प्यास

-अंजना भट्ट-

इस कदर छाई है दिल और दिमाग पर तेरी याद की आंधी

इस तूफान में उड़ कर भी तेरे पास क्यों नहीं आ पाती?

इस कदर छाई है तन बदन पर तुझसे मिलने की प्यास

इस प्यास में तड़प कर भी तुझमें खो क्यों नहीं पाती?

बस आ…कि अब तुझ बिन कोई भी मुझे संभाल नहीं सकता

गंगा की वेगवती लहरें शिव की बलिष्ठ जटाएं चाहती हैं

बस आ..कि अब तो आंखें बहुत प्यासी हैं…और….

तेरे दर्शनों के सिवा अब कुछ भी इस प्यास को बुझा नहीं सकता.

तेरी बांहों के झूले में झूल जाऊं

तेरी आंखों की नमीं में घुल जाऊं

तेरे हाथों की छूअन से पिघल जाऊं

तेरे गर्म सांसो की आंच में जल जाऊं…

तब हां…तब….

तब मेरे बदन की सब गिरहें खुल जायेंगी

और मैं तेरी बांहों में और भी हल्की हो जाऊंगी

एक नशा सा हावी होगा मेरी रग रग में

और मैं एक तितली की तरह

रंगों में सराबोर हो कर आकाश में उड़ जाऊंगी.

चाहे जब मुझे आकाश में उड़ाना, पर मुझे अपनी चाहत में बांधे रखना

ताकी तेरे बंधनों में बंध कर जी सकूं, उड़ने का सुख पहचान सकूं

मुझे प्यासी ही रखना, ताकी तेरे लिए हमेशां प्यासी रह सकूं

मरते दम तक इस प्यास को जी सकूं, और इसी प्यास में मर सकूं

अजीब ही बनाया है मालिक ने मुझे

पास लाकर भी दूर ही रखा है तुझसे…

वो ही जानता है इसका राज.

शायद इस लिए की मिलने की खुशबू तो पल दो पल की , और फिर ख़त्म….

पर जुदाई की तड़प रहती है बरकरार, पल पल और हर दम…

इसी तड़प और इसी प्यार में जी रही हूं मैं…

हर पल, हर दिन….

तुझसे मिलने की आस में, इंतजार में, गुम हूं मेरे हमदम.

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