कितनी बड़ी क़ीमत है!

-संध्या गर्ग-

तुमने कहा था-

”तुम्हीं मेरे लिए

भगवान हो”

सुनकर

बहुत अच्छा

नहीं लगा था

जान गई थी

रहना पड़ेगा

एक और रिश्ते में

भगवान की

उस मूर्ति की तरह

जो खड़ी रहती है

चुपचाप…

लोग

आते हैं उसके पास

दुख में

परेशानी में

और क्रोध में भी!

करते हैं शिक़ायतें

और देते हैं गालियां!

कहती नहीं है मूर्ति

कुछ भी,

प्रत्युत्तर में।

बस मुस्कुराती रहती है।

क्योंकि जानती है

दे देगी

जिस दिन कोई उत्तर

लोग छोड़ देंगे

उसके पास आना भी।

सच!

सुनना

सहना

और मुस्कुराते रहना…

कितनी बड़ी क़ीमत है

भगवान बनने की!

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