साहब! बढ़ती आत्महत्याओं को रोकिए

-प्रभुनाथ शुक्ल-

 जिंदगी बड़ी खूबसूरत है, लेकिन जीना इतना आसान नहीं। सफलताओं और विफलताओं के मध्य जब हमारे ख़्वाब नहीं पलते हैं तो स्थित उलट होती है। फिर जिंदगी से हताश और निराश व्यक्ति लड़ने के बजाय पराजित हो जाता है। इंसान अनुकूल परिस्थितियों में जिंदगी के खूब मजे लेता है। लेकिन जब परिस्थितियां विषम होती हैं तो हम उससे लड़ने के बजाय टूट कर बिखर जाते हैं। समाज में आत्महत्या की स्थिति तेजी से बढ़ रहीं है। यह स्थित समाज के हर वर्ग की है। एनसीआरबी की तरफ से जारी आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। आकड़ों पर कोविड-19 संक्रमण का प्रभाव सीधा देखा जा रहा है। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। देखा जाए तो पूरा जीवन ही चुनौती और संघर्षों से भरा हुआ है। जीवन में कुछ ऐसी स्थितियां आती हैं जब इंसान पूरी तरह टूट कर बिखर जाता है। लेकिन यहीं स्थिति हमें संभलने और लड़ने की रहती है।

भारत में आत्महत्या के मामले में सबसे टॉप पर महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक हैं। जबकि आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में ऐसी स्थिति नहीं है। पूरे देश में जितने लोग आत्महत्या करते हैं उसका 50.4 फीसद सिर्फ इन्हीं पांच राज्यों में आत्महत्या की घटनाएं होती हैं। साल 2020 की अपेक्षा आत्महत्या के मामलों में 7.2 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। 2021 में देशभर में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की। जबकि 2020 में 1,53,052 लोगों ने अपना जीवन खत्म किया। चालू साल में यह वृद्धि 6.2 फीसदी देखी गयी है।

महाराष्ट्र आत्महत्या के मामले में देश में सबसे ऊपर है। दूसरे नंबर पर तमिलनाडु और मध्य प्रदेश का नंबर आता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2021 में महाराष्ट्र में 22,207 आत्महत्या की घटनाएं हुई। दूसरे नंबर पर तमिलनाडु 18,925 रहा जबकि मध्य प्रदेश में 14,965 आत्महत्या की घटनाएं हुई। पश्चिम बंगाल में 13,500 और कर्नाटक में 13,056 लोगों ने आत्महत्या की। आत्महत्याओं का प्रतिशत देखें तो महाराष्ट्र में 13.5 तमिलनाडु में 11. मध्यप्रदेश में 9.1 पश्चिम बंगाल 8.2 और कर्नाटक राज्य में आठ फिसदी लोगों ने आत्महत्या की। 23 राज्य और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में जितने लोगों ने आत्महत्या की उसका 50.4 प्रतिशत सिर्फ इन्हीं पांच राज्यों के लोगों ने आत्महत्या किया।

उत्तर प्रदेश विपुल आबादी का राज्य है। इस लिहाज से देखें तो यहां आत्महत्या के मामले पांच राज्य के अपेक्षा बेहद कम है। देश की तकरीबन 17 फिसदी आबादी उत्तर प्रदेश में निवास करती है। उस लिहाज से यहां आत्महत्या का आंकड़ा सिर्फ 3.6 प्रतिशत है। जबकि सबसे अधिक आत्महत्या यहां होनी चाहिए थी। आबादी के लिहाज से यहां भी बेरोजगारी की समस्या सबसे अधिक है। बाकी समस्याएं देश के समान ही है। लेकिन आत्महत्या ने राज्यों से कम है या बेहद चौंकाने वाला है। केंद्र शासित राज्य की बात करें तो देश में सबसे अधिक आत्महत्या 2021 में दिल्ली में हुई। जबकि दिल्ली देश की राजधानी है। यहाँ 2,840 मामले दर्ज किए गए। दूसरी पायदान पर पांडिचेरी 504 मामले हुए। अंडमान और निकोबार में स्थित का आलम यह है कि यहाँ 40 फ़ीसदी आत्महत्या की दर देखी गयी। इसके बाद सिक्किम, तेलंगाना और केरल राज्य आते हैं। साल 2021 में भारत के 53 बड़े शहरों में 25,891 लोगों ने आत्महत्या की। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्या की दर तकरीबन 12 प्रतिशत रहीं है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल दिहाड़ी मजदूरों और स्वयं का रोजगार करने वाले लोगों के लिए दुःखद रहा है। जिसकी वजह से इस तबके ने सबसे अधिक आत्महत्या की है। देश में आत्महत्या करने वाला हर चौथा व्यक्ति दिहाड़ी मजदूर है। साल 2021 में 42,004 यानी 25.6 फीसदी दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या किया। साल 2020 में यह संख्या 31,666 रहीं। इस लिहाज से देखा जाए तो 24.6 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या किया। देश में दिहाड़ी मजदूरों का तबका ऐसा है जो रोज कुआं खोदता है और रोज पानी पीता है। समाज के सबसे निर्बल तबके में 11.52 फीसदी आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं।

स्वयं का रोजगार करने वाले लोगों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती पायी गयी है। साल 2021 में 20,231 जबकि 2020 में 17,332 लोगों ने आत्महत्या किया यह कुल आत्महत्या का 16.73 प्रतिशत है। लेकिन एनसीआरबी के आंकड़े बेरोजगारों को लेकर एक नया उत्साह भी पैदा करते हैं। बेरोजगारों में आत्महत्या की प्रवृत्ति घटी है। साल 2020 में जहां 15,652 लोगों आत्महत्या किया जबकि साल 2021 में 13,714 बेरोजगार इस दु:खद घटना का शिकार हुए। बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के पीछे तमाम स्थितियां हैं।

वर्तमान परिवेश में जिंदगी के सामने कैरियर संबंधित उलझने हैं। आर्थिक विपन्नता प्रमुख कारण है। जिसकी वजह से आदमी मानसिक तौर पर डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। कई बार जिंदगी की जद्दोजहद में गलत फैसले लेने पर उतर आता है। इसके अलावा सामाजिक और पारिवारिक की स्थितियां के साथ नशे की लत भी अहम है। कोविड काल के दौरान आम आदमी ने बहुत बड़ा संघर्ष किया है। इसमें नौकरी पेशा से लेकर समाज का हर वर्ग शामिल है। सबसे अधिक मार दिहाड़ी मजदूरों और स्वरोजगार करने वालों पर पड़ी है। जिन राज्य में सबसे अधिक आत्महत्यया के मामले हैं उस पर केंद्र और राज्य सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। आत्महत्या की स्थितियां क्यों है इसके कारण खोजने चाहिए और वक्त रहते उसका निदान होना चाहिए। यह सरकारों की नैतिक जिम्मेदारी है। मानव संसाधन सबसे बड़ी पूंजी है। फिलहाल कुछ भी हों हमें खूबसूरत जिंदगी को जीना चाहिए और चुनौतियों का अच्छे तरीके से मुकाबला करना चाहिए।

(स्वतंत्र लेखक और पत्रकार)

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