जमीन विवादों को निपटाने में पिछड़ रही सरकार, दिनों-दिन बढ़ते जा रहे मामले

उधव कृष्ण
जमीन से जुड़े व्यक्तिगत व आम विवादों को निपटाने के मामले में भले ही जितने भी कोरे दावे किए जाएं, पर जमीनी स्तर पर ये सारे दावे खोखले ही लगते हैं। हालांकि अभी हाल ही में राजधानी पटना से जुड़े दीघा के राजीव नगर व नेपाली नगर में 1974 से आवास बोर्ड की विवादित भूमि पर सरकार के निर्देश से प्रशासन द्वारा अतिक्रमण के विरुद्ध कड़ी कार्यवाई की गई है, और सम्भव है कि कोर्ट की हरी झंडी मिलने पर ये आगे भी की जाएगी।
पर वहीं अगर बात की जाए आम नागरिकों के व्यक्तिगत जमीन विवाद मामलों के निपटान की तो इसमें प्रशासन निष्क्रिय व विफल नजर आती है। जनता दरबार में मुख्यमंत्री के संज्ञान में जमीन के ढे़ंरों मामले आने पर वरिष्ठम अधिकारियों ने थाना, सीओ, एसडीओ, एसडीपीओ, जिलाधिकारी व एसपी स्तर पर ऐसे विवादों को हल करने का आदेश फिर से जारी तो किया था, पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव ज़मीन पर देखने को नहीं मिल रहा। पुलिस अधिकारियों को भी जमीन विवाद सुलझाने हेतु अलग से प्रशिक्षण देने की ख़बर थी, जो शायद अब आई-गई हो गई।
ज्ञात हो कि ज़मीन विवाद बढ़ने के साथ ही अपराध का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है, जो चिंताजनक है।
अभी हाल ही में बिहार में 108 साल पुराने जमीन विवाद का मामला कोर्ट द्वारा निपटाया गया है, तथा नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार ये देश का सबसे पुराना मामला बन गया है, इसके साथ ही ये भी बतलाया गया है कि सभी केसेज जो पेंडिंग हैं उनको को निपटाने में तक़रीबन 324 साल का वक्त लग सकता है, जबकि विवाद के 75 से 97% मामले कोर्ट में पहुंच ही नहीं पाते।
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