प्रभु से पुकार

-राकेशधर द्विवेदी-

आज अखबार में एक खबर छपी है

भुखमरी से एक किसान की मृत्यु हुई है

रोटी, कपड़ा और मकान का सपना लिए

मर गया एक इंसान धूप में तपता हुआ

विकास और प्रगति की ये अधूरी तस्वीरें

मिटा न पाई पेट की भूख को पूरी

बिक गए खेत और बिक गए खलिहान

बिक गई दुकान और पुश्तैनी मकान

हरित क्रांति का ऋण चुकाने के वास्ते

नदी और पोखरा रोज रहे हैं सूख

दिख रहा है शोषण, अत्याचार और भूख

आम आदमी आज निराश और परेशान है

फिर भी विकास चूम रहा है विकास के पायदान है

आंकड़ों के जाल में फंस गया इंसान है

इन झूठे आंकड़ों से दिग्भ्रमित भी भगवान है

नहीं सुन रहा भूखों-असहायों की आवाज

उसके साम्राज्य में भी फैला है गुंडाराज

धनी और शक्तिशाली बन गए हैं उसके एजेंट

सुख और सुविधाओं को उन्होंने कर दिया पेटेंट

ऐसे में हे प्रभु! एक असहाय क्या करे

पेट की भूख से ऐसे रोज ही मरे?

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