।

अलबत्ता दिल्ली परिवहन विभाग की और निजी बसों के ‘ज़हर’ को निगलने को हम विवश रहे हैं। बहरहाल दिल्ली में केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं और पंजाब में भगवंत मान मुख्यमंत्री हैं। दोनों ही जगह आम आदमी पार्टी (आप) की सरकारें हैं, लिहाजा ‘केंद्र बनाम आप’ की सियासत से प्रदूषण का एक भी कण कम नहीं होगा। केंद्रीय कृषि मंत्रालय का बयान है कि पंजाब में किसानों को मशीनें मुहैया कराने के लिए 1347 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं, लेकिन मशीनें किसानों तक नहीं पहुंची अथवा किसान पराली जलाने के ही आदी हैं। यदि निरीक्षण करने तहसीलदार, पटवारी, कानूनगो आदि की टीम किसानों के खेतों तक जाती है, तो उन्हें बंधक बना लिया जाता है। यह अपराध है, जिसे पंजाब सरकार को ही देखना है। केजरीवाल जिस रसायन के छिडक़ाव की बात करते रहे हैं, वह पंजाब में लागू क्यों नहीं किया जा सका? अब केजरीवाल-मान एक और साल मांग रहे हैं, ताकि पराली की समस्या को खत्म किया जा सके। एक साल के बाद की क्या गारंटी है? दरअसल अब यह दायित्व साझा है, क्योंकि प्रदूषण का विस्तार दिल्ली के बाहर भी हो रहा है। बहरहाल, दिल्ली में प्रदूषण की वजह से जीना अति कठिन हो गया है। एक-दूसरे पर आरोप लगाने की बजाय अब दिल्ली को जीने योग्य बनाने के लिए मिलकर काम करना होगा। केंद्र सरकार, केजरीवाल सरकार व पंजाब-हरियाणा की सरकारों को समस्या की विकट स्थिति को समझना होगा। दिल्ली को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए कोई ठोस योजना बनानी चाहिए जिस पर अमल भी ईमानदारी के साथ होना चाहिए।

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