कह रही है अजन्मी
-लक्ष्मी जायसवाल-
कह रही है अजन्मी
मां मैं भी इस दुनिया में
आना चाहती हूं
नन्हे नन्हे पैरो से
मैं भी गिरकर ठोकर
खाना चाहती हूं हपतस
गिरते गिरते उठकर
सम्भलना चाहती हूं
तेरी उंगली पकड़कर
चलना चाहती हूं
तोतली जबान में कभी
तो कभी लाड में मां
मैं भी तुझे मां
कहना चाहती हूं।
क्यों नहीं कर सकती
मैं यह सब
मेरा दोष क्या है
जानना चाहती हूं।
मां क्योंकि मैं बेटी हूं
इसलिए तू मुहं मोड़
रही है ममता से
मैं बेटी हूं इसलिए
नहीं चाहती तू कि
मैं जन्म लूं
मां तू भी तो बेटी थी
फिर क्यों तू ही
मेरी दुश्मन बन गयी
कैसे मजबूर हो गयी तू
इतनी कि मुझसे
मां कहने का हक छीनना
चाहती है
मां क्यों मजबूर है तू
इस दुनिया के आगे
इसका जवाब मैं भी
जानना चाहती हूं।
मां दे दे हक मुझे भी
दुनिया में आने का
बेटी होती है क्या तुझे
एहसास कराने का
बोझ नहीं हूं मां मैं
मैं भी हूं तेरा ही अंश
क्या हुआ गर मैं
बेटा नहीं बेटी हूं
आखिर हूं तो तेरी
ही पहचान मैं
तभी तो तेरी कोख में
सपने संजोती हूं
मां बेटी होना अभिशाप
नहीं है, बेटों से ही दुनिया
खास बनती नहीं है
मैं भी तेरी दुनिया में
रंग भरुंगी, नहीं बेरंग
होने दूंगी जीवन तेरा
आज मैं तुझसे यही
जताना चाहती हूं
सच सच बतलाना मां
अपनी दुनिया से मुझे
दूर करके खुश हो पायेगी तू
क्या मुझसे बिछड़कर
अकेले तन्हाई में अपनी
पलकें नहीं भिगोएगी तू।
क्या इसके लिए खुद को
कभी माफ कर पायेगी तू
क्या तुझे कभी मेरी याद
नहीं सताएगी
क्या ये कदम उठाकर तू
मुझे भूल पायेगी
नहीं मां चाहे कितनी भी
कोशिश कर ले तू
चाहकर भी मुझे तू अपनी
दुनिया से, अपने जेहन से
निकाल नहीं पाएगी
कभी देखकर किसी और
की नन्ही मुस्कान, तुझे
मेरी याद जरूर आएगी
कभी बनते देख किसी
को दुल्हन तू
मेरे लिए भी नए घर के
सपने सजाएगी।
फिर क्यों मां तू मुझसे
ये सब छीनना चाहती है
मुझे अपनी दुनिया का हिस्सा
बनाने से क्यों तू कतराती है
क्यों मां क्यों तू मुझसे अपनी
ममता छिपाती है
आखिर मेरा दोष क्या है
अजन्मी बेटी तुझसे यही
पूछना चाहती है।।