सियासत, सुशासन और विकास का केजरीवाल मॉडल की अग्नि परीक्षा होगी एमसीडी चुनाव में!

-कमलेश पांडेय-

सच कहा जाए तो आम आदमी पार्टी यानी की आप के प्रति पंजाब के आम मतदाताओं का जबर्दस्त रुझान देखते ही बनता था। यही वजह रही कि इस बार पंजाब के सारे समीकरणों की धज्जियां उड़ गईं। निःसन्देह पंजाब के लोगों के मन में केजरीवाल अपना ‘दिल्ली मॉडल’ बैठाने में कामयाब रहे। भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में सत्ता संचालन के कई मॉडल सामने आए, लेकिन सियासत, सुशासन और विकास के ‘मोदी मॉडल’ के बाद ‘केजरीवाल मॉडल’ अब बरबस सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। दरअसल, देश की राजधानी नई दिल्ली यानी केंद्र शासित दिल्ली प्रदेश की सत्ता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से छीनकर और फिर उस पर भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी को काबिज नहीं होने देकर आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह साबित कर दिया कि उनकी राजनीतिक सोच में दम है और वो केंद्रीय सत्ता की उंगलियों पर कदापि नहीं थिरकेंगे।

यह बात में इसलिये कह रहा हूँ कि जब वो दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए तब उनसे शिकस्त खाई कांग्रेस पार्टी 15 वर्षों से दिल्ली और 9 वर्षों से केंद्रीय सत्ता में रही, जिसकी सियासी तूती बोलती थी, लेकिन टीम केजरीवाल ने उनका सुफड़ा साफ कर दिया। उसी प्रकार कभी दिल्ली पर एक दशक से अधिक समय तक राज कर चुकी भाजपा जब 2014 में काफी मजबूत होकर केंद्रीय सत्ता में लौटी तो 2015 में और जब 2019 में दूसरी बार और अधिक मजबूत होकर केंद्रीय सत्ता में लौटी तो 2020 में आम आदमी पार्टी यानी आप ने उसे दिल्ली में तगड़ा शिकस्त दी।

कहना न होगा कि वह आम आदमी पार्टी ही है, जिसने भारतीय राजनीति को यह मूलमंत्र दिया कि बीजेपी अपराजेय नहीं है, यानी कि सटीक सियासी रणनीति से उसे पराजित किया जा सकता है। उसके बाद बिहार में नीतीश मॉडल, महाराष्ट्र में उद्धव मॉडल, पश्चिम बंगाल में ममता मॉडल और केरल में वामपंथी मॉडल ने यह साबित कर दिया कि यदि क्षेत्रीय नेताओं में सही दमखम हो तो बीजेपी को सत्ता में आने से रोका जा सकता है, मतलब कि पराजित किया जा सकता है। बहरहाल सियासत, सुशासन और विकास का केजरीवाल मॉडल की अगली अग्नि परीक्षा एमसीडी चुनाव में होगी, जहाँ आप पार्टी पूरे दमखम से चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है।

सच कहा जाए दिल्ली के बाद पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में पहले से ही ताल ठोककर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने जो करिश्मा दिखाया है, उसने  यह जतला दिया है कि यह जीत कोई आकस्मिक विजय नहीं, बल्कि एक सोची समझी सियासी रणनीति का प्रतिफल है, जिसकी गूंज बहुत दूर तलक जाएगी, यानी कि 2024 में राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के मुकाबिल खड़े होने की ताकत का एहसास क्षेत्रीय दलों सहित कांग्रेस को भी कराएगी, क्योंकि पंजाब की सत्ता भी उन्होंने कांग्रेस से ही छीनी है। ऐसा इसलिए कि टिकट वितरण में भी आप आम आदमी को ही तरजीह देती आई है, न कि धनाढ्य या नव धनाढ्य वर्ग को, या बड़े दलों के बड़े चेहरों को। इससे जनता में उसकी अपील मजबूत होती है।

कहना न होगा कि आप ने पंजाब की जनता से लगातार अपील की, कि अब तक जनता ने शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन (शिअद-भाजपा) और कांग्रेस को अपनाया, लेकिन उसे कुछ खास नहीं मिला। इसलिए इसबार सिर्फ हमें एक मौका दीजिए, जिसके बाद हमारा काम बोलेगा। वाकई जनता को आप का यह अंदाज पसंद आ गया। बता दें कि पंजाब में आप की ऐतिहासिक जीत कोई आकस्मिक जीत नहीं है, बल्कि इसकी पटकथा तो 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही लिख दी गई थी। क्योंकि तब आप पार्टी ने पंजाब की राजनीति में पहली बार प्रवेश करते हुए 13 में से चार लोकसभा सीटों पर जीत का परचम फहराया था और उसे तकरीबन 24 फीसदी मत मिले थे। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में आप पार्टी की धार तीखी होती चली गई। पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 का नतीजा आपके सामने है, क्योंकि दो तिहाई बहुत में पंजाब में आप ने जीत दर्ज की है और वहां उसकी सरकार बनेगी।

समझा जाता है कि पंजाब की जनता नशा, अवैध खनन, शराब, केबल और ट्रांसपोर्ट माफिया से मुक्ति की राह तलाश रही थी। जबकि शिअद-भाजपा और कांग्रेस आमलोगों की कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही थीं। यही वजह है कि आप (आम आदमी पार्टी) ने जनता की नब्ज अच्छी तरह से टटोल ली थी और अपने चुनाव प्रचार में इन्हें दमदार तरीके से उठाया। इसके अलावा, दिल्ली की तर्ज पर मुफ्त बिजली-पानी देने और महिलाओं को एक हजार रुपये प्रति माह देने का जो नया वादा कर डाला, वह जनता को काफी भा गया। जनता ने केजरीवाल की झोली भर दी।बताया जाता है कि केजरीवाल शासन का दिल्ली मॉडल, शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूक परिवर्तन, मोहल्ला क्लीनिक, भ्रष्टाचार रहित पारदर्शी सुशासन, सत्ता के गलियारे में पार्टी कार्यकर्ताओं की वाजिब पूछ, मुद्दा दर मुद्दा जनभावनाओं को देख उसी के अनुरूप जनभागीदारी विकसित करने का दिलासा भी पंजाब में आकर्षण का विषय बना। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर पंजाबियों को फैसला लेने की राह काफी आसान कर दी। क्योंकि एक तरफ गठबंधन और सत्ता की सिरफुटौव्वल दिखाई दे रही थी तो दूसरी ओर बातचीत की साफगोई और मुद्दों का पैनापन। इसके अलावा, दिल्ली की सीमाओं में किसान आंदोलन कारियों की तरफ़दारी और वक्त वक्त पर उन्हें पिछले दरवाजे से सहयोग पहुंचाने की कोशिश ने पंजाबियों को अरविंद केजरीवाल व उनकी सजग टीम का मुरीद बना दिया।

कहना न होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल, सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, कद्दावर नेटवबिक्रमजीत सिंह मजीठिया और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे दिग्गजों की आप नेताओं के हाथों हुई शर्मनाक पराजय से यह साफ है कि पंजाब की जनता ‘सोहणा पंजाब’ बनाने के लिए ताजी हवा का एक अदद झोंका और उर्वर सियासी जमीन चाहती थी, जो उसे आप के रूप में मिल गई। देखा जाए तो पंजाब हमेशा से जातिगत वोट बैंक की राजनीति में उलझा रहा, लेकिन आप नेताओं का आचरण देख उन्हें एकबारगी महसूस हो गया कि अब समय बदल गया है। दरअसल, आप नेताओं ने जनता से लगातार अपील की, कि अब तक जनता ने शिअद-भाजपा और कांग्रेस को अपनाया लेकिन उसको कुछ खास नहीं मिला। इसलिए अबकी बार सिर्फ एक मौका आप को दीजिए। फिर हमारा काम बोलेगा, हम नहीं। संभवतया जनता को आप का यह अंदाज पसंद आ गया और उसकी सियासी आंधी चल पड़ी। विधानसभा चुनाव में पंजाब के हरेक कोने एक बात सुनने को जरूर मिलती, वह यह कि बदलाव चाहिए। हमसब अकाली दल और कांग्रेस से थक गए हैं, ऊब गए हैं, चिढ़ चुके हैं। इसलिए आम आदमी पार्टी को इस बार आजमाना है और इसमें बुराई भी क्या है? एक बार इन्हें भी तो मौका देना तो बनता ही है।

सच कहा जाए तो आम आदमी पार्टी यानी की आप के प्रति पंजाब के आम मतदाताओं का जबर्दस्त रुझान देखते ही बनता था। यही वजह रही कि इस बार पंजाब के सारे समीकरणों की धज्जियां उड़ गईं। निःसन्देह पंजाब के लोगों के मन में केजरीवाल अपना ‘दिल्ली मॉडल’ बैठाने में कामयाब रहे। यूं तो शराब के ठेकों को लेकर पंजाब के विरोधियों ने शोर मचाया, लेकिन पंजाब में शराब का मुद्दा उतना नहीं गरमाया जितना कि ड्रग्स का। क्योंकि पंजाब को ड्रग्स ने भारी नुकसान पहुंचाया है।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि पंजाब में आप को हासिल हुई जबरदस्त जीत आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ा मौका है। क्योंकि पहली बार पार्टी दिल्ली से बाहर किसी राज्य की सत्ता में आई है और धमाकेदार अंदाज में। जिस दिल्ली पुलिस को पाने के लिए वह बेताब रही, उसी की तोड़ वाली पंजाब पुलिस अब उसके मातहत रहेगी, जिसपर नियंत्रण स्थापित करके वह सुरक्षा के क्षेत्र में भी कोई नया चमत्कार दिखा सकती है, जो कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे इस प्रान्त की जरूरत भी है। क्योंकि दिल्ली में मुफ्त बिजली, मुफ्त इलाज, मोहल्ला क्लीनिक, शिक्षा में सुधार जैसे कदमों को अरविंद केजरीवाल शोकेस ‘दिल्ली मॉडल’ के तौर पर अमूमन देश के सामने पेश करते रहे हैं।

ऐसे में यदि पंजाब में भी भगवंत मान गवर्नेंस और विकास का कोई ‘पंजाब मॉडल’, केजरीवाल मॉडल की तर्ज पर तैयार करने में कामयाब होते हैं तो यह पार्टी के दूसरे राज्यों में विस्तार में मददगार होगा, क्योंकि अब पुलिस व्यवस्था और पुलिसिया व्यवहार में भी वह कोई नई नजीर स्थापित करवा सकते हैं, अपने चिरपरिचित अंदाज के मुताबिक। वाकई, पंजाब की सियासत ने ऐतिहासिक करवट ली है। जहाँ जात-पात व डेरा पंथक समीकरण को छिन्न-भिन्न कर दिया है। यदि आप जनता से किए हुए वादे के अनुरूप सुशासन देने में कामयाब रही तो इस जीत की गूंज बहुत दूर तलक जाएगी। क्योंकि अब आगे हिमाचल विधानसभा और गुजरात विधानसभा का चुनाव भी होना है।

वहीं, पंजाब में सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि पंजाब कर्ज में डूबा हुआ है। लगभग 2.80 लाख करोड़ के कर्ज का पहाड़ उसे प्रशासनिक विरासत में मिला है। नशा व अवैध खनन माफिया सत्ता पर हावी है। बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए रोजगार और एसवाईएल मुद्दा भी मुंह बाए खड़ा है। वहीं, विदेशी सीमावर्ती राज्य होने के कारण बॉर्डर पार हथियारों की तस्करी एवं पाकिस्तान  की ओर से राज्य को अस्थिर करने का लगातार प्रयास किया जाता है। सबको पता है कि पंजाब ने आतंकवाद का दंश और भयावह दौर झेला है। खालिस्तानी ताकतें फिर अपना सिर उठा रही हैं।

ऐसे में वहां पहली बार पूर्ण राज्य में सरकार चलाने जा रही आम आदमी पार्टी की जिम्मेदारियां बढ़ना स्वाभाविक हैं। ऐसी परिस्थिति में राज्य की बेहतरी के लिए केंद्र के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना आवश्यक होगा। लेकिन दिल्ली यानी दिल्ली सरकार और नई दिल्ली यानी केंद्र सरकार के बीच टकरावों का जो अनवरत सिलसिला है, वह यदि पंजाब में बढ़ा तो, अरविंद केजरीवाल की प्रकट निज भावना कुमार विश्वास के शब्दों में, मैं पंजाब का मुख्यमंत्री नहीं बन सका, तो स्वतंत्र पंजाब का प्रधानमंत्री अवश्य बन जाऊंगा।

इन बातों से जाहिर है कि सत्ता के नेहरू मॉडल, इंदिरा मॉडल, मनमोहन मॉडल, मोदी मॉडल जैसी कड़ियों में केजरीवाल मॉडल एक अलग किस्म का मॉडल बन चुका है, जो कांग्रेस का स्वाभाविक विकल्प तो बन ही चुका है, और बीजेपी के मोदी मॉडल को किस कदर चुनौती देता आया है, दिल्ली इसकी नजीर समझी जाती है, जहाँ इस साल होने वाले एमसीडी चुनावों में भी टीम केजरीवाल के हौसले पंजाब की तरह ही बुलंद हैं। वहीं, संभव है कि 2024 और 2029 तक इसकी अनुगूँज पूरे देश में सुनाई दे, क्योंकि दिल्ली के बाद पंजाब में भी दो तिहाई बहुमत प्राप्त करके सभी दलों का सुफड़ा साफ कर देने वाला जैसा दूसरा उदाहरण आप ने प्रस्तुत किया है, वह किसी और दल के पास नहीं है। आप पहली ऐसी क्षेत्रीय पार्टी बन चुकी है, जिसने अपने मूल राज्य के इतर सूबे में भी अपनी सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की है। इसलिए उसके केजरीवाल मॉडल पर भी अब सबकी नजरें जा टिकी हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार है)

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