हिंसा, समस्या है, समाधान नहीं

-तनवीर जाफ़री-

इस्लाम धर्म के पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद पर भारतीय जनता पार्टी की एक प्रवक्ता द्वारा गत 26 मई को एक न्यूज़ चैनल में चल रही डिबेट के दौरान की गयी आपत्ति जनक टिप्पणी तथा दिल्ली भाजपा के एक प्रवक्ता द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध किये गये एक आपत्तिजनक ट्वीट को लेकर खड़ा हुआ विवाद बढ़ता ही जा रहा है। अरब जगत के कई देशों, 57 इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी तथा और कई देशों ने भाजपा प्रवक्ताओं की मुहम्मद साहब को लेकर की गयी टिपण्णी पर न केवल एतराज़ जताया बल्कि कुछ देशों ने भारत से माफ़ी मांगने को भी कहा। जबकि कुछ देशों ने उनके अपने देशों में बिक रहे भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करने की भी घोषणा की। हालांकि भारत सरकार ने अरब देशों को ये समझाने का प्रयास किया कि इन दोनों नेताओं के बयान का भारत सरकार के रूख व आधिकारिक नीतियों से कोई वास्ता नहीं है। भारत सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करने वाला देश है। और अपने इसी स्टैंड को स्पष्ट करते हुये सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने इन दोनों ही नेताओं को पार्टी से यह कहते हुये निष्कासित भी कर दिया कि इन नेताओं के बयान सरकार व पार्टी की सोच को प्रतिबिंबित नहीं करते और यह नेता हाशिये पर गये हुये लोग हैं।

यह विवाद इतना बढ़ा कि भारत में गत शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, महाराष्ट्र, झारखंड आदि राज्यों के विभिन्न शहरों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों द्वारा इन विवादित नेताओं के विरुद्ध नारेबाज़ी की गयी व प्रदर्शन किये गये। बंगाल, रांची व इलाहबाद जैसे कई शहरों में तो इन प्रदर्शनों ने हिंसक रूप धारण कर लिया। आये दिन अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म ढाने वाला देश पाकिस्तान भी भारतीय अल्पसंख्यकों व पैग़ंबर की हमदर्दी में खड़ा दिखाई दिया। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान स्वयं में ही एक ऐसा बदनाम व अनियंत्रित देश है जहां न तो वहां का अल्पसंख्यक स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है न ही वहां अल्पसंख्यकों के आराधना स्थल सुरक्षित हैं। उपद्रवियों द्वारा पाकिस्तान में अनेक बार मंदिर, गुरद्वारों, इमामबार गाहों व दरगाहों पर हिंसक आक्रमण किये जा चुके हैं। इस ताज़ातरीन विवाद में भी पाकिस्तान में कराची के कोरंगी क्षेत्र में गत 8 जून को मारी माता मंदिर नामक एक हिन्दू धर्मस्थान में आधा दर्जन से अधिक सशस्त्र गुंडे बंदूक़ों के साथ मंदिर परिसर में घुस गए। उन्होंने मंदिर में तोड़फोड़ की और एक मूर्ति को भी तोड़ दिया गया। आरोप है कि गुंडों ने पहले हनुमान मंदिर को तोड़ा, उसके बाद गणेश मंदिर को तोड़ा। स्थानीय हिन्दू समुदाय के लोगों का कहना है कि वे अपने परिवारों व समुदाय के साथ 1961 से इस क्षेत्र में रह रहे हैं परन्तु यहां पहले कभी ऐसा हादसा नहीं हुआ। पाकिस्तान में तो अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के अपहरण, जबरन धर्म परिवर्तन तथा ज़ोर ज़बरदस्ती शादीयाँ करने की भी ख़बरें आती रहती हैं। परन्तु आश्चर्य है कि वही पाकिस्तान भारत विरोध का मौक़ा पाते ही भारत को नसीहत देने लगा? हद तो यह है कि अफ़ग़ानिस्तान जैसे कट्टरपंथी तालिबान शासित देश जो कि मानवाधिकार उल्लंघन और कट्टरपंथी सोच को लेकर पूरे विश्व में कुख्यात है। महात्मा बुद्ध जैसे विश्व शांति दूत की विश्व की सबसे विशाल प्रतिमाओं को तोपों से जिन तालिबानों ने ध्वस्त किया हो आज वह भी भारत को ‘प्रवचन’ देने वालों की पंक्ति में खड़ा दिखाई दे रहा है?

इसमें कोई शक नहीं कि भारत में वर्तमान सत्तारूढ़ दल भाजपा अपने रूढ़ीवादी विचारों के प्रति पूर्वाग्रही दृष्टिकोण रखती है। परन्तु भाजपा के सत्ता में होने के बावजूद समग्र भारत का दृष्टिकोण आज भी गांधीवादी तथा सर्व धर्म समभाव का ही है। भाजपा को भारत में अल्पसंख्यकों से कहीं अधिक भारतीय उदारवादी हिन्दू समुदाय के लोगों का ही वैचारिक विरोध झेलना पड़ता है। लिहाज़ा भारतीय मुसलमानों को किसी ओ आई सी या पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान जैसे तानाशाह, क्रूर व अल्पसंख्यक विरोध व अल्पसंख्यकों के धर्मस्थलों व आराध्यों का अपमान व निरादर करने वाले देशों की ओर देखने व उनके बहकावे में आने की कोई ज़रुरत नहीं है। बेशक हज़रत मुहम्मद के अपमान से भारतीय मुसलमानों सहित पूरा मुस्लिम जगत आहत हुआ है परन्तु हिंसा, उपद्रव या अपमान जनक टिप्पणी का जवाब दूसरों के आराध्यों को अपमानित कर के देना, यह किसी समस्या का हल आख़िर कैसे हो सकता है? हिंसक प्रदर्शन कर, थानों व पुलिस की गाड़ियों में आग लगाकर, निजी व सरकारी संपत्तियों को नुक़सान पहुंचाकर अपने हिंसक विरोध प्रदर्शनों को जायज़ नहीं ठहरा सकते।

भारतीय मुसलमानों के समक्ष इस समय एक बड़ी अभूतपूर्व चुनौती दरपेश है। उन्हें पूरी सूझ बूझ और होश हवास से अपनी कोई प्रतिक्रिया देने की ज़रुरत है। यह देश किसी एक धर्म जाति का नहीं बल्कि समस्त भारत वासियों का है। और अपने देश में अमन शांति बनाये रखना प्रत्येक भारतवासी की पहली ज़िम्मेदारी है। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, धरना आदि निश्चित तौर पर हम सबका संविधान निहित अधिकार है परन्तु हिंसा व उपद्रव हरगिज़ नहीं। सी ए ए के विरुद्ध हुये राष्ट्रव्यापी धरने व दिल्ली में एक वर्ष तक चला शांतिपूर्ण किसान आंदोलन इसका जीता जागता सुबूत है। परन्तु राजनीति के ‘बुलडोज़र काल’ में और दिल्ली दंगों से लेकर जहांगीर पुरी दंगों तक व मध्य प्रदेश में कई जगहों पर हुई सांप्रदायिक हिंसा व इनके बाद कथित रूप से की गयी इकतरफ़ा प्रशासनिक कार्रवाई से यह स्पष्ट हो चुका है कि हिंसक कार्रवाई में शामिल किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध सरकार उसकी संपत्ति तहस नहस करने से लेकर कोई भी बड़ी से बड़ी कार्रवाई तक कर सकती है। लिहाज़ा नीति और नीयत दोनों का ही यही तक़ाज़ा है कि लाख उकसावे के बावजूद मुल्क में अमन शांति बनाकर रखी जाये। भारतीय उदारवादी बहुसंख्य समाज तथा यहाँ के संविधान व क़ानून पर पूरा विश्वास किया जाये। इन्हीं हिंसक घटनाओं ने व पिछले 1400 वर्षों के हिंसा के इतिहास ने ही आज मुसलमानों के विरुद्ध ‘इस्लामोफ़ोबिया’ का विश्वव्यापी माहौल बना दिया है। लिहाज़ा हर भारतीय मुसलमान हिंसा से दूर रहे किसी ओ आई सी या पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान के सहयोग या समर्थन की भारतीय मुसलमानों को कोई ज़रुरत नहीं। भारतीय बहुसंख्य समाज, यहाँ का क़ानून ही, भारत का सर्व समावेशी स्वभाव ही हम सबकी सबसे बड़ी ताक़त है। याद रहे कि किसी भी तरह की हिंसा समस्याओं को बढ़ा तो सकती है परन्तु समस्याओं का समाधान हरगिज़ नहीं कर सकती।

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