मंथन के बावजूद दिशाविहीन है कांग्रेस

मंथन के बावजूद दिशाविहीन है कांग्रेस

-डॉ. अनिल कुमार निगम-

भारत की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस बूढ़ी, असामयिक, अप्रासंगिक, असंगत और पूर्ण रूप से बेपटरी हो गई है। कांग्रेस ने उदयपुर के चिंतन शिविर में पार्टी को पुनर्जीवित करने पर चिंतन अवश्य किया लेकिन यह चिंतन पूर्व में पार्टी के चिंतन शिविरों से ज्यादा भिन्न नहीं था। इस चिंतन शिविर में मंथन से अमृत तो नहीं निकल सका लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में पार्टी और खुद के भविष्य को लेकर असमंजस अवश्य पैदा हो गया।

वर्तमान में कांग्रेस का मुकाबला केंद्र के उस सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से है जिसने पिछले आठ वर्षों में अपना सांगठनिक तानाबाना अत्यंत सशक्त कर एक बड़ी लकीर खींच दी है। अगर कांग्रेस पार्टी एक परिवार के प्रभाव से बाहर नहीं निकलती तो संभव है कि वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव में न केवल उसका सूपड़ा साफ हो जाए बल्कि विपक्षी दल की हैसियत से भी बाहर हो जाए। यह कांग्रेस की नाकामी ही है जिसके चलते दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बनाने वाले केजरीवाल आम आदमी पार्टी (आप) को लोगों के समक्ष कांग्रेस के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करने लगे हैं।

यह सर्वविदित है कि कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज के दौरान 28 दिसंबर 1885 को हुई थी। इसके संस्थापक ए.ओ. ह्यूम (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा थे। नि:संदेह कांग्रेस ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। इसके साथ यह भी सच है कि स्वतंत्रता के बाद भी कई दशकों तक कांग्रेस ने सत्ता सुख भोगा। कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। पहले चुनाव से 2014 तक के बीच 16 आम चुनाव हुए। इनमें से छह चुनाव ऐसे थे जिसमें कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और चार चुनाव ऐसे थे जिनमें सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया। इस प्रकार कांग्रेस कुल 49 वर्षों तक केंद्र सरकार का हिस्सा रही।

कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों की सूची देखेंगे तो सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू (1947–64) तक करीब 17 साल प्रधानमंत्री रहे। उसके बाद कांग्रेस से गुलजारीलाल नन्दा, लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और फिर डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। यहां उल्लेखनीय है कि गुलजारी लाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री, नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह कांग्रेस ऐसे प्रधानमंत्री थे, जो नेहरू-गांधी परिवार से नहीं थे। अगर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो शेष ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनकी वजह से पार्टी परिवारवाद के अभिशाप से बाहर निकलती दिखी।

वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के बाद से कांग्रेस पार्टी जिस तरह से परिवारवाद से अभिशप्त है तभी से उसका लगातार बेड़ा गर्क हो रहा है। वर्ष 2009 के आम चुनाव के पूर्व राहुल गांधी ने कांग्रेस में युवा ब्रिगेड बनाई थी, जिसमें ज्यातिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सचिन पायलट, आरपीएन सिंह आदि अनेक युवा नेता शामिल थे। लेकिन कांग्रेस में युवाओं की बढ़ती उपेक्षा और बुजुर्ग व घाघ दिग्गज नेताओं के सांगठनिक मामलों में जबर्दस्त हस्तक्षेप के चलते युवा ब्रिगेड के ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह सहित कई दूसरे नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं। सचिन पायलट कांग्रेस से जुड़े अवश्य हैं लेकिन वह भी आलाकमान से बेहद असंतुष्ट चल रहे हैं।

वर्ष 2022-23 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश सहित नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव और 2024 में आम चुनाव होने वाले हैं। हाल ही में पंजाब, उत्तर प्रदेश, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में संपन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का अत्यंत निराशाजनक प्रदर्शन रहा। हर चुनाव में शिकस्त के बाद चिंतन शिविर में होने वाले मंथन का नतीजा ढाक के तीन पात रहता है। इस बार भी शिविर में लंबी-चौड़ी बातें की गईं, लेकिन पार्टी को अवसाद से बाहर निकालने और नवीन ऊर्जा के साथ मैदान में उतरने का कोई ब्लू प्रिंट नहीं बनाया जा सका। वैसे भी राहुल गांधी के कमजोर नेतृत्व में कोई करिश्मा होने की किरण भी नजर नहीं आ रही।

यही वजह है कि भाजपा के मजबूत सांगठनिक ढांचे और विस्तार के समक्ष कांग्रेस आज बौनी नजर आ रही है। चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का कद घटता जा रहा है। दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस को आईना दिखा रही है और वह यह दावा करने लगी है कि लोग आम आदमी पार्टी से देश की मुख्य विपक्षी दल के रूप में भूमिका निभाने की अपेक्षा कर रहे हैं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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