खेलें कहां

-मनोहर चमोली ‘मनु’-

दिव्या ने स्कूल बैग कंधे से उतारा और सीधे दरवाजे की ओर जाने लगी। उसकी मम्मी ने पीछे से टोकते हुए पूछा, ‘दिव्या! कहां जा रही हो। पहले कपड़े बदलो। मुंह हाथ धो लो। कुछ खा-पी लो। तब जाना।’’

लेकिन दिव्या ने जैसे कुछ सुना ही नहीं। दिव्या की मम्मी भी पीछे-पीछे चल दी। नजदीक ही कॉलोनी का पार्क था। कॉलोनी के कुछ बच्चे पार्क के बाहर खड़े थे। दिव्या उन बच्चों के साथ खड़ी थी। दिव्या की मम्मी हैरान थी कि आखिर बात क्या है। दिव्या ने आज से पहले कभी ऐसा नहीं किया था। वह स्कूल से आती है तो सबसे पहले अपने बैग से वो सारी कॉपी-किताबें निकालती है, जिनमें उसे होमवर्क करना होता है। फिर वह कपड़े बदलती है। मुंह-हाथ धोकर इत्मीनान से कुछ खाती है। स्कूल की रोचक बातें भी बताती है। होमवर्क निपटाने के बाद ही खेलने जाती है, लेकिन आज तो उसने घर आते ही बैग पटका और सीधे पार्क की ओर आ गई।

‘जरा सुनूं तो आखिर ये बच्चे आपस में क्या बात कर रहे हैं?’ दिव्या की मम्मी पार्क के कोने में चुपचाप खड़ी हो गई और सावधानी से बच्चों की बातें सुनने लगीं। दिव्या के अलावा कॉलोनी के बच्चों में श्रेया, आकांक्षा, चिक्की, अभय, अनुभव और आदित्य भी खड़े थे। अभय जोर से बोला, ‘घर के अंदर तो खेलने का सवाल ही नहीं होता। कॉलानी में भी सब हमें टोकते रहते हैं। एक पार्क ही तो है जहां हम खेलते हैं।’ अब दिव्या की आवाज सुनाई दी, ‘पार्क का ताला तोड़ देते हैं।’’

श्रेया ने कहा, ‘उससे क्या होगा? ताला तो दूसरा आ जाएगा।’’

चिक्की ने पूछा, ‘फिर क्या करें? यूं ही खड़े रहें क्या?’ तभी किसी की नजर दिव्या की मम्मी पर पड़ गई। वे सब चुप हो गए। दिव्या की मम्मी भी उनके झुण्ड में शामिल हो गई।

‘ये सब क्या है? दिव्या क्या हुआ?’ दिव्या की मम्मी ने नाराज़गी से पूछा। तब तक श्रेया और अनुभव की मम्मी भी वहां आ गईं। दिव्या को छोड़कर बाकी सभी अपने स्कूल बैग के साथ वहां खड़े थे। श्रेया की मम्मी दूर से ही चिल्लाई, ‘श्रेया। स्कूल की छुट्टी हुए आधा घंटा हो गया है। तू यहां क्या कर रही है?’’

श्रेया ने जैसे कुछ सुना ही नहीं था। वह दिव्या की मम्मी से बोली-‘आंटी। ये पार्क में ताला किसने लगाया? सुबह तो नहीं था। हम सब ताला देखकर यहां रुके हैं।’’

श्रेया की बात पर ध्यान न देते हुए अनुभव की मम्मी लगभग चीखी, ‘ताला लग गया तो कौन-सा आफत आ गई। तुम बच्चों को सीधे पहले घर आना चाहिए। मैं तो घबरा ही गई कि आज बच्चे अब तक घर क्यों नहीं आए। चल अनुभव। तू घर चल पहले। तूझे घर में बताती हूं।’’

दिव्या की मम्मी ने हस्तक्षेप किया, ‘एक मिनट भाभी। ज़रा मैं भी तो सुनूं ये बच्चे आपस में खुसर-पुसर कर क्यों रहे हैं। वाकई! पार्क में ताला तो लगा है।’’

अब तक चिक्की की मम्मी भी आ गई थी। चिक्की की मम्मी ने कहा, ‘मैं बताती हूं। आज सुबह ही कॉलोनी के शर्मा अंकल ने यहां ताला लगाया है। अब कॉलोनी वाले जगह-जगह पर अपनी गाड़ियां खड़ी कर देते हैं। सड़क तक गाड़िया निकालने में सभी को दिक्कत होती है। शर्मा अंकल कह रहे थे कि सन्डे को सभी कालोनी वालों की मीटिंग होगी। अब सब अपनी गाड़िया पार्क के अंदर खड़ी करेंगे।’’

दिव्या बीच में ही बोल पड़ी, ‘तो आंटी फिर हम खेलेंगे कहां? पार्क तो खेलने के लिए है।’’

अभय बोला, ‘घर में खेलने की मनाही है। सड़क में जाने नहीं देते। कॉलोनी में खेलो तो सब कहते हैं शोर मत करो। ले-दे कर एक पार्क बचा था तो उसमें ताला लगा दिया। किसी ने हमसे पूछा भी नहीं। आज तो मन्डे है। सन्डे तो दूर है। तब तक हम खेलेंगे नहीं क्या? अब हम कहां जाएंगे?’’

चिक्की की मम्मी ने कहा, ‘तो जरूरी है कि तुम खेलो। घर में रहो। घर के अंदर खेलने वाले खेल खेलो। पढ़ाई करो।’’

चिक्की मुंह बनाते हुए बोली, ‘क्या मम्मी। आपको तो हमे सपोर्ट करना चाहिए। महीने में आपकी एक किटी पार्टी घर में क्या होती है आप कितनी परेशान हो जाती हो। चार दिन से तैयारी में लग जाती हो। घर के अंदर कौन से खेल खेलूंगी मैं। किसके साथ? आप मेरे दोस्तों को तो घर में आने भी नहीं देती।’’

यह सुनकर चिक्की की मम्मी सकपका गई। दिव्या भी चुप नही रही। वह बोली, ‘शर्मा अंकल अपने आप को क्या समझते हैं। हम यहां से तब तक नहीं जाएंगे जब तक पार्क का ताला नहीं खुलता है।’’

दिव्या की मम्मी ने उसे डांटते हुए कहा, ‘चुप! ऐसा नहीं कहते।’’

‘जब बड़ों ने फैसला ले ही लिया है। तो तुम कौन होते हो उस पर बाते बनाने वाले। चल आकांक्षा यहां से।’ आकांक्षा की मम्मी ने कहा।

आकांक्षा ने कहा, ‘मम्मी एक मिनट। हम बच्चों की स्कूल बस सड़क के बाहर खड़ी रहती है। कॉलोनी के अंदर नहीं आती। गाड़ियां भी तो सड़क पर खड़ी हो सकती हैं। पार्क के अंदर क्यों? हम बच्चों की तो कोई गाड़ी नहीं है। बड़ों की समस्या है तो बड़े जानें। हमें हमारा पार्क खाली चाहिए।’’

दादा-दादी जैसे कई हैं, जो सुबह-शाम इस पार्क में टहलते हैं। उनका क्या होगा। क्या वे हर रोज शर्मा अंकल से ताला खुलवाएंगे?’ अब आदित्य ने जोर से कहा।

तभी शर्मा अंकल वहां आ गए। वह मुस्कराते हुए बोले, ‘क्या हो रहा है यहां? मेरे खिलाफ क्या-क्या बोल रहे हो तुम बच्चे लोग? ज़रा मैं भी तो सुनूं।’’

दिव्या की मम्मी बोली, ‘नमस्ते भाई साहब। ये बच्चे पार्क को लेकर परेशान हैं? इनका कहना है कि हम कहां खेलेंगे?’’

शर्मा अंकल पार्क के गेट की ओर बढ़ चुके थे। उन्होंने ताला खोलते हुए कहा, ‘ये लो। मेरे बच्चों ने अपने प्रिंसिपल सर से मेरे आफिस फोन तक कर दिया। यही नहीं, आज जब मैं उन्हें लेने स्कूल गया तो वे मेरे साथ मेरी कार में आए ही नहीं। उनका कहना है कि वे आज के बाद मेरी कार पर ही नहीं बैठेंगे। सॉरी बच्चों। हम बड़े भी कई बार बच्चों जैसी हरकत कर डालते हैं। पार्किंग के लिए हम कुछ ओर सोचेंगे। पार्क में ताला कभी नहीं लगेगा। बस।’’

बच्चे ताली बजाने लगे। लेकिन दिव्या ने कहा, ‘बच्चों जैसी हरकत से आप क्या कहना चाहते हैं अंकल?’’

शर्मा अंकल झेंप गए। फिर मुस्कराते हुए बोले, ‘यही कि जैसे आप सब अपना सारा काम छोड़कर भरी दुपहरी में यहां खड़े हैं। यह बातें तो शाम को भी हो सकती थी। मुझे भी तो ऑफिस से यहां आना पड़ा। मुझे भी तो मेरे बच्चों ने यही कहा कि जब तक पार्क का ताला नहीं खुलेगा, वे न खाना खाएंगे न ही होमवर्क करेंगे। अब तुम सबसे पहले एक काम करो। मेरे घर जाओ और मेरे बच्चों को बताओ कि ताला खुल गया है। ये लो ताला और चाबी।’’

दिव्या ताला-चाबी पर झपटी और सारे के सारे बच्चे शर्मा अंकल के घर की ओर दौड़ पड़े। बच्चों की मम्मी एक-दूसरे के मुंह ताक रही थीं।

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