एमएलए फैमेले

नेताओं की देश सेवा की भावना दिन पर दिन ज्यादा बड़ी होती जा रही है। अब उनका काम सिर्फ एमएलए फैमेले बनने से नहीं चलता। वे सब सीधे मंत्री बनना चाहते हैं। देश में बहुत दिनों से चुनावों में सुधार करने की चर्चा चल रही है। सुधार दोनों को चाहिए, जनता को भी और नेताओं को भी। जनता नहीं चाहती कि गुंडे, मवाली, बदमाश, बदचलन लोग चुन कर आएं। नेताओं को इन सब लोगों से कोई परेशानी नहीं है। वे तो बस ऐसा सुधार चाहते हैं कि जो भी चुन कर आए, वह बस एमएलए फैमेले ही बन कर न रह जाए, बल्कि सीधा मंत्री बन जाए।

पचास साल से ज्यादा की आजादी के बाद, नेताओं को रोसा हो गया है कि देश की सेवा सिर्फ मंत्री बन कर ही की जा सकती है। इसलिए जब किसी नेता को मंत्री नहीं बनाया जाता तो उसे बड़ा दुख होता है। उसके मन में यह बात कसकने लगती है कि जैसी वह चाहता है वैसी देश सेवा करने का मौका उसे नहीं दिया जा रहा है। जो नेता अपनी मनमाफिक देश सेवा नहीं कर पाता उसको तो जीना ही बेकार लगता है। अपना नहीं, उसका जीना जिसने उसे मंत्री नहीं बनने दिया। इसीलिए जो सरकार उसे मंत्री नहीं बनाती नेता उसे बिगाड़ने पर उतर आता है। पिछले पचास साल से हमारे देश की राजनीति में उतरने का काम बहुत हुआ है। जब नेता राजनीति करने पर उतरता है तो देश नीचे खिसक जाता है। नेता जितना नीचे उतरता जाता है, देश उतना ही नीचे खिसकता जाता है। जब देश नीचे हो तो नेता ऊपर से देश सेवा नहीं कर सकता। इसलिए वह और नीचे उतरता है। निरंतर नीचे उतरते उतरते देश अब उलझनों की खाई में जा गिरा है। समस्याओं के समंदर में गोते खाते देश के गले में नेता नाम का भारी पत्थर बंधा है।

देश चाहे जिस हाल में हो, नेता को हर हालत में मंत्री बनना है। सीधे रास्ते से नहीं बन पाये तो टेढ़े रास्ते से बनता है। जादूटोना, तंत्रमंत्र का सहारा लेता है। कुछ समय पहले इस देश में कुछ तांत्रिकों बड़ा रौब कायम हो गया था। वे मंत्री बनवाने में एक्सपर्ट हो गये थे। एक तांत्रिक ने तो बहुतसे मंत्री बनवाये। उन सबके फोटो बाबा की फाइव स्टार कुटिया में नरमुंडों की तरह लटके रहते थे। शायद यह ऐसे तंत्रवाद का ही प्रभाव है कि इस देश में बहुत सारे मंत्री बिना मुंड के हैं।

जबसे साझा सरकारों का मौसम आया है स्वतंत्र कहलाने वाले नेताओं की तो चांदी हो गयी है। आजादी का सबसे ज्यादा फायदा ये स्वतंत्र कहलाने वाले एमएलए उठा रहे हैं। वैसे ये लोग बड़े मिलनसार होते हैं। जब सरकार बनती है तो वे बनाने वालों से मिल जाते हैं, जब गिरती है तो गिराने वालों से मिल जाते हैं। आजकल इनके बिना कोई सरकार नहीं बनती। जिनके बिना सरकार नहीं बनती, उनके बिना मंत्रिमंडल कैसे बनेगा?

हर नेता ने तय कर लिया है कि उसे हर हालत में मंत्री बनना है। एक पूर्व मंत्री का बेटा एमएलए तो बन गया लेकिन मंत्री नहीं बन पाया। बेटा मंत्री नहीं बना तो बाप बहुत नाराज हुआ। एक खानदानी मंत्री का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है कि उसका बेटा मंत्री न बन पाये? बाप ने सड़क कर बेटे से कहा, जा, विरोधी लोगों से मिल जा और सरकार गिरा दे। बेटा सकपका कर बोला, लेकिन सरकार गिराने से तो बहुत नुकसान हो जाएगा। बाप चिढ़ कर बोला, सरकार क्या तेरे बाप की है जो नुकसान की फिक कर रहा है? बेटे ने कहा, लेकिन देश के हित का भी तो सवाल है। बाप को बेटे पर गुस्सा आ गया, क्या देश के हित का रोना रो रहा है? तू राजनीति में है तो राजनीति करना सीख। जिस सरकार में तू मंत्री नहीं बन सकता, वह तेरे किस काम की? गिरा दे उसे। देश गया तेल लेने। जी हां, जब नेता मंत्री नहीं बन पाता तो देश को तेल लेने भेज देता है। आजकल देश को बारबार तेल लेने भेजा जाता है।

 

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