हंसने दो

-जयचन्द प्रजापति कक्कू-

मां

मैं मां नहीं बनना चाहती

अभी खेलना चाहती हूं

लुकाछिपी का खेल

करना चाहती हूं ठिठोली

उड़ना चाहती हूं

सपनों का पंख लगाकर,

यह लिपस्टिक

ये चूड़िया

ये बालियां

घूंघरू

पायल

क्यों खरीद रही हो?

नहीं चाहिये

नथुनी और झुमका,

क्या तुम

मेरा हंसना नहीं देखना चाहती हो?

नहीं कैद होना चाहती

पति के जेल में,

मां लौटा दे

इन श्रृंगारों को

अभी हंसना चाहती हूं

खूब उड़ना चाहती हूं

हंसने दो

अभी मां।।

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