भोजन, सेहत और स्वाद

-पीके खुराना-

भोजन हमारी सेहत का बड़ा स्रोत है। हम जैसा खाते हैं, अंततः वैसे ही बन भी जाते हैं। यह हैरानी की बात है कि एक आध्यात्मिक देश के नागरिक होने के बावजूद हम सरल-सहज भोजन की महत्ता को नहीं समझते। हम भूल गए हैं कि हमारे मनीषी ऋषि-मुनियों ने भोजन को सात्विक, राजसी और तामसी भागों में बांटा था। यही नहीं इसके आगे भोजन को ‘जीवित’ और ‘मृत’ भोजन में वर्गीकृत किया था। हम भूल गए हैं कि भोजन भी जीवित और मृत हो सकता है। हमें सबसे ज्यादा जीवनदायी पोषण जीवित भोजन से मिलता है। भोजन को बिना पकाए खाने का अर्थ है उसको उसकी सर्वाधिक शुद्ध अवस्था में खाना। आइए, गेहूं के पौधे का उदाहरण लेकर इस बात को समझते हैं। अगर हम गेहूं का एक बीज लेकर उसे बो दें और पानी दें तो कुछ ही दिनों में वह अंकुरित होकर एक सुंदर पौधे के रूप में खिलखिलाएगा, लेकिन अगर उसी गेहूं से बने नूडल्स को मिट्टी में बीजें तो कुछ भी नहीं होगा क्योंकि नूडल्स भोजन तो है, पर उसमें प्राण नहीं है। नूडल्स ‘मृत’ भोजन है। यह सही है कि हम केवल कच्चा भोजन ही नहीं खा सकते, इसलिए यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि हमारे भोजन का 70 प्रतिशत हिस्सा कच्चे भोजन का होना चाहिए, जैसे कि फल, सब्जियां, सलाद, नारियल, मेवे, जूस और स्प्राउट।

ये ‘जीवित’ भोजन की श्रेणी में आते हैं। यही कारण है कि हमेशा भोजन के साथ खूब सारा सलाद और मौसमी फल खाने की सलाह दी जाती है। यही नहीं, जिसे हम कच्चा भोजन मानते हैं वह दरअसल कच्चा नहीं है। वह सूर्यदेव की ऊर्जा से पका हुआ परिपूर्ण भोजन है। सूर्यदेव की ऊष्मा ने इनमें जीवन भरा है। जब हम सब्जियों को आग पर पकाते हैं तो दरअसल हम उन्हें दूसरी बार पका रहे होते हैं। पेड़-पौधों से आकर सीधे हमारी थाली में पहुंचे भोजन से मिलने वाला पोषण सर्वश्रेष्ठ है। ऐसा भोजन हमें भरपूर ऊर्जा देता है, सेहत देता है, जीवन देता है। आग पर पका हुआ, पानी में मिला हुआ, बर्फ में जमा हुआ भोजन इसका मुकाबला नहीं कर सकता। अनाज और सब्जियां, जब हम पकाएं भी तो उन्हें तीन से पांच घंटे के अंदर खा लेना चाहिए। फ्रिज में रखकर हम भोजन की ऊर्जा छीनकर उसे निष्प्राण कर देते हैं। जब हम भोजन को आग पर पकाते हैं तो सबसे पहले उसमें से सूर्य की ऊर्जा चली जाती है, और बाद में उच्च तापमान पर पकने के कारण उसके पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि पुराने जमाने में भोजन को बहुत कम तापमान पर सहज-सहज पकाया जाता था जिससे वह गुणकारी और सुखकारी बना रहता था। लेकिन अब गैस, माइक्रोवेव और फ्रिज ने मिलकर हमारा जीवन दूषित कर दिया है।

भोजन को कम से कम तापमान पर और कम समय के लिए पकाएं ताकि उसके जीवनदायी तत्व सुरक्षित रहकर हमें उचित पोषण दे सकें। इसी तरह भोजन को उबालने से बेहतर है कि उसे भाप से पकाया जाए। पैकेट बंद, डिब्बा बंद और बोतल बंद खाद्य पदार्थों के निषेध में ही हमारी भलाई है। यह सबसे ज्यादा खराब भोजन है क्योंकि इसकी शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए इसे बहुत लंबे समय तक बहुत उच्च तापमान पर पकाया जाता है और यह बहुत ज्यादा पुराना भी होता है। अक्सर हम इस भ्रम में जीते हैं कि यदि हम मांस नहीं खाएंगे तो हमें प्रोटीन कहां से मिलेगा? सच्चाई यह है कि अत्यधिक प्रोटीन लेना, कम प्रोटीन लेने से ज्यादा खतरनाक है और कई गंभीर बीमारियों का कारण है। दूध को लेकर भी हम इसी तरह के भ्रम के शिकार हैं। संयमित मात्रा में लिया गया गाय का ताजा दूध सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन ज्यादा लाभ कमाने के लालच ने इस दूध को खत्म कर दिया है। अब हमें जो दूध मिलता है उसमें यूरिया, स्टार्च, कास्टिक सोडा, डिटर्जेंट, सफेद पेंट और रिफाइंड तेल मिले होते हैं ताकि यह गाढ़ा हो जाए और लंबे समय तक खराब न हो। यह दूध, दूध नहीं, ज़हर है।

नारियल का दूध इसका बढि़या विकल्प है, बहुत स्वास्थ्यकर है, बनाना भी उतना ही आसान है। नारियल की गिरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर मिक्सी में बारीक पीस लें। इसे एक कपड़ा डालकर छानेंगे तो नारियल का पौष्टिक और स्वादिष्ट दूध मिल जाएगा। बचा हुआ गूदा चेहरे पर लगाएं, त्वचा स्वस्थ और चमकीली हो जाएगी। जुआ खेलना कानूनी अपराध तो है ही, जुआ खेलकर हम घर भी बर्बाद कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जुआ खेलने में आनंद नहीं आता। आनंद आता है, पर हम अपने भले के लिए उस आनंद को छोड़ देते हैं। इसी तरह बहुत सा अन्न ऐसा है जो जुए की तरह स्वादिष्ट तो है, पर सेहत बर्बाद करने वाला है, अतः बिना किसी बहस के उसे छोड़ देने में ही हमारी भलाई है। सफेद चावल की जगह ब्राउन चावल, रिफाइंड आटे की जगह चोकर वाला आटा, लाल मिर्च या मिर्च पाउडर की जगह हरी मिर्च, आयोडीन युक्त नमक की जगह सेंधा नमक का इस्तेमाल सेहत के लिए सर्वश्रेष्ठ है।

विदेशी या बेमौसमी फल, दोनों ही जितने भी स्वादिष्ट हों, सेहत के लिए अच्छे नहीं हैं। हां, यदि आप विदेश में हों तो वहां के स्थानीय फल खाएं, ज्यादा अनाज खाने के बजाय सलाद और ताज़े मौसमी फलों को वरीयता दें। यह आपकी सेहत की गारंटी है और इन सबमें स्वाद भी बहुत है। एक छोटी सी बात का और ध्यान रखें तो आपको और भी लाभ होगा। मान लीजिए कि आप बंगाल के रहने वाले हैं और नौकरी, व्यवसाय या रिश्तेदारी की वजह से आप पंजाब में आकर बस गए हैं तो आपके लिए पंजाब का स्थानीय खाना ज्यादा मुफीद है क्योंकि यह पंजाब की जलवायु के अनुरूप है। इसी तरह अगर कोई पंजाबी बंगाल में जा बसे तो उसे अपने मैन्यु में बंगाली ढंग का खाना शामिल कर लेना चाहिए। यही नहीं, अच्छी सेहत के लिए यह जरूरी है कि हम अपनी पाचन क्रिया के कामकाज को समझें। भोजन को लेकर हमारे शरीर में तीन चक्रों में काम होता है। पहले राउंड में हमारा खाया हुआ भोजन पचता है, दूसरे राउंड में हमारा तंत्रिका-तंत्र उसे एब्जॉर्ब करता है, खुद में अवशोषित करता है और तीसरे और अंतिम दौर में शेष बची हुई गंदगी को बाहर निकालने के लिए रख देता है। जब तक ये तीनों चक्र पूरे न हो जाएं और हम कुछ और नया खा लें तो होगा यह कि पहले का बचा हुआ खाना तो शरीर में वैसे ही रह जाएगा और हमारा पाचन तंत्र नए खाए हुए खाने को पचाने में व्यस्त हो जाएगा। यदि हम ऐसा करते हैं तो शरीर में गंदगी, जहरीले पदार्थ और कीटाणु पैदा होते हैं जो हमारी बीमारी का कारण बनते हैं। इन छोटे-छोटे सूत्रों का ध्यान रखेंगे तो आपको भोजन का स्वाद भी आएगा और सेहत भी बनी रहेगी।

(लेखक राजनीतिक रणनीतिकार है)

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