लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष जरूरी

-नरेंद्र कुमार शर्मा

किसी भी लोकतांत्रिक देश में विपक्ष का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। आज हमारे देश भारत में भारतीय जनता पार्टी के बाद कांग्रेस पार्टी ही सबसे बड़ी पार्टी है। 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने 52 सीटें जीती और उसके सहयोगी दलों ने 92 सीटें जीती। लेकिन कांग्रेस पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल सका। इसके लिए लोकसभा की कुल सीटों का 10 फीसदी सीटें यानी 55 सीटें हासिल करना आवश्यक है। लेकिन कांग्रेस पार्टी इस दर्जे से 3 सीटें कम जीत पाई। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में 28 दिसंबर 1885 को हुई। इसके संस्थापक सदस्यों में एओ ह्यूम, दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे। इसके पश्चात इस पार्टी में समय के अनुसार और भी लोग जुड़ते गए। उन्नीसवीं सदी के आखिर तक इसके सदस्यों की संख्या लगभग एक करोड़ से अधिक हो गई। स्वतंत्रता संग्राम में इस पार्टी का बहुत योगदान है। आजादी के बाद से लेकर मई 2014 तक इस पार्टी ने लगभग 54 वर्षों तक स्पष्ट बहुमत या गठबंधन सरकार से शासन किया। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की इतनी दुर्गति हुई कि पार्टी को केवल 44 सीटें जीतकर ही संतोष करना पड़ा। यह पार्टी के इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। इसके पश्चात 2019 के चुनावों में भी पार्टी को केवल 52 सीटें मिलीं। केवल 8 सीटों का इज़ाफा हुआ। कमोबेश यही स्थिति बाकी दलों की भी है। इस समय भी सभी दल एकजुट नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि बहुत से दलों के प्रमुख नेता भारत का प्रधानमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षा पाले हुए हैं जो एकजुटता के मार्ग में बाधा बनी हुई है।

यदि यही हाल रहा तो 2024 के चुनाव में इन दलों की हालत और भी खराब हो जाएगी, जो कि एक स्वस्थ व मजबूत लोकतंत्र के लिए बहुत अधिक घातक सिद्ध होगा। मजबूत विपक्ष स्वस्थ लोकतंत्र की नींव है। मजबूत विपक्ष का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि मजबूत विपक्ष सत्तापक्ष को जनहित के कार्य करने के लिए विवश कर देता है। इससे सत्तापक्ष अपनी मनमानी नहीं कर सकता। कांग्रेस पार्टी को सभी दलों को एकजुट करना होगा। यदि अन्य दलों का कोई योग्य और सक्षम नेता है तो उसे आगे करके प्रधानमंत्री का चेहरा पेश करके 2024 का चुनाव लडऩा चाहिए। यदि सत्ता में न भी आ सके तो अधिक से अधिक सीटें जीतकर कम से कम मजबूत विपक्ष तो बन ही सकता है, जो कि स्वस्थ व मजबूत लोकतंत्र के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। सभी दलों के प्रमुख नेताओं को मिल-बैठकर आगामी राजनीतिक रणनीति बनानी चाहिए। अन्यथा आगामी चुनावों में इन सभी दलों की हालत और भी ज्यादा खराब न हो जाए। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सुनामी को किसी भी एक दल को झेलना बहुत मुश्किल है। इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स के सर्वे मूड ऑफ दि नेशन में 73 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के काम को बेहतर माना था। भले ही अब मोदी जी की लोकप्रियता में कुछ कमी आई हो, लेकिन वह आज भी देश व दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं की तुलना में आगे हैं। अभी 2024 के चुनाव में लगभग पौने दो वर्ष हैं।

इतना समय चुनाव के लिए बहुत अधिक होता है। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी ने अपना चुनावी अभियान पूरे जोरशोर से शुरू कर दिया है। कांग्रेस पार्टी तो अभी अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष भी नहीं चुन पाई है, तो ऐसे में यह पार्टी प्रधानमंत्री पद की लालसा कैसे पाले हुए है। कई दलों के नेता एकजुट विपक्ष की बात तो कर रहे हैं, लेकिन अभी तक इसकी संभावना बहुत कम नजऱ आती है। अभी तक विपक्ष के पास लगभग पौने दो वर्ष का समय है। अत: विपक्ष को इस समय का भरपूर फायदा उठाना चाहिए और जल्द से जल्द सर्वसम्मति से एकजुट होकर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए किसी वरिष्ठ नेता को देश के सामने पेश कर देना चाहिए। सभी दलों को बैठकर एक सांझा कार्यक्रम तैयार करके देश की जनता को बताना चाहिए, ताकि अभी से जनता यह महसूस करे कि विपक्ष के पास भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और लोककल्याण की अच्छी योजनाएं हैं। जनता केवल भाषणों से संतुष्ट नहीं होती। उसे तो देश हित के लिए स्पष्ट विजऩ चाहिए। कांग्रेस पार्टी ने देश को बहुत प्रधानमंत्री दिए और सभी चमत्कारी थे। लेकिन राहुल गांधी के पास न तो कोई चमत्कार है और न कोई विजऩ। अब भलाई विपक्षी एकजुटता में ही है ताकि सत्ता हासिल न भी हो, लोकतंत्र की मजबूती के लिए वांछित विपक्ष अवश्य हो।

यदि फिर भी ऐसा नहीं होता है तो यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा। यदि मजबूत विपक्ष होगा तो लोकसभा और राज्यसभा के अंदर एक अच्छा संवाद होगा जो देशहित के लिए बहुत अधिक लाभकारी सिद्ध होगा। सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन विपक्ष हमेशा सरकार को सदन के अंदर बहस करके देशहित व लोककल्याण के लिए समर्पित रहता है। अटल बिहारी वाजपेई जी अपने विरोधियों की बातों को भी बड़े ध्यान से सुनते थे और कभी भी विपक्ष को निराश नहीं होने देते थे। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी विपक्ष की बहस को बड़े ध्यान से सुनते हैं और उसके अनुसार अपनी रणनीति तैयार करते हैं। सरकार चाहे कोई भी हो, मजबूत विपक्ष सत्तापक्ष को सोचने पर मजबूर कर देता है। अटल बिहारी वाजपेई जी कहा करते थे कि भले ही वे श्रीमती इंदिरा गांधी जी के कट्टर आलोचकों में से एक थे, लेकिन उनके व्यक्तिगत संबंध अटूट थे। 1977 में जब अटल बिहारी वाजपेई जी देश के विदेश मंत्री बने तो सबसे पहले इंदिरा गांधी जी के आवास पर गए और उनको आश्वस्त किया कि वे बदले की भावना से काम नहीं करेंगे। यदि विपक्ष मजबूत होगा तो सत्तापक्ष को हमेशा यह बात खटकती रहती है कि हमने जनता के हित में कार्य नहीं किया तो विपक्ष सडक़ों पर उतर कर जनसमर्थन हासिल करने में कामयाब हो जाएगा और आने वाले चुनाव में हार का सामना करना पड़ेगा। लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है, उनकी भावनाओं का ख्याल रखना किसी भी सरकार का सर्वप्रथम काम है और मजबूत विपक्ष ही इस कार्य को करने के लिए सत्तापक्ष को सोचने पर मजबूर कर सकता है। अत: किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए मजबूत विपक्ष बहुत आवश्यक है।

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