आरबीआई के नए प्रतिबंधों से होगा बिल्डरों की मंजूरी लागत में इजाफा

मुंबई, 17 मई,  भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा हाल ही में बैंकों को दिए गए निर्देश की वजह से प्रॉपर्टी डेवलपरों की मंजूरी लागत बढऩे की संभावना है। इस निर्देश में कहा गया है कि उन्हें प्रीमियम भुगतान और ट्रांस्फरेबल डेवलपमेंट राइट्स (टीडीआर) के लिए बिल्डरों को उधार नहीं देना चाहिए। इससे उन पर अपना खुद का फंड जुटाने का दबाव पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे किफायती आवास परियोजनाओं के दामों में इजाफा हो सकता है। आरबीआई का विचार है कि ये भुगतान भूमि खरीद से संबंधित हैं और इस वजह से बैंकों को इनके लिए उधार नहीं देना चाहिए।

विशेषज्ञों ने कहा कि यह मुद्दा मुंबई के डेवलपरों के लिए ज्यादा चिंताजनक हो सकता है, क्योंकि प्रीमियम भुगतान और टीडीआर का इस शहर से अधिक सरोकार है। इसके साथ ही, एचडीएफसी बैंक के साथ एचडीएफसी का विलय भी डेवलपरों के लिए टीडीआर जैसे उद्देश्यों के वास्ते धन जुटाने में चुनौतियां पेश कर सकता है, क्योंकि रियल एस्टेट के सबसे बड़े उधारदाताओं में से एक होने की वजह से एचडीएफसी, बैंक का हिस्सा बनने के बाद डेवलपरों को उधार देने में लचीलापन खो देगा।

मुंबई स्थित फंड मैनेजर, निसस फाइनैंस के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अमित गोयनका ने कहा ‘प्रवर्तकों को और ज्यादा इक्विटी  या अर्ध-इक्विटी का धन लाना होगा। अन्य शहरों के मुकाबले मुंबई में असर ज्यादाहोगा।’ गोयनका को उम्मीद है कि इस कदम के बाद मंजूरी लागत पर अतिरिक्त ब्याज की वजह से इनपुट कीमतों में पांच प्रतिशत इजाफा होगा।

उनके अनुसार दक्षिण मध्य मुंबई में कुल मंजूरी-एफएसआई (फ्लोर स्पेस इंडेक्स) और प्रीमियम लागत 15,000 प्रति वर्ग फुट है। इस पर पांच प्रतिशत इजाफे का मतलब है 750 रुपये का असर। मुंबई के उपनगरों में यह 300 रुपये हो सकता है। उन्हें लगता है कि फिलहाल डेवलपर इसे वहन करेंगे, क्योंकि इनपुट लागत बढ़ चुकी है और वे हाल ही में कीमत वृद्धि कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि किफायती आवास परियोजनाओं में डेवलपर शायद इसे वहन न कर पाएं, क्योंकि 11-12 प्रतिशत स्तर पर मार्जिन कम है। उन्होंने कहा कि किफायती परियोजनाओं में कीमतें 150-300 रुपये तक और बढ़ सकती हैं।

कुशमैन ऐंड वेकफील्ड के प्रबंध निदेशक (पूंजी बाजार) सौरभ शतदल ने कहा कि टीडीआर और एफएसआई प्रीमियम परियोजना लागत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है, खास तौर पर मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) में। अब आरबीआई के नए नियम आने से डेवलपरों को बिक्री संग्रह, इक्विटी या स्ट्रक्चर्ड कैपिटल जैसे वैकल्पिक स्रोतों पर विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि इससे नकदी प्रवाह में कुछ असंतुलन हो सकता है और संपूर्ण परियोजना लागत में कुछ इजाफा हो सकता है।

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