यह जो दिल्ली है…

जिस दिल्ली पर राजधानी और संसदीय दिल्ली राज करती है, अवैध अतिक्रमण वहां भी है। बल्कि वहां ज्यादा और अनियंत्रित हैं। बेशक ऐसे अतिक्रमणों पर भी सवाल उठते रहे हैं, लेकिन बुलडोजर दुस्साहस नहीं कर सका है। दरअसल इस दिल्ली के तहत ही नगर निगम काम करते हैं। पुलिस भी इनके अधीन है। संविधान की व्याख्या और उसमें संशोधन भी यही दिल्ली कर सकती है। तो अवैध निर्माण ढहाने और अतिक्रमण तोड़ने की हिम्मत कौन कर सकता है? राजधानी दिल्ली में कहां-कहां अवैध अतिक्रमण हैं, इसका खुलासा करने वाला विश्लेषण हम कर चुके हैं। उसे दोहराना असंगत लगता है। एक और दिल्ली है, जहां अवैध अतिक्रमण ही नहीं, बांग्लादेशियों और रोहिंग्या मुसलमानों की सरेआम घुसपैठ है। उनके पास आधार कार्ड और राशन कार्ड सरीखे सरकारी दस्तावेज हैं। वे दशकों से दिल्ली में समाए हैं और उनकी महिलाएं घर-घर काम करती हैं। उस दिल्ली का एक भाग शाहीन बाग है जहां सोमवार को बुलडोजर भेजने की हिम्मत की गई थी। करीब अढ़ाई घंटे तक माहौल तपा रहा। विरोध प्रदर्शन उग्र होते दिखाई दिए। विरोध करने वाले बुलडोजर पर ही चढ़ने लगे, तो सुरक्षा बलों को हस्तक्षेप करना पड़ा। महिलाओं ने भी मोर्चा खोल दिया। विधायक अमानतुल्लाह खान सवाल करते रहे कि कहां है अतिक्रमण? उसे मैं खुद हटाने के लिए तैयार हूं।

अंततः बुलडोजर नाकाम रहा। नगर निगम के अधिकारियों और कर्मियों समेत बुलडोजर को भी खाली हाथ लौटना पड़ा। दिल्ली में बुलडोजर का अभियान जारी है, लेकिन सिर्फ गरीब लोगों के लिए ही। अमीर और ताकतवर तबके की दिल्ली तो अलग है। जैसा विरोध और राजनीतिक दखल शाहीन बाग में देखने को मिला, वह अभूतपूर्व नहीं था। यह मुस्लिम बहुल इलाका है। नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लेकर शाहीन बाग में ही, लंबे अंतराल तक, धरना चला था। मोर्चे पर औरतें ही थीं। सुरक्षा बलों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक धरना उठाने में असमर्थ रहे थे। अंततः कुछ दबाव का इस्तेमाल करना पड़ा। अवैध निर्माण और अतिक्रमण राजधानी दिल्ली में अप्रासंगिक मुद्दे हैं। यह जो दिल्ली है, उसके कोने-कोने पर आज भी झुग्गी झोंपड़ी है। यह जो दिल्ली है, उसमें आज भी हज़ारों बसावतें अनियमित हैं, लिहाजा वे अवैध हैं। दिलचस्प है कि कांग्रेस, आप और वामपंथी दल आदि बुलडोजर अभियान के खिलाफ हैं क्योंकि नगर निगम में भाजपा सत्तारूढ़ है। सर्वोच्च अदालत ने भी फैसला दिया है कि हम नगर निगम के काम में दखल नहीं देते, लेकिन सवाल यह है कि आप बुलडोजर चलाने से पहले नोटिस क्यों नहीं देते? हम आपको आगाह कर रहे हैं कि बिना नोटिस किसी भी इमारत को न गिराएं। क्या सर्वोच्च अदालत के इस फैसले का पूरी तरह पालन किया जाएगा? सर्वोच्च अदालत ने उन अवैध अतिक्रमण वाली इमारतों और कोठियों पर कोई निर्देश क्यों नहीं दिया, जहां जाने का साहस नगर निगम नहीं कर पाता? रेहड़ी पटरी और फुटपाथ वाले भी इस मामले में वादी हैं। सुप्रीम अदालत ने कहा है कि यदि रेहड़ी फेरी वाले भी कानून का उल्लंघन करते पाए जाते हैं, तो उन पर भी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

यह जो दिल्ली है, उसमें एक विरोधाभास है। मोदी सरकार रेहड़ी पटरी और फुटपाथ वाले छोटे कारोबारियों को बैंक ऋण देती है। यदि वे कारोबार कर सकते हैं, तो रेहड़ी पटरी के जरिए ही करेंगे। लेकिन नगर निगम उन पर भी बुलडोजर चला रहे हैं। सुप्रीम अदालत ने भी सड़क पर कारोबार करने से परोक्ष मनाही की है। संसद के पास और सरकारी भवनों के बाहर सड़क पर लोग धंधा करते रहे हैं। वहां खोखे भी हैं। सड़क पर चाय बनाई जा रही है। फल बेचे जाते हैं और बाल काटने का कारोबार भी लंबे वक्त से जारी है। बेशक वे अवैध हैं और अतिक्रमण भी किए जा रहे हैं। इस दिल्ली में तो कभी भी बुलडोजर नहीं देखा। बहरहाल इस पूरे परिदृश्य में सर्वोच्च अदालत की बड़ी खंडपीठ को ही विस्तृत फैसला सुनाना होगा। दिल्ली दिल्ली में फर्क नहीं किया जा सकता। प्रशासन की कार्रवाई पर तब सवाल उठते हैं जब गरीबों के अतिक्रमण तो हटा दिए जाते हैं, लेकिन पहुंच वाले लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इससे विपक्ष को सरकार के विरोध के लिए एक बड़ा मुद्दा मिल जाता है और सरकार तथा विपक्ष जनता के कल्याण के लिए काम करने के बजाय आपस में ही लड़ते रहते हैं। पूरे देश के लिए अतिक्रमण हटाने की एक ठोस योजना व नीति बननी चाहिए। सत्ता पक्ष व विपक्ष को आमने-सामने बैठकर यह नीति बनानी चाहिए ताकि किसी विवाद का सवाल ही न रहे।

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